Saturday, 16 August 2014

विस्थापन की पीड़ा के बीच अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे कश्मीरी विस्थापित पंडितों ने आखिरकार 25 साल बाद बुधवार को अपने हक के लिए लालचौक कूच किया। हालांकि पुलिस ने कश्मीरी पंडितों को लालचौक से मात्र 100 मीटर पहले ही रोक लिया, लेकिन वे
अपनी मांगें सकरार तक पहुंचाने में कामयाब रहे। उन्होंने कश्मीर मंदिर बिल को पारित करने, कश्मीरी पंडितों के धर्मस्थलों पर कब्जों की जांच सहित अन्य मांगें पूरी न होने पर 17 अगस्त से आमरण अनशन पर जाने की चेतावनी दी है।
कश्मीरी पंडितों ने अपने लिए अल्पसंख्यक दर्जे की मांग भी की।वर्ष 1989 में कश्मीर में आतंकवाद के चलते अपने घरों से पलायन को मजबूर हुए कश्मीरी पंडितों विशेषकर उनके
किसी संगठन द्वारा मांगों के समर्थन में लालचौक मार्च या फिर कश्मीर में किसी बड़ी रैली का यह पहला मौका था। ऑल पार्टी कश्मीरी पंडित माइग्रेंट कोऑर्डिनेशन कमेटी ने कश्मीर से पलायन न करने वाले कश्मीरी पंडितों के संगठन कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के साथ मिलकर बुधवार को लाल चौक चलो मार्च का आयोजन किया। सुबह करीब साढ़े
ग्यारह बजे कश्मीरी पंडितों का दल हाथों में बैनर लिए और नारेबाजी करते हुए लाल चौक की तरफ बढ़ा। कश्मीरी पंडितों का इरादा लालचौक मेंस्थित ऐतिहासिक घंटाघर के नीचे धरने पर बैठना था, लेकिन पुलिस ने करीब सौ मीटर पहले ही प्रताप पार्क के निकट धारा 144 का हवाला देकर उनका रास्ता रोक लिया।रैली का नेतृत्व कर रहे कमेटी के चेयरमैन
विनोद पंडित ने कहा कि उन्हें मजबूर होकर इस मार्च का आयोजन करना पड़ा है। राज्य व केंद्र सरकारें कश्मीरी पंडितों को मूर्ख बना रही हैं।
पुनर्वास के नाम पर पंडितों को ठगा जा रहा है और उनकी पहचान को समाप्त किया जा रहा है। हम कश्मीरी पंडितों के लिए सरकारी पत्राचार में इस्तेमाल होने वाले माइग्रेंट व नॉन माइग्रेंट जैसे शब्दों के स्थान पर सिर्फ कश्मीरी पंडित शब्द इस्तेमाल करने और पूरे समुदाय के लिए अल्पसंख्यक का दर्जा मांग रहे हैं। हम चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित संस्थाओं के प्रतिनिधियों या फिर गणमान्य कश्मीरी पंडितों के एक दल को गुलाम कश्मीर और पाकिस्तान भेजा जाए,ताकि ये लोग वहां जाकर संबंधित लोगों के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू करते हुए शारदा पीठ की तीर्थयात्रा को शुरू कर ऐतिहासिकमंदिर की सुरक्षा के लिए प्रयास कर सकें।

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