आसिफ के पास से छह सिम कार्ड मिले, जिसमें से एक पाकिस्तानी कंपनी जोंग का है। इसी नंबर का इस्तेमाल वह पाकिस्तान में बैठे अपने आका आईएसआई अफसर जाहिद से बातचीत में करता था। बाकी सिम कार्ड स्थानीय स्तर पर अपने परिचितों से बातचीत में प्रयोग करता था।
आसिफ वैसे तो मेरठ में खुद को मजदूर की तरह रखता था। सुभाष बाजार स्थित स्प्रिंग बनाने की फैक्ट्री में मजदूरी करता था। वहां उसे 6500 रुपये प्रतिमाह मिलते थे। आईएसआई के संपर्क में आने के बाद उसकी कमाई का ग्राफ बढ़ता गया। कभी वह पाकिस्तान जाकर नकदी लाता, तो कभी उसके खाते में पैसा ट्रांसफर होकर आता रहा। उसमें से कुछ रुपया उन लोगों तक पहुंचाया, जो आईएसआई से जुड़े थे। उसका घर मोहल्ला पूर्वा फैय्याज अली में है, मगर सूत्रों से जानकारी मिली है ऐसा भी हो सकता है कि आसिफ भी पाकिस्तान से आ गया हो और अपने फर्जी दस्तावेज बनवा डाले। उसके पहचान पत्र और अन्य कागजात भी जांच के दायरे में हैं।
पश्चिमी उतर प्रदेश में आईएसआई एजेंटों को शरण देने वालों की सूची तीन साल पहले तैयार हो चुकी है। मेरठ जोन में ऐसे करीब 150 लोग चिह्नित हैं। मगर खुफिया विभाग और पुलिस सिर्फ सूची बनाने तक ही सिमट गई।
कई सैन्य यूनिटों में थी आसिफ की गहरी घुसपैठ
आसिफ अली के पास से मिले दस्तावेज से साबित होता है कि मेरठ ही नहीं पश्चिम यूपी सब एरिया मुख्यालय के अधीन आने वाली सैन्य छावनियों में उसकी गहरी घुसपैठ थी। आसिफ सैन्य जानकारी जुटाने में माहिर था और सेना में कार्यरत लोगों से उसके संपर्क थे। आसिफ के पास से बरामद किया गया सैन्य यूनिट ले-आउट और अहम दस्तावेज बगैर गहरी घुसपैठ के नहीं पाया जा सकता। सैन्य सूत्रों के अनुसार निश्चित तौर पर या तो आसिफ ने खुद उस इंफेंट्री डिवीजन की सैन्य यूनिट का भ्रमण किया होगा या फिर उसे किसी सेना से जुड़े व्यक्ति ने ले-आउट तैयार करके दिया होगा। सवाल खड़ा होता है कि सेना के अंदर कौन है जो इस एजेंट के लिए काम कर रहा है। सूत्रों की मानें तो इससे कतई इंकार नहीं किया जा सकता है कि आसिफ के संपर्क में सैन्य यूनिट के लोग थे। सेना के अंदर ऐसे लोगों को तलाश करना सेना के लिए बड़ी चुनौती है। सेना के लिए चिंता और जांच का विषय है कि आठ साल से आईएसआई के लिए काम कर रहा आसिफ अब तक मेरठ समेत पश्चिम सब एरिया मुख्यालय की अन्य छावनियों के कितने अहम दस्तोवज सीमा पार भेज चुका है।
शातिर आसिफ जितनी बार भी पाकिस्तान गया, हर बार पत्नी रुकसाना कौसर, बेटी और बेटे से मुलाकात का बहाना बनाया। इस बहाने के पीछे उसका मकसद आईएसआई अफसरों से मुलाकात करना होता था।
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कौन है शैतान का उपासक?
ISIS सुन्नी आतंकवादी या मासूम येज़ेदी??
ISIS सुन्नी आतंकवादी कहते हैं की येज़ेदी समुदाय के लोग शैतान के उपासक हैं, और इसलिये उन्हे जीने का कोई हक़ नहीं है पर आप किसी इंसान के कर्म को देख कर ये कह सकते हो की कौन शैतान का उपासक है और कौन भगवान का. अगर येज़ेदी समुदाय के लोग शैतान के उपासक होते तो, आज वो भी आतंकवादी होते..
सिर्फ एग्यारह सौ साल पहले यजीदी धर्म के लोग ईराक जिसे पहले मेसोपोटामिया कहा जाता था, तुर्की, लेबनान में बहुसंख्यक थे .. बहुसंख्यक भी नही कह सकते बल्कि सिर्फ यजीदी ही यहाँ रहते थे ... इनका ही यहाँ राज था ..
