हिन्दू चिंतन के मार्ग पर चलते हुए हमें विश्व को मार्गदर्शन करने वाला भारत खड़ा करना है :
RSS सरकार्यवाह भय्याजी जोशी
भारत की परंपरा हमेशा देने की रही हैं. हम कभी भी कहीं लेने नहीं गए. जिस प्रकार की स्पर्धा का युग हम आज देख रहे है, उसमें सही दिशा देने वाला भारत ही हैं. आज विश्व मानता है कि समस्त मानवजाति के लिये मार्गदर्शक भारत ही बन सकता हैं. कोई भी परम्परा, जीवन शैली वर्षानुवर्ष में बनती है, यह कोई पाठ्यक्रम का विषय नहीं है, समाज जीवन विकसित होते होते हम यहां तक पहुंचे है. आज विश्व मानता है भारत की यह विशेषता समस्त मानवजाति का मार्गदर्शक बन सकती है. हम अपने आपको हिन्दू कहते हैं तो यह हमारे लिए गौरव का, स्वाभिमान का विषय है.
मानव इतिहास में संघर्ष हमेशा होता रहा है. धर्मग्रंथों के अनुसार ध्यान में आता है कि दैवी शक्ति के सामने हमेशा आसुरी शक्ति, सत्य के सामने असत्य, धर्म के सामने अधर्म हमेशा खड़ा रहा है. लेकिन इतिहास में जीत हमेशा सत्य, न्याय तथा धर्म की ही हुई है.
अगर हम अपने इतिहास को देखते है तो ध्यान में आता है कि निरंतर आक्रमण झेलते हुए भी हम अपने अस्तित्व को बचाने में सफल हुए. हमारा अस्तित्व नामशेष नहीं हुआ. उसका एक कारण है हमारी समाज व्यवस्था विकेन्द्रित हैं. अतः हमारे आस्था केन्द्रों पर आक्रमण हुए, श्रद्धा स्थान तोड़े गए, लेकिन समाज व्यवस्था सलामत रही, आस्था केन्द्र फिर से खड़े हुए.आक्रांताओं ने हमारा ज्ञान समाप्त करने का प्रयत्न किया, नालंदा-तक्षशिला के हजारों ग्रंथों को अग्नि को समर्पित कर दिया गया. लेकिन समाज समाप्त नहीं हुआ. सिकंदर की कथा है ” किसी ने सिकंदर से कहा यदि हिन्दुओं के वेद ग्रंथों को समाप्त कर दिया जाये तो समाज समाप्त हो जायेगा. एक पंडितजी जिनके यहां वेद ग्रन्थ थे, उनकी कुटिया में सैनिकों को भेजा गया. सैनिकों ने कहा हमारे महाराज ने वेद ग्रन्थ मंगवाये है. पंडितजी ने अगले दिन सुबह आने को कहा, पूरी रात सैनिक कुटिया को धेरे रहे कहीं पंडित ग्रंथो को लेकर भाग न जाये. सुबह जब सैनिकों ने कुटिया में प्रवेश किया तो देखा पंडितजी वेद ग्रन्थ का अंतिम पेज अग्नि को समर्पित कर रहे थे. सैनिकों के नाराज होने पर उन्होंने कहा मेरे पुत्र को आप ले जाओ उसे वेद कंठस्ठ है तात्पर्य यह है कि वेदों को ले जाने से ज्ञान समाप्त नहीं हो जाता.”
आक्रांताओं ने समाज को मानसिक रूप से गुलाम बनाने का प्रयास किया, सुख सुविधाएं प्रदान करो और समाज को बांटो, नयी शिक्षण प्रणाली अंग्रेजों द्वारा लागू की गई, अंग्रेज सेवा के माध्यम से आये हिन्दू समाज को धर्मांतरण के माध्यम से तोड़ने का प्रयास किया गया. कुछेक अपवादों को छोड़कर वे इसमें भी सफल नहीं हुए. हमारे समाज में कई कमियां रही हैं तथा हैं. परन्तु हमारे समाज की बहुकेंद्रित व्यवस्था के तहत धर्म ग्रंथों, समाज सुधारकों, साधू संतों के माध्यम से समाज को जोड़ने का प्रयत्न निरंतर चलता रहा. राजा आये चले गए, लेकिन राष्ट्र खड़ा रहा. समाज पर आने वाली बाधाओं को पार करते हुए हमें आगे बढ़ना है, यही भारत की नियति है, भारत को मालूम है, उसे कहां जाना है. हिमालय से निकलने वाले जलप्रवाह को मालूम है, उसको कहां पहुंचना है उसका गंतव्य समुद है. जल का स्वाभाव है बाधाओं के सामने वह रुकता नहीं है, वह अपने गंतव्य तक पहुंचता ही है.
