आईये… भारत के कई दारुल-इस्लामों में से एक, “मेलविशारम” की सैर पर चलें…
भारत का एक दक्षिणी राज्य है तमिलनाडु, यहाँ के वेल्लूर जिले की आर्कोट विधानसभा क्षेत्र में एक कस्बा है, नाम है “विशारम”। विशारम कस्बा दो पंचायतों में बँटा हुआ है, “मेलविशारम” (अर्थात ऊपरी विशारम) तथा “कीलविशारम” (निचला विशारम)। मेलविशारम पंचायत की 90% आबादी मुस्लिम है, जबकि कीलविशारम की पूरी आबादी हिन्दुओं (वन्नियार जाति) की है। इन दोनों पंचायतों का गठन 1951 में ही हो चुका था, मुस्लिम आबादी वाले मेलविशारम में 17 वार्ड हैं, जबकि दलितों वाले कीलविशारम में 4 वार्ड हैं। 1996 में “दलितों और पिछड़ों के नाम पर रोटी खाने वाली” DMK ने मुस्लिम वोट बैंक के दबाव में दोनों कस्बों के कुल 21 वार्डों को आपस में मिलाकर एक पंचायत का गठन कर दिया (स्वाभाविक रूप से इससे इस वृहद पंचायत में मुस्लिमों का बहुमत हो गया)।
इसके बाद अक्टूबर 2004 में “वोट बैंक प्रतिस्पर्धा” के चलते जयललिता की AIDMK ने नवगठित मेलविशारम का दर्जा बढ़ाकर इसे “ग्रेड-3” पंचायत कर दिया (ताकि और अधिक सरकारी अनुदान रूपी “लूट” किया जा सके)। मेल्विशारम के मुस्लिम जनप्रतिनिधियों(?) को खुश करने के लिए अगस्त 2008 में इसे वेल्लूर नगर निगम के साथ विलय कर दिया गया…। जैसा कि पहले बताया गया मेलविशारम के 17 वार्डों में 90% मुस्लिम आबादी है, जिनका मुख्य कार्य चमड़ा निकालने और साफ़ करने का है, जबकि कील्विशारम के 4 वार्डों के रहवासी अर्थात हिन्दू वर्ग के लोग मुख्यतः खेती और मुर्गीपालन पर निर्भर हैं।मेल्विशारम के साथ कील्विशारम के विलय कर दिये जाने से इन चार वार्डों के दलितों का जीना दूभर हो चला है, उनका जीवनयापन भी गहरे संकट में आ गया है। परन्तु स्वयं को दलितों, वन्नियारों और पिछड़ों का मसीहा कहलाने वाली दोनों प्रमुख पार्टियों ने उनकी तरफ़ पीठ कर ली है। तमिलनाडु के एक पत्रकार पुदुवई सर्वानन ने 2007 में मेल्विशारम का दौरा किया और अपनी आँखों देखी खोजी रिपोर्ट अपने ब्लॉग पर डाली (http://puduvaisaravanan.blogspot.com/2007/01/blog-post_685.html )। तमिल पत्रिका “विजयभारतम” ने इस स्टोरी को प्रमुखता से प्रकाशित किया, परन्तु मुस्लिम वोटों के लालच में अंधी हो चुकी DMK और AIDMK के कानों पर जूँ तक न रेंगी। इस रिपोर्ट के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं –
1) मेलविशारम पंचायत की प्रमुख भाषा अब उर्दू हो चुकी है, पंचायत और नगरपालिका से सम्बन्धित सभी सरकारी कार्य उर्दू में किये जाते हैं, सरपंच और पंचायत के अन्य अधिकारी जो भी “सर्कुलर” जारी करना हो, वह उर्दू में ही करते हैं। मेलविशारम नगरपालिका की लाइब्रेरी में सिर्फ़ उर्दू पुस्तकें ही उपलब्ध हैं। सिर्फ़ मेलविशारम के बाहर से आने वाले व्यक्ति से ही तमिल में बात की जाती है, परन्तु उन चार वार्डों में निवास कर रहे दलितों से तमिल नहीं बल्कि उर्दू में ही समस्त व्यवहार किया जाता है। 17 वार्डों मे एक गली ऐसी भी है, जहाँ एक साथ 10 तमिल परिवार निवासरत हैं, पालिका ने उस गली का नाम, “तमिल स्ट्रीट” कर दिया है, परन्तु बाकी सभी दुकानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों एवं सरकारी सूचना बोर्डों को सिर्फ़ उर्दू में ही लिखा गया है, तमिल में नहीं।
2) मेलविशारम नगरपालिका के अन्तर्गत दो कॉलेज हैं, “अब्दुल हकीम इंजीनियरिंग कॉलेज”, तथा “अब्दुल हकीम आर्ट्स साइंस कॉलेज” जबकि “मेलविशारम मुस्लिम एजूकेशन सोसायटी” (MMES) के तहत 5 मदरसे चलाए जाते हैं, इसके अलावा कोई अन्य तमिल स्कूल नहीं है। 175 फ़ीट ऊँची मीनार वाली मस्जिद-ए-खिज़रत का निर्माण नगरपालिका द्वारा करवाया गया है, जबकि उन 21 वार्डों में एक भी पुलिस स्टेशन खोलने की इजाज़त नहीं दी गई है, इस बारे में पूछने पर एक फ़ल विक्रेता अमजद हुसैन ने कहा कि, “सभी विवादों का “निपटारा”(?) जमात द्वारा किया जाता है”।
