Monday, 25 August 2014

मरने के बाद शव का दाह संस्कार का व्यवहारिक कारण

हिन्दू धर्म में गर्भधारण से लेकर मृत्यु के बाद तक कुल सोलह संस्कार बताए गए हैं। सोलहवें संस्कार को अंतिम संस्कार और दाह संस्कार के नाम से जाना जाता है। इसमें मृत व्यक्ति के शरीर को स्नान कराकर शुद्ध किया जाता है।

इसके बाद वैदिक मंत्रों से साथ शव की पूजा की जाती है फिर बाद में मृतक व्यक्ति का ज्येष्ठ पुत्र अथवा कोई निकट संबंधी मुखाग्नि देता है।

शास्त्रों के अनुसार परिवार के सदस्यों के हाथों से मुखाग्नि मिलने से मृत व्यक्ति की आत्मा का मोह अपने परिवार के सदस्यों से खत्म होता है। और वह कर्म के अनुसार बंधन से मुक्त होकर अगले शरीर को पाने के लिए बढ़ जाता है।

शास्त्रों में बताया गया है शरीर की रचना पंच तत्व से होती है ये पंच तत्व हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। शव का दाह करने से शरीर जल कर पुन: पंचतत्व में विलीन हो जाता है। जबकि अन्य संस्कारों में ऎसा नहीं हो पाता है।

क्योंकि शव को जलाने से सबसे पहले पृथ्वी को राख के रुप में अपना अंश मिला जाता है। धुआं आसमान में जाता है जिससे आकाश का तत्व आकाश में मिल जाता है आैर वायु तत्व वायु में घुल जाता है।

अग्नि शरीर को जलाकर आत्मा को शुद्धि प्रदान करती है और अपना अंश प्राप्त कर लेती है। दाह संस्कार के बाद अस्थियों को चुनकर पवित्र जल में विसर्जित कर दिया जाता है जिस जल तत्व को अपना अंश मिल जाता है।

शव का दाह संस्कार करने के पीछे धार्मिक मान्यता पंच तत्व से जुड़ा हुआ है जबकि व्यवहारिक दृष्टि से भी शव दाह संस्कार का महत्व है। शव का दफनाने से शरीर में कीड़े लग जाते हैं। कई बार कुत्ते या दूसरे जानवर शव को भूमि से निकलकर उन्हें क्षत-विक्षत कर देते हैं। इसलिए शव दाह के नियम बनाए गए होंगे।

एक दूसरा व्यवहारिक पहलू यह भी है कि शव को दफनाने के बाद जमीन बेकार हो जाती है, यानी उस जमीन को पुन: दूसरे कार्य में उपयोग में नहीं लाया जा सकता । जबकि दाह संस्कार से जमीन की उपयोगिता बनी रहती है।

शव दाह संस्कार का एक नियम यह भी है कि अस्थि को गंगा में विसर्जित करना चाहिए। गंगा पृथ्वी पर मुक्ति देने के लिए आई थी और माना जाता है कि गंगा में अस्थि विसर्जन से मुक्ति मिलती है। इसलिए भी अग्नि संस्कार का प्रावधान शास्त्रों में बताया गया है।

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💥१. घर में सुबह सुबह कुछ देर के लिए भजन अवशय लगाएं ।
💥२. घर में कभी भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखें, उसे पैर नहीं लगाएं, न ही उसके ऊपर से गुजरे अन्यथा घर में बरकत की कमी हो जाती है। झाड़ू हमेशा छुपा कर रखें |
💥३. बिस्तर पर बैठ कर कभी खाना न खाएं, ऐसा करने से बुरे सपने आते हैं।
💥४. घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखेर कर या उल्टे सीधे करके नहीं रखने चाहिए इससे घर में अशांति उत्पन्न होती है।
💥५. पूजा सुबह 6 से 8बजे के बीच भूमि पर आसन बिछा कर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर करनी चाहिए । पूजा का आसन जुट अथवा कुश का हो तो उत्तम होता है |
💥६. पहली रोटी गाय के लिए निकालें । इससे देवता भी खुश होते हैं और पितरों को भी शांति मिलती है |
💥७.पूजा घर में सदैव जल का एक कलश भरकर रखें जो जितना संभव हो ईशान कोण के हिस्से में हो |
💥८. आरती, दीप, पूजा अग्नि जैसे पवित्रता के प्रतीक साधनों को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं।
💥९. मंदिर में धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड की सामग्री दक्षिण पूर्व में रखें अर्थात आग्नेय कोण में |
💥१०. घर के मुख्य द्वार पर दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं।
💥११. घर में कभी भी जाले न लगने दें, वरना भाग्य और कर्म पर जाले लगने लगते हैं और बाधा आती है |
💥१२. सप्ताह में एकबार जरुर समुद्री नमक अथवा सेंधा नमक से घर में पोछा लगाएं | इससे नकारात्मक ऊर्जा हटती है |
💥१३. कोशिश करें की सुबह के प्रकाश की किरने आपके पूजा घर में जरुर पहुचे सबसे पहले |
💥१४. पूजा घर में अगर कोई प्रतिष्ठित मूर्ती है तो उसकी पूजा हर रोज निश्चित रूप से हो ऐसी व्यवस्था करें ...

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