व्यक्तिगत जीवन में संस्कार किसी पाठशाला में नहीं मिलते, उसकी कोई परीक्षा नहीं होती, उसका संबंध व्यवहार से जुडा है. संस्कारों की शिक्षा मंदिरों, आश्रमों तथा परिवार में ही प्राप्त होती है. आज देवालय व्यवस्था में आई कमियां हमारे लिए चिंता का कारण है. धार्मिक आस्था के केंद्र कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हो तो समाज को पीड़ा होती है. सामान्य व्यक्ति को आघात लगता है. मंदिर केवल कर्मकांड के स्थान नहीं बनने चाहिए. वहां से समाज को निरंतर प्रबोधन होना चाहिए. पहले यह निरंतर होता था. वह प्रभावी रूप से पुनः प्रारंभ होना चाहिए.
हमारे विद्यालय व्यक्ति निर्माण का केंद्र होने चाहिए. हमें यह ध्यान रखना होगा कि शिक्षा व्यवसाय न बन जाये. शिक्षा व्यवस्था में आई कमी वर्तमान में हम सबके सामने चुनौती है. शिक्षण संस्थाओ में डॉक्टर्स, इंजीनियर नहीं मनुष्य बनने चाहिए. समाज उत्थान का केंद्र विद्यालय रहे है उसमें आई विकृतियों को दूर करना है. यह कार्य समय समय पर समाज ने किया है. केवल राजनेता यह नहीं कर सकते. राजा के कार्य की अपनी सीमाएं है. हमारी व्यवस्था राज केन्द्रित नहीं, बल्कि समाज केन्द्रित रही है.
मारी परिवार व्यवस्था में श्रेष्ठ बातों को पीढ़ी दर पीढ़ी संकलित करने की व्यवस्था थी. उसमें कुछ दोष आ गए है. वह भी ठीक करने की आवश्यकता है. आज हमारे ऊपर अलग प्रकार के आक्रमण हो रहे है. हमारी जीवन व्यवस्था, जीवन शैली, नैतिक मूल्यों पर आज चारों तरफ से भीषण आक्रमण हो रहे है. शस्त्रों के आक्रमण को समझा जा सकता है, परन्तु मूल्यों पर होने वाले आक्रमणों को समझना हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है.आज के आक्रमणों का स्वरुप मनुष्य को पशुता की ओर ले जाने वाला है. सावधान हुए बिना इससे बच नहीं सकते. आज देश की सभी समस्याओं का कारण, जीवन मूल्यों में नैतिकता का क्षय है. परिवार व कुटुंब व्यवस्था ही इन सब आक्रमणों से सुरक्षित रख सकती है. हमारे यहां चिंतकों ने हम सबके अन्दर एक दृष्टी विकसित की है, एक चिंतन सबके सामने रखा है जो विश्व कल्याण की कामना करता है. हमने कहा है ‘शत्रुबुद्धिविनाशाय’ हम किसी के शत्रु नहीं है, इस सन्देश को यदि दुनिया स्वीकार ले तो कहीं भी शस्त्रों की आवश्यकता नहीं है. भारत का चिंतन कहता है सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय यानि पूरे विश्व के कल्याण की कामना हमारा चिंतन करता है.
हमारे यहां प्रकृति में मानव जाति के कल्याण का विचार किया गया है. परन्तु आज आज वर्तमान पीढ़ी प्रकृति संसाधनों पर अपना अधिकार मानती है. ऐसे लोग विश्व का कल्याण नहीं कर सकते. जितना अधिक से अधिक हो सके लेने की होड़ लगी है. यह गलत अवधारणा है. आने वाली पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संशाधनों की चिंता वर्तमान पीढ़ी को करनी होगी. जितनी आवश्यकता है उतना ही लूंगा यह विश्व को बताना है. आने वाले कालखंड में यदि विश्व में कहीं गलत होता है तो उसका मार्गदर्शन करने का दायित्व हमारा ही होगा, अपने सही आचरण से हमें विश्व को मार्ग बताना है.