3) निचले विशारम अर्थात कील्विशारम के चार वार्डों का विलय मेलविशारम में होने के बाद से अब तक वहाँ लोकतांत्रिक स्वरूप में चुनाव नहीं हुए हैं, पंचायत का अध्यक्ष और उन चारों वार्डों के जनप्रतिनिधियों का “नामांकन” जमात द्वारा किया जाता है, किसी भी दलित अथवा पिछड़े को चुनाव में खड़े होने की इजाज़त नहीं है।
4) 2002 के पंचायत चुनावों में दलित पंचायत प्रतिनिधियों की मुस्लिम पार्षदों द्वारा जमकर पिटाई की गई थी, और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होने के विरोध में इन चार वार्डों के दलितों ने चुनावों का बहिष्कार करना प्रारम्भ कर दिया था, लेकिन उन्हें मनाने की कोशिश करना तो दूर DMK ने उनकी तरफ़ झाँका भी नहीं।
(http://www.hindu.com/2005/04/21/stories/2005042108500300.htm)
5) मेलविशारम की जमात अपने स्वयं संज्ञान से “प्रभावशाली”(?) मुसलमानों को नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में नामांकित कर देती है। नगरपालिका की समस्त सरकारी और विधायी कार्रवाई के बारे में हिन्दू दलितों को कोई सूचना नहीं दी जाती। कई बार तो नगरपालिका की आमसभा की बैठक उस “प्रभावशाली” मुस्लिम नेता के घर पर ही सम्पन्न कर ली जाती है। मेलविशारम नगरपालिका के सभी प्रमुख कार्य और ठेके सिर्फ़ मुसलमानों को ही दिये जाते हैं, जबकि सफ़ाई और कचरा-गंदगी उठाने का काम ही दलितों को दिया जाता है।
6) आर्कोट क्षेत्र में PMK पार्टी के एक विधायक महोदय थे श्री केएल एलवाझगन, इनके पिता श्री के लोगानाथन की हत्या 1991 में कर दी गई थी, उस समय इसे “राजनैतिक दुश्मनी” कहकर मामला रफ़ादफ़ा कर दिया गया था, परन्तु जाँच में पाया गया कि जिस दलित नेता ने उनकी हत्या करवाई थी उसे एक प्रभावशाली मुस्लिम नेता ने छिपाकर रखा, तथा अब उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया है एवं अब वह अपनी दो बीवियों के साथ मेलविशारम में आराम का जीवन बिता रहा है… (चूंकि PMK पार्टी भी मुस्लिम वोटों पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए एलवाझगन की आपत्तियों को पार्टी ने “शांत”(?) कर दिया…)…
7) मेल्विशारम से कीलविशारम की ओर एक नदी बहती है, जिसका नाम है “पलार”। यहाँ दलितों की श्मशान भूमि पर लगभग 300 मुस्लिम परिवारों ने अतिक्रमण करके एक कालोनी बना दी है, इस अवैध कालोनी को मेल्विशारम नगर पंचायत ने “बहुमत”(?) से मान्यता प्रदान करके इसे “सादिक बाशा नगर” नाम दे दिया है तथा इसे बिजली-पानी का कनेक्शन भी दे डाला, जबकि दलित अपनी झोंपड़ियों के लिये स्थायी पट्टे की माँग बरसों से कर रहे हैं।
8) मेलविशारम में “बहुमत” और अपना अध्यक्ष होने की वजह से कील्विशारम के दलितों को डरा-धमका कर कुछ मुस्लिम परिवारों ने उनकी जमीन औने-पौने दामों पर खरीद ली है एवं उस ज़मीन पर अपने चमड़ा उद्योग स्थापित कर लिए। चमड़ा सफ़ाई के कारण निकलने वाले पानी को पलार नदी में जानबूझकर बहा दिया जाता है, जो कि दलितों की खेती के काम आता है।
9) जब प्रदूषण अत्यधिक बढ़ गया और नदी में पानी की जगह लाल कीचड़ हो गया, तब मेलविशारम की नगर पंचायत ने “सर्वसम्मति”(?) से प्रस्ताव पारित करके एक वेस्ट-वाटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट लगाने की अनुमति दी। परन्तु जानबूझकर यह वेस्ट-वाटर ट्रीटमेण्ट प्लांट का स्थान चुना गया दलितों द्वारा स्थापित गणेश मन्दिर और बादाम के बगीचे की भूमि के पास (सर्वे क्रमांक 256/2 – 31.66 एकड़)। इस गणेश मन्दिर में स्थानीय दलित और पिछड़े वर्षों से ग्रामदेवी की पूजा और पोंगल का उत्सव मनाते थे।
10) मेल्विशारम में हिन्दुओं को सिर्फ़ “हेयर कटिंग सलून” अथवा “लॉण्ड्री-ड्रायक्लीनिंग” की दुकान खोलने की ही अनुमति है, जबकि कीलविशारम के वे दलित परिवार जिनके पास न खेती है, न ही मुर्गियाँ, वे परिवार बीड़ी बनाने का कार्य करता है।
