Tuesday 5 August 2014

शिखा




हिन्दू धर्म का छोटे से छोटा सिध्दांत,छोटी-से-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी हैं। छोटी सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण,विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती हैं। शिखा का त्याग करना मानो अपने कल्याणका त्याग करना हैं। जैसे घङी के छोटे पुर्जे की जगह बडा पुर्जा काम नहीं कर सकता क्योंकि भले वह छोटा हैं परन्तु उसकी अपनी महत्ता हैं, ऐसे ही शिखा की भी अपनी महत्ता हैं। शिखा न रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्यकिसी साधन से नहीं हो सकती।
'हरिवंश पुराण' में एक कथा आती हैं। हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहू का राज्य छीन लिया। राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी। महर्षिऔर्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आये। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा सगर ने महर्षि और्व से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीखीं। समय पाकर राजा सगरने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया। ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गये। महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें कुछ शर्तों पर उन्हें अभयदान दे दिया। और सगर कोआज्ञा दी कि वे उनको न मारे। राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोङ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे। अत: उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखासहित मुँडवाकर उनकों छोङ दिया।
प्राचीन काल में किसीकी शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था। बङे दुख की बात हैं कि आज हिन्दु लोग अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे है। यह गुलामी की पहचान हैं। शिखा हिन्दुत्व की पहचान हैं। यह आपके धर्म और संस्कृतिकी रक्षक हैं। शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिये पर शिखा नहीं कटवायी।
डा॰ हाय्वमन कहते है -''मैने कई वर्ष भारत मे रहकर भारतीय संस्कृति क अध्ययन किया हैं ,यहाँ के निवासी बहुत काल से चोटी रखते हैं , जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता हैं। दक्षिण में तो आधे सिर पर 'गोखुर' के समान चोटी रखते हैं ।उनकी बुध्दि की विलक्षणता देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हुँ। अवश्य ही बौध्दिक विकास में चोटी बङी सहायता देती हैं । सिर पर चोटी रखना बढा लाभदायक हैं । मेरा तो हिन्दु धर्म में अगाध विश्वास हैं और मैं चोटी रखने का कायल हो गया हूँ । "
प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा॰ आई॰ ई क्लार्क एम॰ डी ने कहा हैं " मैंने जबसे इस विज्ञान की खोज की हैं तब से मुझे विश्वास हो गया हैं कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण हैं। चोटी रखना हिन्दू धर्म ही नहीं , सुषुम्ना के केद्रों की रक्षा केलिये ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार हैं।"
इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वान मि॰ अर्ल थामस लिखते हैं की "सुषुम्ना की रक्षा हिन्दु लोग चोटी रखकर करते हैं जब्की अन्य देशों में लोग सिर पर लम्बे बाल रखकर या हैट पहनकर करते हैं। इन सब में चोटी रखना सबसे लाभकारी हैं। किसी भीप्रकार से सुषुम्ना की रक्षा करना जरुरी हैं।"
वास्तव में मानव-शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया हैं की वह बङे से बङे आघात को भी सहन करके रह जाता हैं परन्तु शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन पर आघात होने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो सकती हैं। इन्हें मर्म-स्थान कहाजाता हैं। शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता हैं, जिसके लिये सुश्रुताचार्य ने लिखा हैं
मस्तकाभ्यन्तरो परिष्टात् शिरा सन्धि सन्निपातों ।
रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सधो मरण्म् ।
अर्थात् मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त(भँवर) होता हैं, वहाँ संपूर्ण नाङियों व संधियों का मेल हैं, उसे 'अधिपतिमर्म' कहा जाता हैं।यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती हैं
(सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : ६.२८)
सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों - कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध हैं और कामेन्द्रियों - हाथ, पैर,गुदा,इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से हैं मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनीही ज्ञानेन्द्रियों और कामेन्द्रियों - की शक्ति बढती हैं। मस्तिष्क ठंडक चाहता हैं और मस्तुलिंग गर्मी मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाने के लिये क्षौर कर्म करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुँचाने के लिये गोखुर के परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता हैं ।बाल कुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं
शिखा रखने के अन्य निम्न लाभ बताये गये हैं -
१॰ शिखा रखने तथा इसके नियमों का यथावत् पालन करने से सद्बुद्धि , सद्विचारादि की प्राप्ति होती हैं।
२॰ आत्मशक्ति प्रबल बनती हैं।
३॰मनुष्य धार्मिक , सात्विक व संयमी बना रहता हैं।
४॰लौकिक - पारलौकिक कार्यों मे सफलता मिलती हैं।
५॰सभी देवी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं।
६॰सुषुम्ना रक्षा से मनुष्य स्वस्थ,बलिष्ठ ,तेजस्वी और दीर्घायु होता हैं।
७नेत्र्ज्योति सुरक्षित रहती हैं।
इस प्रकार धार्मिक,सांस्कृतिक,वैज्ञानिक सभी द्रष्टियों से शिखा की महत्ता स्पष्ट होती हैं। परंतु आज हिन्दू लोग पाश्चात्यों के चक्कर में पङकर फैशनेबल दिखने की होङ में शिखा नहीं रखते व अपने ही हाथों अपनी संस्कृति का त्याग कर डालते हैं।लोग हँसी उङाये, पागल कहे तो सब सह लो पर धर्म का त्याग मत करो। मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाली अपनी हिन्दू संस्कृति नष्ट हो रही हैं। हिन्दु स्वयं ही अपनी संस्कृति का नाश करेगा तो रक्षा कौन करेगा।

