दुबली-पतली काया, उम्र 12 वर्ष, पढ़ाई में तेज, कार्य की चमक ऐसी कि आंखें चौंधिया जाए। जो भी इनके कार्य को देखता है उनके जज्बे को सलाम किए बगैर अपने को रोक नहीं पाता। यह बात हो रही है बोरसी के पास छोटे से गांव बेहरापाल के स्थानीय सरकारी स्कूल के कक्षा 5वीं में अध्ययनरत रूपेश कुमार साहू की।
जब रूपेश ने घर की बेहद खराब होतीआर्थिक स्थिति को देखा तो कक्षा सातवीं में पढ़ने वाले अपने बड़े भाई टीकूराम (14 वर्ष) के साथ मिलकर छोटे-मोटे काम करके 500 रुपए बचाकर अपने घर में ही टिकिया, बिस्कुट, मुरकु और नड्डा लेकर छोटी सी दुकान खोल ली।
इन दोनों भाइयों का काम करने का जज्बा ऐसा है कि छह महीने में 500 रुपए से खोली दुकान को 5000 रुपए साप्ताहिक खरीदी वाली दुकान बनाकर महीने में 20 हजार का सामान लाना शुरू कर दिया है। ये चार से पांच हजार मासिक आमदनी करने लगे हैं और दोनों भाई अब बड़ी दुकान डालने की सोच रहे हैं। रूपेश और उसका भाई टीकूूबारी-बारी से छुट्टी के दिन या स्कूल के बाद लगभग 15 किलोमीटर दूर राजिम मोटर साइकिल में या बस से आते हैं।
इनको सामान देने वाले थोक व चिह्लर के किराना व्यवसायी ओमप्रकाश सचदेव च उनकी पत्नी श्रीमती ज्योति सचदेच ने जब नईदुनिया संवाददाता से इस नन्हें बालक व्यापारी से मिलवाया तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। इस बालक की मेहनत, ईमानदारी व जज्बे को देखकर मन बाग बाग हो उठा।
इन बालकों की खासियत बताते हुए किराना व्यवसायी ओमप्रकाश सचदेव ने कहा कि वचन व धुन के पक्के ये बच्चे सामान ले जाने के बाद एक हफ्ते में नियत समय पर पूरा पेमेंट कर जाते हैं। बेहद गरीबी स्थिति के मारे बालक रूपेश कुमार ने बहुत ना नुकुर के बाद अपना फोटो खिंचवाया और संवाददाता से यही छत्तीसगढ़ी भाषा में कहते रहा कि- में हा कोनो अतेक बड़े काम नई करत हंव जेमे मोर नाव व फोटू अखबार मे छपही।
पिता मिस्त्री और मां मजदूर
इस नन्हें दुकानदार के पिता का नाम यादराम साहू है जो राजमिस्त्री का काम करते हैं और मां का नाम पुष्पा साहू है जो मेहनत मजदूरी करती है। माता-पिता और तीन भाइयों को मिलाकर पांच लोगों का परिवार है कभी काम मिला तो ठीक, कभी काम नहीं मिला तो खाली बैठना पड़ता है। घर की माली हालत को देखकर रूपेश व उसके भाई ने असंभव को संभव कर दिखाया।
03 Feb 2016 नईदुनिया के अनुसार << सूर्य की किरण >>
इन दोनों भाइयों का काम करने का जज्बा ऐसा है कि छह महीने में 500 रुपए से खोली दुकान को 5000 रुपए साप्ताहिक खरीदी वाली दुकान बनाकर महीने में 20 हजार का सामान लाना शुरू कर दिया है। ये चार से पांच हजार मासिक आमदनी करने लगे हैं और दोनों भाई अब बड़ी दुकान डालने की सोच रहे हैं। रूपेश और उसका भाई टीकूूबारी-बारी से छुट्टी के दिन या स्कूल के बाद लगभग 15 किलोमीटर दूर राजिम मोटर साइकिल में या बस से आते हैं।
इनको सामान देने वाले थोक व चिह्लर के किराना व्यवसायी ओमप्रकाश सचदेव च उनकी पत्नी श्रीमती ज्योति सचदेच ने जब नईदुनिया संवाददाता से इस नन्हें बालक व्यापारी से मिलवाया तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। इस बालक की मेहनत, ईमानदारी व जज्बे को देखकर मन बाग बाग हो उठा।
इन बालकों की खासियत बताते हुए किराना व्यवसायी ओमप्रकाश सचदेव ने कहा कि वचन व धुन के पक्के ये बच्चे सामान ले जाने के बाद एक हफ्ते में नियत समय पर पूरा पेमेंट कर जाते हैं। बेहद गरीबी स्थिति के मारे बालक रूपेश कुमार ने बहुत ना नुकुर के बाद अपना फोटो खिंचवाया और संवाददाता से यही छत्तीसगढ़ी भाषा में कहते रहा कि- में हा कोनो अतेक बड़े काम नई करत हंव जेमे मोर नाव व फोटू अखबार मे छपही।
पिता मिस्त्री और मां मजदूर
इस नन्हें दुकानदार के पिता का नाम यादराम साहू है जो राजमिस्त्री का काम करते हैं और मां का नाम पुष्पा साहू है जो मेहनत मजदूरी करती है। माता-पिता और तीन भाइयों को मिलाकर पांच लोगों का परिवार है कभी काम मिला तो ठीक, कभी काम नहीं मिला तो खाली बैठना पड़ता है। घर की माली हालत को देखकर रूपेश व उसके भाई ने असंभव को संभव कर दिखाया।
03 Feb 2016 नईदुनिया के अनुसार << सूर्य की किरण >>
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