11) मेलविशारम के 17 वार्डों, उनकी समस्त योजनाओं और सरकारी अनुदान में तो पहले से ही मुस्लिमों का एकतरफ़ा साम्राज्य था, अब कील्विशारम के विलय के बाद दलितों वाले चार वार्डों में भी वे अपना दबदबा कायम करने की फ़िराक में हैं, इसीलिए नगर पंचायत में कील्विशारम इलाके हेतु बनने वाली सीवर लाइन, पानी की पाइप लाइन, बिजली के खम्भे इत्यादि सभी योजनाओं को या तो मेल्विशारम में शिफ़्ट कर दिया जाता है या फ़िर उनमें इतने अड़ंगे लगाए जाते हैं कि वह योजना ही निरस्त हो जाए।
12) 10 नवम्बर 2009 के इंडियन एक्सप्रेस में समाचार आया था, कि नगर पंचायत के दबंग मुसलमान कील्विशारम में पीने के पानी की योजनाओं तक में अड़ंगे लगा रहे हैं, दलितों की बस्तियों में खुलेआम प्रचार करके गरीबों से कहा जाता है कि इस्लाम अपना लो तो तुम्हें बिजली, पानी, नालियाँ सभी सुविधाएं मिलेंगी…
(पुदुवई सर्वनन की रिपोर्ट के अनुसार, कमोबेश उपरोक्त स्थिति 2009 तक बनी रही…)
2002 से 2009 के बीच आठ साल तक दलितों, द्रविडों और वन्नियार समुदाय के नाम पर रोटी खाने वाली दोनों पार्टियों ने "मुस्लिम वोटों की भीख और भूख" के चलते कील्विशारम के दलितों को उनके बुरे हाल पर अनाथ छोड़ रखा था…। इसके बाद इस्लाम द्वारा सताए हुए इन दलितों के जीवन में आया एक ब्राह्मण, यानी डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी…। डॉ स्वामी ने पत्रकार पुदुवई सर्वनन की यह रिपोर्ट पढ़ी और उन्होंने इस “दारुल-इस्लाम” के खिलाफ़ लड़ने का फ़ैसला किया।
डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने चेन्नै हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें अदालत से माँग की गई कि वह सरकार को निर्देशित करे कि कील्विशारम को एक अलग पंचायत के रूप में स्थापित करे। मेल्विशारम नगर पंचायत के साथ कील्विशारम के विलय को निरस्त घोषित किया जाए, ताकि कील्विशारम के निवासी अपने गाँव की भलाई के निर्णय स्वयं ले सकें, न कि मुस्लिम दबंगों की दया पर निर्भर रहें। हाईकोर्ट ने तदनुरूप अपना निर्णय सुना दिया…
परन्तु मुस्लिम वोटों के लिए “भिखारी” और “बेगैरत” बने हुए DMK व AIDMK ने हाईकोर्ट के इस निर्णय को 16 जनवरी 2009 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी (http://www.thehindu.com/2009/01/17/stories/2009011753940400.htm) । जिस तरह मुस्लिम आरक्षण से लेकर हर मुद्दे पर लात खाते आए हैं, वैसे ही हमेशा की तरह सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को लताड़ दिया और कील्विशारम के निवासियों की इस याचिका को तीन माह के अन्दर अमल में लाने के निर्देश दिये। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा कि कील्विशारम पंचायत का पूरा प्रशासन वेल्लोर जिले में अलग से किया जाए, तथा इसे मेल्विशारम से पूर्णरूप से अलग किया जाए। चीफ़ जस्टिस केजी बालकृष्णन व जस्टिस पी सदाशिवन की बेंच ने तमिलनाडु सरकार को इस निर्णय पर अमल करने सम्बन्धी समस्त कागज़ात की एक प्रति, डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी को देने के निर्देश भी दिये।
पाठकों, यह तो मात्र एक उदाहरण है, मेल्विशारम जैसी लगभग 40 नगर पंचायतें हाल-फ़िलहाल तमिलनाडु में हैं, जहाँ मुस्लिम बहुमत में हैं और हिन्दू (दलित) अल्पमत में। इन सभी पंचायतों में भी कमोबेश वही हाल है, जो मेल्विशारम के हिन्दुओं का है। उन्हें लगातार अपमान के घूंट पीकर जीना पड़ता है और DMK हो, PMK हो या AIDMK हो, मुसलमानों के वोटों की खातिर अपना “कुछ भी” देने के लिए तैयार रहने वाले “सेकुलर” नेताओं और बुद्धिजीवियों को दलितों की कतई फ़िक्र नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से अब इन लगभग 40 नगर पंचायतों से भी उन्हें मुस्लिम बहुल पंचायतों से अलग करने की माँग उठने लगी है, जिससे कि उनका भी विकास हो सके।
