विश्व की पहली स्मार्ट सिटी है अयोध्या
वाल्मीकि रामायण के पांचवे सर्ग में अयोध्या पुरी का वर्णन विस्तार से किया गया है। आइए जानते हैं क्यों थी अयोध्या दुनिया की सबसे पुरानी स्मार्ट सिटी।
वाल्मीकि जी सड़कों की सफाई और सुंदरता के बारे में लिखते हैं :
साकेतपुरी अयोध्या का वर्णन करते हुए महर्षि वाल्मीकि, रामायण के बालकांड के पांचवें सर्ग के पांचवें श्लोक में लिखते हैं :
”कोसल नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान। निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान्।। (1/5/5)
अर्थात : सरयू नदी के तट पर संतुष्ट जनों से पूर्ण धनधान्य से भरा-पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कोसल नामक एक बड़ा देश था। वाल्मीकि आगे लिखते हैं –
”इसी देश में मनुष्यों के आदिराजा प्रसिद्ध महाराज मनु की बसाई हुई तथा तीनों लोकों में विख्यात अयोध्या नामक एक नगरी थी। (1/5/6)
नगर की लंबाई चौड़ाई और सड़कों के बारे में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं –
”यह महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इस नगरी में सुंदर, लंबी और चौड़ी सड़कें थीं। (1/5/7)
अयोध्या नगरी
वाल्मीकि जी सड़कों की सफाई और सुंदरता के बारे में लिखते हैं :
”वह पुरी चारो ओर फैली हुई बड़ी-बड़ी सड़कों से सुशोभित थी। सड़कों पर नित्य जल छिड़का जाता था और फूल बिछाये जाते थे। (1/5/8)
महर्षि आगे लिखते हैं – ”इंद्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने उस पुरी को सजाया था। इस पुरी में राज्य को खूब बढ़ाने वाले महाराज दशरथ उसी प्रकार रहते थे जिस प्रकार स्वर्ग में इन्द्र वास करते हैं।” (1/5/9)
साकेत पुरी की सुंदरता का बखान करते हुए वाल्मीकि लिखते हैं :
”इस पुरी में बड़े-बड़े तोरण द्वार, सुंदर बाजार और नगरी की रक्षा के लिए चतुर शिल्पियों द्वारा बनाए हुए सब प्रकार के यंत्र और शस्त्र रखे हुए थे।” (1/5/11)
उसमें सूत, मागध बंदीजन भी रहते थे, वहां के निवासी अतुल धन सम्पन्न थे, उसमें बड़ी-बड़ी ऊंची अटारियों वाले मकान जो ध्वजा पताकाओं से शोभित थे और परकोटे की दीवालों पर सैकड़ों तोपें चढ़ी हुई थीं। (1/5/12)
नगर के बागों उद्यानों पर प्रकाश डालते हुए महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं :
”स्त्रियों की नाट्य समितियों की भी यहां कमी नहीं है और सर्वत्र जगह-जगह उद्यान निर्मित थे। आम के बाग नगरी की शोभा बढ़ाते थे। नगर के चारो ओर साखुओं के लंबे-लंबे वृक्ष लगे हुए ऐसे जान पड़ते थे मानो अयोध्या रूपिणी स्त्री करधनी पहने हो।” (1/5/13)
अयोध्या में खुदाई से प्राप्त विष्णुहरि शिलालेख
नगर की सुरक्षा और पशुधन का वर्णन करते हुए महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं :
”यह नगरी दुर्गम किले और खाई से युक्त थी तथा उसे किसी प्रकार भी शत्रु जन अपने हाथ नहीं लगा सकते थे। हाथी, घोड़े, बैल, ऊंट, खच्चर जगह-जगह दिखाई पड़ते थे। (1/5/14)
”राजभवनों का रंग सुनहला था, विमान गृह जहां देखो वहां दिखाई पड़ते थे।” (1/5/16)
”उसमें चौरस भूमि पर बड़े मजबूत और सघन मकान अर्थात बड़ी सघन बस्ती थी। कुओं में गन्ने के रस जैसा मीठा जल भरा हुआ था।” (1/5/17)
”नगाड़े, मृदंग, वीणा, पनस आदि बाजों की ध्वनि से नगरी सदा प्रतिध्वनित हुआ करती थी। पृथ्वीतल पर तो इसकी टक्कर की दूसरी नगरी थी ही नहीं।” (1/5/18)
”उस उत्तम पुरी में गरीब यानी धनहीन तो कोई था ही नहीं, बल्कि कम धन वाला भी कोई न था, वहां जितने कुटुम्ब बसते थे, उन सब के पास धन-धान्य, गाय, बैल और घोड़े थे।(1/6/7)
ऐसे निर्मित हुई अयोध्या
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार ब्रह्माजी के पास पहुंचकर मनु ने सृष्टिलीला में निरत होने के लिए उपयुक्त स्थान सुझाने का आग्रह किया। इसपर ब्रह्माजी उन्हें लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने मनु को आश्वासन दिया कि समस्त ऐश्वर्यसंपूर्ण साकेतधाम मैं अयोध्यापुरी भूलोक में प्रदान करता हूं।
भगवान विष्णु ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा जी तथा मनु के साथ देवशिल्पी विश्वकर्मा को भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढ़ने के लिए महर्षि वसिष्ठ को भी उनके साथ भेजा। मान्यता है कि वसिष्ठ द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया जहां विश्वकर्मा ने नगर का निर्माण किया। स्कंद पुराण के अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है। इसी पुराण के अनुसार अयोध्या में ‘अ’ कार ब्रह्मा, ‘य’ कार विष्णु और ‘ध’ कार रुद्र का ही रूप है।
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