फिर धीरे धीरे इस्लाम ने अपनी दस्तक देनी शुरू की ... पहले एक मुस्लिम ने इबादत करने के लिए एक मस्जिद बनाने के लिए जगह देने की गुजारिस की .. यजीदी राजा ने बसरा शहर के बाहर उन्हें एक जगह दे दी ... फिर वो राजा और पुरे यजीदी लोग निश्चिन्त हो गये की ये लोग तो शांतिप्रिय लोग है .. नेक बंदे है ... धरती पर शांतिदूत बनकर आये है
और आज ?वही यजीदी सिकुड़ते सिकुड़ते मात्र एक शहर में कुछ हजार बचे ... आज उन्ही मुस्लिमो के अत्याचारों से त्रस्त होकर एक पहाड़ी पर शरण लिए है ... भूखे प्यासे .. कोई पूछने वाला नही है .
करीब दो हजार यजीदी पुरुषो का कत्लेआम कर दिया गया .. एक हजार से ज्यादा बच्चो को मार डाला गया .. उनकी लडकियों को मुस्लिम लोग सेक्स गुलाम बनाने के लिए अपने साथ लेकर चले गये ...
जो आज इराक़ मैं याजिदीओं के साथ हो रहा है, ठीक वैसा ही ७०० साल पहले भारत मैं हिंदुओं के साथ हुआ था,
ईराक में 500 अल्पसंख्यक याजिदीयों को आतंकी संगठन ISIS ने जिन्दा दफना दिया जिसमे औरते और बच्चे भी शामिल थे और 300 से ज्यादा याजिदी महिलाओं को अपनी हवस मिटाने के लिए अपने साथ ले गये। ईराक में याजिदी समाज के लोगों को ISIS ने इस्लाम कबूल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था, बात न मानने पर इस बर्बरता को अंजाम दिया गया।
लगभग 200000 याजिदी अबतक बेघर हो चुके है। जिनमे 50000 खानाबदोश होकर अपनी जान बचा रहे है। बाकि इस नरसंहार का शिकार हो चुके है। पुरुषों और बच्चो को उसी समय क़त्ल कर दिया जाता है जबकि महिलाओं को बलात्कार करने के बाद या तो अपनी हवस मिटाने के लिये रख लेते हैं या फिर उसे वो लोग दुसरों को बेच देते हैं और ये सब की इजाज़त इस्लाम और क़ुरान देता है . (Quran 23:1-6, Quran 4:3, 4:24, 33:50)
इन याजिदीयों की सुनने वाला अब कोई नहीं है आज ये समुदाय दुनिया से विलुप्त होने की कगार पर है। इंसानियत की दुहाई देकर गाजा के लिए आंसू बहाने वाले मुसलमान इस भीषण नरसंहार पर भी क्या अपना दुःख प्रकट करेंगे, शायद नहीं क्योंकि ये इनके भाई नहीं है।
इराक के आतंकी संगठन ISIS ने एलान किया है कि आनेवाले 5 वर्षो मेँ भारत मेँ इस्लाम का परचम बुलन्दहोगा? और हमारे देश के गद्दार ISIS के इस एलान के बाद ऐसे खुश हो रहे हैँ. जैसे "विष्ठा खा के सूअर" खुश होता हैँ....
केरल के मुस्लिम इंजिनीयरिंग स्कूल में स्वतंत्रता दिवस के बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम में वंदे मातरम नहीं बजने दिया गया। कोल्लम के टीकेएम स्कूल ने इंडिपेंडेंस डे पर छात्र-छात्राओं के डांस के दौरान बैकग्राउंड में वंदे मातरम बजाने की योजना बनाई थी।मुस्लिमो के विरोध के बाद स्कूल प्रबंधन ने इसे हटा दिया. इसके अलावा एक डांस के दौरान नमस्ते की मुद्रा भी थी, उसे भी हटा दिया गया।
मुस्लिम संगठन को वंदे मातरम के शब्दों पर आपत्ति थी। संगठन के नेता एके सलाहुद्दीन ने कहा कि वंदे मातरम और नमस्ते करना उनके विदेशी मजहब इस्लाम के खिलाफ है।
जो चीजे कुरान में नहीं लिखी है वो सब मुसलमानों के लिए हराम है.कुरान में इंजिनियरिंग की पढाई नहीं लिखी है इसलिए यह भी हराम है..
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