मजे की बात तो यह है कि दलित वोटों की रोटी खाने वाले हों या दलितों की झोंपड़ी में रोटी खाने वाले नौटंकीबाज हों, किसी ने भी मेल्विशारम के इन दलितों की हालत सुधारने और यहाँ के मुस्लिम दबंगों को “ठीक करने” के लिए कोई कदम नहीं उठाया… इन दलितों की सहायता के लिए आगे आया एक ब्राह्मण, डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी…। अब कम से कम कील्विशारम की ग्राम पंचायत अपने हिसाब और अपनी जरुरतों के अनुसार बजट निर्धारण, ठेके, पेयजल, नालियाँ इत्यादि करवा सकेगी… मेल्विशारम के 17 मुस्लिम बहुल वार्ड, शरीयत के अनुसार “जैसी परिस्थितियों” में रहने के वे आदी हैं, वैसे ही रहने को स्वतन्त्र हैं।
उल्लेखनीय है कि ऐसे “दारुल-इस्लाम” भारत के प्रत्येक राज्य के प्रत्येक जिले में मिल जाएंगे, क्योंकि यह एक स्थापित तथ्य है कि जिस स्थान, तहसील, जिले या राज्य में मुस्लिम बहुमत होता है, वहाँ की शासन व्यवस्था में वे किसी भी अन्य समुदाय से सहयोग, समन्वय या सहभागिता नहीं करते, सिर्फ़ अपनी मनमानी चलाते हैं और उनकी पूरी कोशिश होती है कि अल्पसंख्यक समुदाय (चाहे वे हिन्दू हों, सिख हों या ईसाई हों) पर बेजा दबाव बनाकर उन्हें शरीयत के मुताबिक चलने को बाध्य करें…। आज जो दलित नेता, मुस्लिम वोटों के लिए "तलवे चाटने की प्रतिस्पर्धाएं" कर रहे हैं, उनके अनुयायी दलित भाई इस उदाहरण से समझ लें, कि जब कभी दलितों की जनसंख्या किसी क्षेत्र विशेष में “निर्णायक” नहीं रहेगी, उस दिन यही दलित नेता सबसे पहले उनकी ओर से आँखें फ़ेर लेंगे…
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उन पाठकों के लिए, जिन्हें “दारुल-इस्लाम” जैसे शब्दों का अर्थ नहीं पता… इस्लाम की विस्तारवादी एवं दमनकारी नीतियों सम्बन्धी चन्द परिभाषाएं पेश हैं -
1) उम्मा (Ummah) – एक अरबी शब्द जिसका अर्थ है Community (समुदाय) या राष्ट्र (Nation), परन्तु इसका उपयोग “अल्लाह को मानने वालों” (Believers) के लिए ही होता है… (http://en.wikipedia.org/wiki/Ummah)
2) दारुल इस्लाम (Dar-ul-Islam) – ऐसे तमाम मुस्लिम बहुल इलाके, जहाँ इस्लाम का शासन चलता है, सभी इस्लामिक देश इस परिभाषा के तहत आते हैं।
3) दारुल-हरब (Dar-ul-Harb) – ऐसे देश अथवा ऐसे स्थान, जहाँ शरीयत कानून नहीं चलता, तथा जहाँ अन्य आस्थाओं अथवा अल्लाह को नहीं मानने वाले लोगों का बहुमत हो… अर्थात गैर-इस्लामिक देश।
(http://en.wikipedia.org/wiki/Divisions_of_the_world_in_Islam)
4) काफ़िर (Kafir) – ऐसा व्यक्ति जो अल्लाह के अलावा किसी अन्य ईश्वर में आस्था रखता हो, मूर्तिपूजक हो। अंग्रेजी में इसे Unbeliever कहा जाएगा, यानी “नहीं मानने वाला”। (ध्यान रहे कि इस्लाम के तहत सिर्फ़ “मानने वाले” या “नहीं मानने वाले” के बीच ही वर्गीकरण किया जाता है) (http://en.wikipedia.org/wiki/Kafir).
5) जेहाद (Jihad) – इस शब्द से अधिकतर पाठक वाकिफ़ होंगे, इसका विस्तृत अर्थ जानने के लिए यहाँ घूमकर आएं… (http://en.wikipedia.org/wiki/Jehad)। वैसे संक्षेप में इस शब्द का अर्थ होता है, “अल्लाह के पवित्र शासन हेतु रास्ता बनाना…”
6) अल-तकैया (Al-Taqiya) – चतुराई, चालाकी, चालबाजी, षडयंत्रों के जरिये इस्लाम के विस्तार की योजनाएं बनाना। सुन्नी विद्वान इब्न कथीर की व्याख्या के अनुसार “अल्लाह को मानने वाले”, और “नहीं मानने वाले” के बीच कोई दोस्ती नहीं होनी चाहिए, यदि किसी कारणवश ऐसा करना भी पड़े तो वह दोस्ती मकसद पूरा होने तक सिर्फ़ “बाहरी स्वरूप” में होनी चाहिए…। और अधिक जानिये… (http://en.wikipedia.org/wiki/Taqiyya)
बहरहाल, तमिलनाडु के मेल्विशारम और कील्विशारम के उदाहरणों तथा इन परिभाषाओं से आप जान ही चुके होंगे कि समूचे विश्व को “दारुल इस्लाम” बनाने की प्रक्रिया में अर्थात एक “उम्मा” के निर्माण हेतु “अल-तकैया” एवं “जिहाद” का उपयोग करके “दारुल-हरब” को “दारुल-इस्लाम” में कैसे परिवर्तित किया जाता है…। फ़िलहाल आप चादर तानकर सोईये और इंतज़ार कीजिए, कि कब और कैसे पहले आपके मोहल्ले, फ़िर आपके वार्ड, फ़िर आपकी तहसील, फ़िर आपके जिले, फ़िर आपके संभाग, फ़िर आपके प्रदेश और अन्त में भारत को “दारुल-इस्लाम” बनाया जाएगा…।