भारत की परंपरा हमेशा देने की रही हैं. हम कभी भी कहीं लेने नहीं गए. जिस प्रकार की स्पर्धा का युग हम आज देख रहे है, उसमें सही दिशा देने वाला भारत ही हैं. आज विश्व मानता है कि समस्त मानवजाति के लिये मार्गदर्शक भारत ही बन सकता हैं. कोई भी परम्परा, जीवन शैली वर्षानुवर्ष में बनती है, यह कोई पाठ्यक्रम का विषय नहीं है, समाज जीवन विकसित होते होते हम यहां तक पहुंचे है. आज विश्व मानता है भारत की यह विशेषता समस्त मानवजाति का मार्गदर्शक बन सकती है. हम अपने आपको हिन्दू कहते हैं तो यह हमारे लिए गौरव का, स्वाभिमान का विषय है.
मानव इतिहास में संघर्ष हमेशा होता रहा है. धर्मग्रंथों के अनुसार ध्यान में आता है कि दैवी शक्ति के सामने हमेशा आसुरी शक्ति, सत्य के सामने असत्य, धर्म के सामने अधर्म हमेशा खड़ा रहा है. लेकिन इतिहास में जीत हमेशा सत्य, न्याय तथा धर्म की ही हुई है.
अगर हम अपने इतिहास को देखते है तो ध्यान में आता है कि निरंतर आक्रमण झेलते हुए भी हम अपने अस्तित्व को बचाने में सफल हुए. हमारा अस्तित्व नामशेष नहीं हुआ. उसका एक कारण है हमारी समाज व्यवस्था विकेन्द्रित हैं. अतः हमारे आस्था केन्द्रों पर आक्रमण हुए, श्रद्धा स्थान तोड़े गए, लेकिन समाज व्यवस्था सलामत रही, आस्था केन्द्र फिर से खड़े हुए.आक्रांताओं ने हमारा ज्ञान समाप्त करने का प्रयत्न किया, नालंदा-तक्षशिला के हजारों ग्रंथों को अग्नि को समर्पित कर दिया गया. लेकिन समाज समाप्त नहीं हुआ. सिकंदर की कथा है ” किसी ने सिकंदर से कहा यदि हिन्दुओं के वेद ग्रंथों को समाप्त कर दिया जाये तो समाज समाप्त हो जायेगा. एक पंडितजी जिनके यहां वेद ग्रन्थ थे, उनकी कुटिया में सैनिकों को भेजा गया. सैनिकों ने कहा हमारे महाराज ने वेद ग्रन्थ मंगवाये है. पंडितजी ने अगले दिन सुबह आने को कहा, पूरी रात सैनिक कुटिया को धेरे रहे कहीं पंडित ग्रंथो को लेकर भाग न जाये. सुबह जब सैनिकों ने कुटिया में प्रवेश किया तो देखा पंडितजी वेद ग्रन्थ का अंतिम पेज अग्नि को समर्पित कर रहे थे. सैनिकों के नाराज होने पर उन्होंने कहा मेरे पुत्र को आप ले जाओ उसे वेद कंठस्ठ है तात्पर्य यह है कि वेदों को ले जाने से ज्ञान समाप्त नहीं हो जाता.”
आक्रांताओं ने समाज को मानसिक रूप से गुलाम बनाने का प्रयास किया, सुख सुविधाएं प्रदान करो और समाज को बांटो, नयी शिक्षण प्रणाली अंग्रेजों द्वारा लागू की गई, अंग्रेज सेवा के माध्यम से आये हिन्दू समाज को धर्मांतरण के माध्यम से तोड़ने का प्रयास किया गया. कुछेक अपवादों को छोड़कर वे इसमें भी सफल नहीं हुए. हमारे समाज में कई कमियां रही हैं तथा हैं. परन्तु हमारे समाज की बहुकेंद्रित व्यवस्था के तहत धर्म ग्रंथों, समाज सुधारकों, साधू संतों के माध्यम से समाज को जोड़ने का प्रयत्न निरंतर चलता रहा. राजा आये चले गए, लेकिन राष्ट्र खड़ा रहा. समाज पर आने वाली बाधाओं को पार करते हुए हमें आगे बढ़ना है, यही भारत की नियति है, भारत को मालूम है, उसे कहां जाना है. हिमालय से निकलने वाले जलप्रवाह को मालूम है, उसको कहां पहुंचना है उसका गंतव्य समुद है. जल का स्वाभाव है बाधाओं के सामने वह रुकता नहीं है, वह अपने गंतव्य तक पहुंचता ही है.