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पंचतंत्र की कहानी : चतुर बिल्ली
पंचतंत्र की कहानियां हमें जीवन की कई मूल्यवान बातें बताती है। चतुर बिल्ली कहानी भी पंचतंत्र की ही कहानी है। यह कहानी बताती है कि हमें अपने शत्रुओं से कैसे बचकर रहना चाहिए।
ND
एक चिड़ा पेड़ पर घोंसला बनाकर मजे से रहता था। एक दिन वह दाना पानी के चक्कर में अच्छी फसल वाले खेत में पहुंच गया। वहां खाने पीने की मौज से बड़ा ही खुश हुआ। उस खुशी में रात को वह घर आना भी भूल गया और उसके दिन मजे में वहीं बीतने लगे।
इधर शाम को एक खरगोश उस पेड़ के पास आया जहां चिड़े का घोंसला था। पेड़ जरा भी ऊंचा नहीं था। इसलिए खरगोश ने उस घोंसलें में झांक कर देखा तो पता चला कि यह घोंसला खाली पड़ा है। घोंसला अच्छा खासा बड़ा था इतना कि वह उसमें खरगोश आराम से रह सकता था। उसे यह बना बनाया घोंसला पसंद आ गया और उसने यहीं रहने का फैसला कर लिया।
कुछ दिनों बाद वह चिड़ा खा-खा कर मोटा ताजा बन कर अपने घोंसलें की याद आने पर वापस लौटा। उसने देखा कि घोंसलें में खरगोश आराम से बैठा हुआ है। उसे बड़ा गुस्सा आया, उसने खरगोश से कहा,'चोर कहीं के, मैं नहीं था तो मेरे घर में घुस गए हो? चलो निकलो मेरे घर से, जरा भी शरम नहीं आई मेरे घर में रहते हुए?' खरगोश शान्ति से जवाब देने लगा,'कहां का तुम्हारा घर? कौन सा तुम्हारा घर? यह तो मेरा घर है। पागल हो गए हो तुम। अरे! कुआं, तालाब या पेड़ एक बार छोड़कर कोई जाता हैं तो अपना हक भी गवां देता हैं। यहां तो जब तक हम हैं, वह अपना घर है। बाद में तो उसमें कोई भी रह सकता है। अब यह घर मेरा है। बेकार में मुझे तंग मत करो।'
यह बात सुनकर चिड़ा कहने लगा,'ऐसे बहस करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। किसी धर्मपण्डित के पास चलते हैं। वह जिसके हक में फैसला सुनायेगा उसे घर मिल जाएगा।'
उस पेड़ के पास से एक नदी बहती थी। वहां पर एक बड़ी सी बिल्ली बैठी थी। वह कुछ धर्मपाठ करती नजर आ रही थी। वैसे तो यह बिल्ली इन दोनों की जन्मजात शत्रु है लेकिन वहां और कोई भी नहीं था इसलिए उन दोनों ने उसके पास जाना और उससे न्याय लेना ही उचित समझा। सावधानी बरतते हुए बिल्ली के पास जा कर उन्होंने अपनी समस्या बताई।
उन्होंने कहा,'हमने अपनी उलझन तो बता दी, अब इसका हल क्या है? इसका जबाब आपसे सुनना चाहते हैं। जो भी सही होगा उसे वह घोंसला मिल जाएगा और जो झूठा होगा उसे आप खा लें।''अरे रे !! यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, हिंसा जैसा पाप नहीं इस दुनिया में। दूसरों को मारने वाला खुद नरक में जाता है। मैं तुम्हें न्याय देने में तो मदद करूंगी लेकिन झूठे को खाने की बात है तो वह मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं एक बात तुम लोगों को कानों में कहना चाहती हूं, जरा मेरे करीब आओ तो!!'
खरगोश और चिड़ा खुश हो गए कि अब फैसला हो कर रहेगा। और उसके बिलकुल करीब गए। फिर क्या? करीब आए खरगोश को पंजे में पकड़ कर मुंह से चिड़े को बिल्ली ने नोंच लिया। दोनों का काम तमाम कर दिया। अपने शत्रु को पहचानते हुए भी उस पर विश्वास करने से खरगोश और चिड़े को अपनी जानें गवांनी पड़ीं।
सच है, शत्रु से संभलकर और हो सके तो चार हाथ दूर ही रहने में भलाई होती है।