भारत का एक दक्षिणी राज्य है तमिलनाडु, यहाँ के वेल्लूर जिले की आर्कोट विधानसभा क्षेत्र में एक कस्बा है, नाम है “विशारम”। विशारम कस्बा दो पंचायतों में बँटा हुआ है, “मेलविशारम” (अर्थात ऊपरी विशारम) तथा “कीलविशारम” (निचला विशारम)। मेलविशारम पंचायत की 90% आबादी मुस्लिम है, जबकि कीलविशारम की पूरी आबादी हिन्दुओं (वन्नियार जाति) की है। इन दोनों पंचायतों का गठन 1951 में ही हो चुका था, मुस्लिम आबादी वाले मेलविशारम में 17 वार्ड हैं, जबकि दलितों वाले कीलविशारम में 4 वार्ड हैं। 1996 में “दलितों और पिछड़ों के नाम पर रोटी खाने वाली” DMK ने मुस्लिम वोट बैंक के दबाव में दोनों कस्बों के कुल 21 वार्डों को आपस में मिलाकर एक पंचायत का गठन कर दिया (स्वाभाविक रूप से इससे इस वृहद पंचायत में मुस्लिमों का बहुमत हो गया)।
इसके बाद अक्टूबर 2004 में “वोट बैंक प्रतिस्पर्धा” के चलते जयललिता की AIDMK ने नवगठित मेलविशारम का दर्जा बढ़ाकर इसे “ग्रेड-3” पंचायत कर दिया (ताकि और अधिक सरकारी अनुदान रूपी “लूट” किया जा सके)। मेल्विशारम के मुस्लिम जनप्रतिनिधियों(?) को खुश करने के लिए अगस्त 2008 में इसे वेल्लूर नगर निगम के साथ विलय कर दिया गया…। जैसा कि पहले बताया गया मेलविशारम के 17 वार्डों में 90% मुस्लिम आबादी है, जिनका मुख्य कार्य चमड़ा निकालने और साफ़ करने का है, जबकि कील्विशारम के 4 वार्डों के रहवासी अर्थात हिन्दू वर्ग के लोग मुख्यतः खेती और मुर्गीपालन पर निर्भर हैं।मेल्विशारम के साथ कील्विशारम के विलय कर दिये जाने से इन चार वार्डों के दलितों का जीना दूभर हो चला है, उनका जीवनयापन भी गहरे संकट में आ गया है। परन्तु स्वयं को दलितों, वन्नियारों और पिछड़ों का मसीहा कहलाने वाली दोनों प्रमुख पार्टियों ने उनकी तरफ़ पीठ कर ली है। तमिलनाडु के एक पत्रकार पुदुवई सर्वानन ने 2007 में मेल्विशारम का दौरा किया और अपनी आँखों देखी खोजी रिपोर्ट अपने ब्लॉग पर डाली (http://puduvaisaravanan.blogspot.com/2007/01/blog-post_685.html )। तमिल पत्रिका “विजयभारतम” ने इस स्टोरी को प्रमुखता से प्रकाशित किया, परन्तु मुस्लिम वोटों के लालच में अंधी हो चुकी DMK और AIDMK के कानों पर जूँ तक न रेंगी। इस रिपोर्ट के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं –
1) मेलविशारम पंचायत की प्रमुख भाषा अब उर्दू हो चुकी है, पंचायत और नगरपालिका से सम्बन्धित सभी सरकारी कार्य उर्दू में किये जाते हैं, सरपंच और पंचायत के अन्य अधिकारी जो भी “सर्कुलर” जारी करना हो, वह उर्दू में ही करते हैं। मेलविशारम नगरपालिका की लाइब्रेरी में सिर्फ़ उर्दू पुस्तकें ही उपलब्ध हैं। सिर्फ़ मेलविशारम के बाहर से आने वाले व्यक्ति से ही तमिल में बात की जाती है, परन्तु उन चार वार्डों में निवास कर रहे दलितों से तमिल नहीं बल्कि उर्दू में ही समस्त व्यवहार किया जाता है। 17 वार्डों मे एक गली ऐसी भी है, जहाँ एक साथ 10 तमिल परिवार निवासरत हैं, पालिका ने उस गली का नाम, “तमिल स्ट्रीट” कर दिया है, परन्तु बाकी सभी दुकानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों एवं सरकारी सूचना बोर्डों को सिर्फ़ उर्दू में ही लिखा गया है, तमिल में नहीं।
2) मेलविशारम नगरपालिका के अन्तर्गत दो कॉलेज हैं, “अब्दुल हकीम इंजीनियरिंग कॉलेज”, तथा “अब्दुल हकीम आर्ट्स साइंस कॉलेज” जबकि “मेलविशारम मुस्लिम एजूकेशन सोसायटी” (MMES) के तहत 5 मदरसे चलाए जाते हैं, इसके अलावा कोई अन्य तमिल स्कूल नहीं है। 175 फ़ीट ऊँची मीनार वाली मस्जिद-ए-खिज़रत का निर्माण नगरपालिका द्वारा करवाया गया है, जबकि उन 21 वार्डों में एक भी पुलिस स्टेशन खोलने की इजाज़त नहीं दी गई है, इस बारे में पूछने पर एक फ़ल विक्रेता अमजद हुसैन ने कहा कि, “सभी विवादों का “निपटारा”(?) जमात द्वारा किया जाता है”।