व्यक्तिगत जीवन में संस्कार किसी पाठशाला में नहीं मिलते, उसकी कोई परीक्षा नहीं होती, उसका संबंध व्यवहार से जुडा है. संस्कारों की शिक्षा मंदिरों, आश्रमों तथा परिवार में ही प्राप्त होती है. आज देवालय व्यवस्था में आई कमियां हमारे लिए चिंता का कारण है. धार्मिक आस्था के केंद्र कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हो तो समाज को पीड़ा होती है. सामान्य व्यक्ति को आघात लगता है. मंदिर केवल कर्मकांड के स्थान नहीं बनने चाहिए. वहां से समाज को निरंतर प्रबोधन होना चाहिए. पहले यह निरंतर होता था. वह प्रभावी रूप से पुनः प्रारंभ होना चाहिए.
हमारे विद्यालय व्यक्ति निर्माण का केंद्र होने चाहिए. हमें यह ध्यान रखना होगा कि शिक्षा व्यवसाय न बन जाये. शिक्षा व्यवस्था में आई कमी वर्तमान में हम सबके सामने चुनौती है. शिक्षण संस्थाओ में डॉक्टर्स, इंजीनियर नहीं मनुष्य बनने चाहिए. समाज उत्थान का केंद्र विद्यालय रहे है उसमें आई विकृतियों को दूर करना है. यह कार्य समय समय पर समाज ने किया है. केवल राजनेता यह नहीं कर सकते. राजा के कार्य की अपनी सीमाएं है. हमारी व्यवस्था राज केन्द्रित नहीं, बल्कि समाज केन्द्रित रही है.
मारी परिवार व्यवस्था में श्रेष्ठ बातों को पीढ़ी दर पीढ़ी संकलित करने की व्यवस्था थी. उसमें कुछ दोष आ गए है. वह भी ठीक करने की आवश्यकता है. आज हमारे ऊपर अलग प्रकार के आक्रमण हो रहे है. हमारी जीवन व्यवस्था, जीवन शैली, नैतिक मूल्यों पर आज चारों तरफ से भीषण आक्रमण हो रहे है. शस्त्रों के आक्रमण को समझा जा सकता है, परन्तु मूल्यों पर होने वाले आक्रमणों को समझना हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है.आज के आक्रमणों का स्वरुप मनुष्य को पशुता की ओर ले जाने वाला है. सावधान हुए बिना इससे बच नहीं सकते. आज देश की सभी समस्याओं का कारण, जीवन मूल्यों में नैतिकता का क्षय है. परिवार व कुटुंब व्यवस्था ही इन सब आक्रमणों से सुरक्षित रख सकती है. हमारे यहां चिंतकों ने हम सबके अन्दर एक दृष्टी विकसित की है, एक चिंतन सबके सामने रखा है जो विश्व कल्याण की कामना करता है. हमने कहा है ‘शत्रुबुद्धिविनाशाय’ हम किसी के शत्रु नहीं है, इस सन्देश को यदि दुनिया स्वीकार ले तो कहीं भी शस्त्रों की आवश्यकता नहीं है. भारत का चिंतन कहता है सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय यानि पूरे विश्व के कल्याण की कामना हमारा चिंतन करता है.
हमारे यहां प्रकृति में मानव जाति के कल्याण का विचार किया गया है. परन्तु आज आज वर्तमान पीढ़ी प्रकृति संसाधनों पर अपना अधिकार मानती है. ऐसे लोग विश्व का कल्याण नहीं कर सकते. जितना अधिक से अधिक हो सके लेने की होड़ लगी है. यह गलत अवधारणा है. आने वाली पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संशाधनों की चिंता वर्तमान पीढ़ी को करनी होगी. जितनी आवश्यकता है उतना ही लूंगा यह विश्व को बताना है. आने वाले कालखंड में यदि विश्व में कहीं गलत होता है तो उसका मार्गदर्शन करने का दायित्व हमारा ही होगा, अपने सही आचरण से हमें विश्व को मार्ग बताना है.
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