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8 माह की उम्र में पोलियो से पैर हुए खराब, अब ग्लासगो में जीता सिल्वर...

ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स हैवीवेट पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीतने वाले राजिंदर सिंह रहेलू के दोनों पैर ख़राब हैं। उन्हें आठ महीने की उम्र में ही पोलियो हो गया था। पांच-भाई बहनों में राजिंदर सबसे छोटे हैं। बचपन में घर वाले उन्हें गांव के स्कूल में छोड़ देते थे और छुट्टी के वक्त फिर ले आते थे। स्कूल में जब सभी दोस्त खेल-कूद करते तो वह बेंच पर बैठकर देखा करते थे। पिता रतन बैंड मास्टर थे। घर के हालात इतने अच्छे नहीं थे कि ट्राइसाइकिल खरीद सके। आठवीं के बाद पढ़ाई करने के लिए दूसरे गांव में जाना पड़ा। कुछ दिन तक घरवाले साइकिल से लेकर जाते रहे। लेकिन बाद उन्हें ट्राई साइकिल मिल गई। इससे उनके जीवन में बदलाव आया। .

ग्लासगो से राजिंदर रहेलू ने बताया - ट्राई साइकिल मिलने के बाद जैसे मुझे पैर मिल गए थे। जहां मैं पहले घर से बाहर नहीं निकल पाता था। वहीं अब ट्राइसाइकिल मिलने से पूरे गांव का चक्कर लगाता था। वर्ष 1996 में दोस्त सुरिंद्र राणा से एक दिन मेरी मुलाकात हुई। वह पावर लिफ्टिंग करते थे। मैंने उनसे पूछ लिया कि क्या मेरा भी करियर पावर लिफ्टिंग में बन सकता है। इस पर उन्होंने कहा कि अगले दिन जिम में आना देखते हैं क्या बनता है। पहली बार में मैंने सत्तर किलोग्राम उठा दिया तो राणा ने कहा - तेरा करियर तो बन सकता है। इसके बाद से हाई सेकेंडरी एजुकेशन के बाद पढ़ाई छोड़कर मैंने इसे ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। छह महीने में इतनी प्रैक्टिस की कि 115 किलोग्राम वजन उठना शुरू कर दिया।

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मोदी सरकार ने दी जश्न मनाने वाली खबर।
सेकुलर कीडो के मुह पर कल मोदी सरकार ने बहुत तेज जूता मारते हुए 5 और 10 रुपये
के सिक्को पर हमारे दिल मे बसने वाले हमारे आदर्श शहीद-ऐ-आजम भगत सिह की तश्वीर छापने का आदेश दिया है। जल्द ही सितंबर मे ही यह सिक्के बाजार मे उतार दिए जाएगे।

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यह है नेपाल में जनकपुर में सीता माता का भव्य मंदिर। (यहाँ सीताजी का जन्म हुआ था )
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पाकिस्तान स्थित कटासराज तीर्थ स्थान के संबंध में यह भी मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव का देवी पार्वती के संग विवाह हुआ था।
पाकिस्तान में लाहौर से करीब 270 किलोमीटर की दूरी पर एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह शिव मंदिर कटासराज के नाम से जाना जाता है। कहते हैं इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग स्थित है।ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान पाण्डव करीब 4 चार तक यहां रहे थे और इन्होंने कटासराज शिवलिंग की पूजा की थी।कटासराज में एक अनोखा सरोवर है। इस सरोवर का पानी दोरंगा है। जहां सरोवर कम गहरा है वहां का पानी हरा है जबकि गहराई वाले स्थान का पानी नीला है।इस सरोवर के विषय में मान्यता है कि सती के अत्मदाह करने के बाद महादेव जब सती का शव लेकर भ्रमण कर रहे थे तब उनकी आंखों से दो बूंद आंसू गिर थे। इनमें एक बूंद आंसू से यह सरोवर बन गया। शिव के आंसू का दूसरा बूंद पुष्कर में गिरा था।{ अवतरित } परासर पन्त







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