3) निचले विशारम अर्थात कील्विशारम के चार वार्डों का विलय मेलविशारम में होने के बाद से अब तक वहाँ लोकतांत्रिक स्वरूप में चुनाव नहीं हुए हैं, पंचायत का अध्यक्ष और उन चारों वार्डों के जनप्रतिनिधियों का “नामांकन” जमात द्वारा किया जाता है, किसी भी दलित अथवा पिछड़े को चुनाव में खड़े होने की इजाज़त नहीं है।
4) 2002 के पंचायत चुनावों में दलित पंचायत प्रतिनिधियों की मुस्लिम पार्षदों द्वारा जमकर पिटाई की गई थी, और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होने के विरोध में इन चार वार्डों के दलितों ने चुनावों का बहिष्कार करना प्रारम्भ कर दिया था, लेकिन उन्हें मनाने की कोशिश करना तो दूर DMK ने उनकी तरफ़ झाँका भी नहीं।
(http://www.hindu.com/2005/04/21/stories/2005042108500300.htm)
5) मेलविशारम की जमात अपने स्वयं संज्ञान से “प्रभावशाली”(?) मुसलमानों को नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में नामांकित कर देती है। नगरपालिका की समस्त सरकारी और विधायी कार्रवाई के बारे में हिन्दू दलितों को कोई सूचना नहीं दी जाती। कई बार तो नगरपालिका की आमसभा की बैठक उस “प्रभावशाली” मुस्लिम नेता के घर पर ही सम्पन्न कर ली जाती है। मेलविशारम नगरपालिका के सभी प्रमुख कार्य और ठेके सिर्फ़ मुसलमानों को ही दिये जाते हैं, जबकि सफ़ाई और कचरा-गंदगी उठाने का काम ही दलितों को दिया जाता है।
6) आर्कोट क्षेत्र में PMK पार्टी के एक विधायक महोदय थे श्री केएल एलवाझगन, इनके पिता श्री के लोगानाथन की हत्या 1991 में कर दी गई थी, उस समय इसे “राजनैतिक दुश्मनी” कहकर मामला रफ़ादफ़ा कर दिया गया था, परन्तु जाँच में पाया गया कि जिस दलित नेता ने उनकी हत्या करवाई थी उसे एक प्रभावशाली मुस्लिम नेता ने छिपाकर रखा, तथा अब उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया है एवं अब वह अपनी दो बीवियों के साथ मेलविशारम में आराम का जीवन बिता रहा है… (चूंकि PMK पार्टी भी मुस्लिम वोटों पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए एलवाझगन की आपत्तियों को पार्टी ने “शांत”(?) कर दिया…)…
7) मेल्विशारम से कीलविशारम की ओर एक नदी बहती है, जिसका नाम है “पलार”। यहाँ दलितों की श्मशान भूमि पर लगभग 300 मुस्लिम परिवारों ने अतिक्रमण करके एक कालोनी बना दी है, इस अवैध कालोनी को मेल्विशारम नगर पंचायत ने “बहुमत”(?) से मान्यता प्रदान करके इसे “सादिक बाशा नगर” नाम दे दिया है तथा इसे बिजली-पानी का कनेक्शन भी दे डाला, जबकि दलित अपनी झोंपड़ियों के लिये स्थायी पट्टे की माँग बरसों से कर रहे हैं।
8) मेलविशारम में “बहुमत” और अपना अध्यक्ष होने की वजह से कील्विशारम के दलितों को डरा-धमका कर कुछ मुस्लिम परिवारों ने उनकी जमीन औने-पौने दामों पर खरीद ली है एवं उस ज़मीन पर अपने चमड़ा उद्योग स्थापित कर लिए। चमड़ा सफ़ाई के कारण निकलने वाले पानी को पलार नदी में जानबूझकर बहा दिया जाता है, जो कि दलितों की खेती के काम आता है।
9) जब प्रदूषण अत्यधिक बढ़ गया और नदी में पानी की जगह लाल कीचड़ हो गया, तब मेलविशारम की नगर पंचायत ने “सर्वसम्मति”(?) से प्रस्ताव पारित करके एक वेस्ट-वाटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट लगाने की अनुमति दी। परन्तु जानबूझकर यह वेस्ट-वाटर ट्रीटमेण्ट प्लांट का स्थान चुना गया दलितों द्वारा स्थापित गणेश मन्दिर और बादाम के बगीचे की भूमि के पास (सर्वे क्रमांक 256/2 – 31.66 एकड़)। इस गणेश मन्दिर में स्थानीय दलित और पिछड़े वर्षों से ग्रामदेवी की पूजा और पोंगल का उत्सव मनाते थे।
10) मेल्विशारम में हिन्दुओं को सिर्फ़ “हेयर कटिंग सलून” अथवा “लॉण्ड्री-ड्रायक्लीनिंग” की दुकान खोलने की ही अनुमति है, जबकि कीलविशारम के वे दलित परिवार जिनके पास न खेती है, न ही मुर्गियाँ, वे परिवार बीड़ी बनाने का कार्य करता है।
