"अगर विज्ञानं के प्रयोग मनुष्य को चाँद तक पहुंचा सकते हैं तो संभव है की आदर्श विचारधारा के व्यवहारिक प्रयोग से इस संसार के परिदृश्य को भी बदला जा सकता है , पर, विज्ञानं और विचारधारा में विषय का अंतर है यही कारन है की विज्ञानं अपने सिद्धांतों को प्रयोगशाला में चूहों पर प्रयोग कर निष्कर्ष तक तो पहुँच सकता है पर आदर्श विचारधारा को व्यवहारिक प्रयोग की सफलता और निष्कर्ष के सही होने के लिए सिंह सी व्यक्तित्व की आवश्यकता होती है।
आज इस देश के युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों को पाना जितना महत्वपूर्ण है और उसके लिए वो जितना प्रयासरत हैं उसके एक छटाक हिस्से जितना ध्यान भी वो अगर देश की सरकार और सरकार के नौकरों के काम काज पर देते तो आज वर्तमान का परिदृश्य ही कुछ और होता; पर देश की फ़िक्र किसे है, सब को पहले अपनी जो पड़ी है ;किसी को पता ही नहीं की अपना क्या है, तभी
सपनों को देखने और सपनों को हकीकत में जीने के बीच विश्वास का अंतर होता है; यही संघर्ष के सन्दर्भ में आत्मविश्वास का महत्व है। जब तक स्वयं पर विश्वास के आधार का बाह्य कारन होगा, वह परिस्थितियों के परिवर्तन से प्रभावित भी होगा , ऐसे में संभव है की संघर्ष के परीक्षा की ऊष्मा में बाह्य विश्वास का आधार ही पिघल जाए इसलिए जब तक स्वयं पर विश्वास करने के लिए बाह्य करक महत्वपूर्ण होंगे , व्यक्ति का आत्मविश्वास खोखला और व्यक्ति व्यचारिक रूप से दुर्बल होगा। यही संघर्ष की प्रक्रिया में प्रतिभाओं की विफलता का कारण भी !
स्वयं की सत्यता का ज्ञान आत्मविश्वास के लिए महत्वपूर्ण है और तभी जीवन के लिए लक्ष्य और उद्देश्य का अंतर स्पष्ट हो पायेगा।
सत्य, विश्वास, प्रेम और प्रयास की निष्ठां संसार के हर धर्म ने मानवता को यही सीख दी है पर जब से नौकरी की प्राप्ति पढाई का उद्देश्य बना , सीखना कठिन हो गया है।
आज जीवन कुंठित है क्योंकि हम जीवन में प्रयोगों की सम्भावना से भी प्रतिरक्षित हैं; दोष अनुभव के ज्ञान का ही है अन्यथा ज्ञान के अनुभव ने तो सैदाव ही नए को जन्म दिया है ! "
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