Tuesday 27 March 2018

पश्चिम बंगाल की एक क्रिश्चियन आदिवासी महिला जिसका नाम मोनिका बेसरा था।उसे टीबी और पेट में ट्यूमर हो गया था। बेलूरघाट के सरकारी अस्पताल के डॉ. रंजन मुस्ताफ़ उसका इलाज कर रहे थे। उनके इलाज से 
मोनिका को काफ़ी फ़ायदा हो रहा था और एक बीमारी लगभग ठीक हो गई थी। 
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अचानक एक दिन मोनिका बेसरा ने अपने लॉकेट में 
मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उसका ट्यूमर पूरी 
तरह से ठीक हो गया। मिशनरी द्वारा मोनिका बेसरा के 
ठीक होने को चमत्कार एवं मदर टेरेसा को संत के रूप में 
प्रचारित करने का बहाना मिल गया। 
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यह चमत्कार का दावा हमारी समझ से परे है। 
जिन मदर टेरेसा को जीवन में अनेक बार चिकित्सकों की आवश्यकता पड़ी थी। 
उन्हीं मदर टेरेसा की कृपा से ईसाई समाज उनके नाम से प्रार्थना करने वालो को बिना दवा केवल दुआ से, चमत्कार से ठीक होने का दावा करता होना मानता है।

अगर कोई हिन्दू बाबा चमत्कार द्वारा किसी रोगी के ठीक होने का दावा करता है तो सेक्युलर लेखक उस पर खूब चुस्कियां लेते है। 
मगर जब पढ़ा लिखा ईसाई समाज ईसा मसीह से लेकर अन्य ईसाई मिशनरियों द्वारा चमत्कार होने एवं उससे सम्बंधित मिशनरी को संत घोषित करने का महिमा मंडन करता है तो उसे कोई भी सेक्युलर लेखक दबी जुबान में भी इस तमाशे को अन्धविश्वास नहीं कहता।
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जब मोरारजी देसाई की सरकार में सांसद ओमप्रकाश त्यागी द्वारा धर्म स्वातंत्रय विधेयक के रूप में धर्मान्तरण के विरुद्ध बिल पेश हुआ तो इन्ही मदर टेरेसा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर इस विधेयक का विरोध किया और 
कहाँ था की ईसाई समाज सभी समाज सेवा की गतिविधिया जैसे की शिक्षा, रोजगार, अनाथालय आदि को बंद कर देगा। 
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अगर उन्हें अपने ईसाई मत का प्रचार करने से रोका जायेगा। 
तब प्रधान मंत्री देसाई ने कहाँ था 
इसका अर्थ क्या यह समझा जाये की ईसाईयों द्वारा की जा रही समाज सेवा एक दिखावा मात्र है। 
उनका असली प्रयोजन तो धर्मान्तरण हैं। 
देश के तत्कालीन प्रधान मंत्री का उत्तर ईसाई समाज की सेवा के आड़ में किये जा रहे धर्मान्तरण को उजागर करता है।
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इस लेख को पढ़कर हिन्दुओं का धर्मान्तरण करने वाली मदर टेरेसा को कितने लोग संत मानना चाहेंगे?
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क्योंकि हिन्दू संगठन जो भी बोलते या लिखते हैं, 
उसे तत्काल सांप्रदायिक ठहरा दिये जाने का “फैशन” है!!

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