11) मेलविशारम के 17 वार्डों, उनकी समस्त योजनाओं और सरकारी अनुदान में तो पहले से ही मुस्लिमों का एकतरफ़ा साम्राज्य था, अब कील्विशारम के विलय के बाद दलितों वाले चार वार्डों में भी वे अपना दबदबा कायम करने की फ़िराक में हैं, इसीलिए नगर पंचायत में कील्विशारम इलाके हेतु बनने वाली सीवर लाइन, पानी की पाइप लाइन, बिजली के खम्भे इत्यादि सभी योजनाओं को या तो मेल्विशारम में शिफ़्ट कर दिया जाता है या फ़िर उनमें इतने अड़ंगे लगाए जाते हैं कि वह योजना ही निरस्त हो जाए।
12) 10 नवम्बर 2009 के इंडियन एक्सप्रेस में समाचार आया था, कि नगर पंचायत के दबंग मुसलमान कील्विशारम में पीने के पानी की योजनाओं तक में अड़ंगे लगा रहे हैं, दलितों की बस्तियों में खुलेआम प्रचार करके गरीबों से कहा जाता है कि इस्लाम अपना लो तो तुम्हें बिजली, पानी, नालियाँ सभी सुविधाएं मिलेंगी…
(पुदुवई सर्वनन की रिपोर्ट के अनुसार, कमोबेश उपरोक्त स्थिति 2009 तक बनी रही…)
2002 से 2009 के बीच आठ साल तक दलितों, द्रविडों और वन्नियार समुदाय के नाम पर रोटी खाने वाली दोनों पार्टियों ने "मुस्लिम वोटों की भीख और भूख" के चलते कील्विशारम के दलितों को उनके बुरे हाल पर अनाथ छोड़ रखा था…। इसके बाद इस्लाम द्वारा सताए हुए इन दलितों के जीवन में आया एक ब्राह्मण, यानी डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी…। डॉ स्वामी ने पत्रकार पुदुवई सर्वनन की यह रिपोर्ट पढ़ी और उन्होंने इस “दारुल-इस्लाम” के खिलाफ़ लड़ने का फ़ैसला किया।
डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने चेन्नै हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें अदालत से माँग की गई कि वह सरकार को निर्देशित करे कि कील्विशारम को एक अलग पंचायत के रूप में स्थापित करे। मेल्विशारम नगर पंचायत के साथ कील्विशारम के विलय को निरस्त घोषित किया जाए, ताकि कील्विशारम के निवासी अपने गाँव की भलाई के निर्णय स्वयं ले सकें, न कि मुस्लिम दबंगों की दया पर निर्भर रहें। हाईकोर्ट ने तदनुरूप अपना निर्णय सुना दिया…
परन्तु मुस्लिम वोटों के लिए “भिखारी” और “बेगैरत” बने हुए DMK व AIDMK ने हाईकोर्ट के इस निर्णय को 16 जनवरी 2009 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी (http://www.thehindu.com/2009/01/17/stories/2009011753940400.htm) । जिस तरह मुस्लिम आरक्षण से लेकर हर मुद्दे पर लात खाते आए हैं, वैसे ही हमेशा की तरह सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को लताड़ दिया और कील्विशारम के निवासियों की इस याचिका को तीन माह के अन्दर अमल में लाने के निर्देश दिये। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा कि कील्विशारम पंचायत का पूरा प्रशासन वेल्लोर जिले में अलग से किया जाए, तथा इसे मेल्विशारम से पूर्णरूप से अलग किया जाए। चीफ़ जस्टिस केजी बालकृष्णन व जस्टिस पी सदाशिवन की बेंच ने तमिलनाडु सरकार को इस निर्णय पर अमल करने सम्बन्धी समस्त कागज़ात की एक प्रति, डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी को देने के निर्देश भी दिये।
पाठकों, यह तो मात्र एक उदाहरण है, मेल्विशारम जैसी लगभग 40 नगर पंचायतें हाल-फ़िलहाल तमिलनाडु में हैं, जहाँ मुस्लिम बहुमत में हैं और हिन्दू (दलित) अल्पमत में। इन सभी पंचायतों में भी कमोबेश वही हाल है, जो मेल्विशारम के हिन्दुओं का है। उन्हें लगातार अपमान के घूंट पीकर जीना पड़ता है और DMK हो, PMK हो या AIDMK हो, मुसलमानों के वोटों की खातिर अपना “कुछ भी” देने के लिए तैयार रहने वाले “सेकुलर” नेताओं और बुद्धिजीवियों को दलितों की कतई फ़िक्र नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से अब इन लगभग 40 नगर पंचायतों से भी उन्हें मुस्लिम बहुल पंचायतों से अलग करने की माँग उठने लगी है, जिससे कि उनका भी विकास हो सके।
मजे की बात तो यह है कि दलित वोटों की रोटी खाने वाले हों या दलितों की झोंपड़ी में रोटी खाने वाले नौटंकीबाज हों, किसी ने भी मेल्विशारम के इन दलितों की हालत सुधारने और यहाँ के मुस्लिम दबंगों को “ठीक करने” के लिए कोई कदम नहीं उठाया… इन दलितों की सहायता के लिए आगे आया एक ब्राह्मण, डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी…। अब कम से कम कील्विशारम की ग्राम पंचायत अपने हिसाब और अपनी जरुरतों के अनुसार बजट निर्धारण, ठेके, पेयजल, नालियाँ इत्यादि करवा सकेगी… मेल्विशारम के 17 मुस्लिम बहुल वार्ड, शरीयत के अनुसार “जैसी परिस्थितियों” में रहने के वे आदी हैं, वैसे ही रहने को स्वतन्त्र हैं।
उल्लेखनीय है कि ऐसे “दारुल-इस्लाम” भारत के प्रत्येक राज्य के प्रत्येक जिले में मिल जाएंगे, क्योंकि यह एक स्थापित तथ्य है कि जिस स्थान, तहसील, जिले या राज्य में मुस्लिम बहुमत होता है, वहाँ की शासन व्यवस्था में वे किसी भी अन्य समुदाय से सहयोग, समन्वय या सहभागिता नहीं करते, सिर्फ़ अपनी मनमानी चलाते हैं और उनकी पूरी कोशिश होती है कि अल्पसंख्यक समुदाय (चाहे वे हिन्दू हों, सिख हों या ईसाई हों) पर बेजा दबाव बनाकर उन्हें शरीयत के मुताबिक चलने को बाध्य करें…। आज जो दलित नेता, मुस्लिम वोटों के लिए "तलवे चाटने की प्रतिस्पर्धाएं" कर रहे हैं, उनके अनुयायी दलित भाई इस उदाहरण से समझ लें, कि जब कभी दलितों की जनसंख्या किसी क्षेत्र विशेष में “निर्णायक” नहीं रहेगी, उस दिन यही दलित नेता सबसे पहले उनकी ओर से आँखें फ़ेर लेंगे…
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उन पाठकों के लिए, जिन्हें “दारुल-इस्लाम” जैसे शब्दों का अर्थ नहीं पता… इस्लाम की विस्तारवादी एवं दमनकारी नीतियों सम्बन्धी चन्द परिभाषाएं पेश हैं -
1) उम्मा (Ummah) – एक अरबी शब्द जिसका अर्थ है Community (समुदाय) या राष्ट्र (Nation), परन्तु इसका उपयोग “अल्लाह को मानने वालों” (Believers) के लिए ही होता है… (http://en.wikipedia.org/wiki/Ummah)
2) दारुल इस्लाम (Dar-ul-Islam) – ऐसे तमाम मुस्लिम बहुल इलाके, जहाँ इस्लाम का शासन चलता है, सभी इस्लामिक देश इस परिभाषा के तहत आते हैं।
3) दारुल-हरब (Dar-ul-Harb) – ऐसे देश अथवा ऐसे स्थान, जहाँ शरीयत कानून नहीं चलता, तथा जहाँ अन्य आस्थाओं अथवा अल्लाह को नहीं मानने वाले लोगों का बहुमत हो… अर्थात गैर-इस्लामिक देश।
(http://en.wikipedia.org/wiki/Divisions_of_the_world_in_Islam)
4) काफ़िर (Kafir) – ऐसा व्यक्ति जो अल्लाह के अलावा किसी अन्य ईश्वर में आस्था रखता हो, मूर्तिपूजक हो। अंग्रेजी में इसे Unbeliever कहा जाएगा, यानी “नहीं मानने वाला”। (ध्यान रहे कि इस्लाम के तहत सिर्फ़ “मानने वाले” या “नहीं मानने वाले” के बीच ही वर्गीकरण किया जाता है) (http://en.wikipedia.org/wiki/Kafir).
5) जेहाद (Jihad) – इस शब्द से अधिकतर पाठक वाकिफ़ होंगे, इसका विस्तृत अर्थ जानने के लिए यहाँ घूमकर आएं… (http://en.wikipedia.org/wiki/Jehad)। वैसे संक्षेप में इस शब्द का अर्थ होता है, “अल्लाह के पवित्र शासन हेतु रास्ता बनाना…”
6) अल-तकैया (Al-Taqiya) – चतुराई, चालाकी, चालबाजी, षडयंत्रों के जरिये इस्लाम के विस्तार की योजनाएं बनाना। सुन्नी विद्वान इब्न कथीर की व्याख्या के अनुसार “अल्लाह को मानने वाले”, और “नहीं मानने वाले” के बीच कोई दोस्ती नहीं होनी चाहिए, यदि किसी कारणवश ऐसा करना भी पड़े तो वह दोस्ती मकसद पूरा होने तक सिर्फ़ “बाहरी स्वरूप” में होनी चाहिए…। और अधिक जानिये… (http://en.wikipedia.org/wiki/Taqiyya)
बहरहाल, तमिलनाडु के मेल्विशारम और कील्विशारम के उदाहरणों तथा इन परिभाषाओं से आप जान ही चुके होंगे कि समूचे विश्व को “दारुल इस्लाम” बनाने की प्रक्रिया में अर्थात एक “उम्मा” के निर्माण हेतु “अल-तकैया” एवं “जिहाद” का उपयोग करके “दारुल-हरब” को “दारुल-इस्लाम” में कैसे परिवर्तित किया जाता है…। फ़िलहाल आप चादर तानकर सोईये और इंतज़ार कीजिए, कि कब और कैसे पहले आपके मोहल्ले, फ़िर आपके वार्ड, फ़िर आपकी तहसील, फ़िर आपके जिले, फ़िर आपके संभाग, फ़िर आपके प्रदेश और अन्त में भारत को “दारुल-इस्लाम” बनाया जाएगा…।
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