राणा कुम्भा: ऐसे राजपूत शासक जो कभी नहीं हारे, लेकिन…
सूर्योदय का वक्त था.
राणा कुम्भा का पुत्र ऊदा सिंह भगवान शिव के मंदिर में अपनी पीठ के पीछे तलवार लिए किसी का इंतजार कर रहा था. इतने में उसने किसी के आने की आहट के सुनी और शिवलिंग के पीछे जाकर छिप गया.
मंदिर के अंदर जैसे वह शख्स आया ऊदा सिंह ने उसकी गतिविधियों पर चुपचाप नज़र रखना शुरु कर दिया. अगली कड़ी में जैसे ही वह शख्स शिवलिंग के सामने अपना शीश झुकाया, उदय सिंह ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया.
आपको जानकर हैरानी होगी यह व्यक्ति कोई और नहीं राणा कुम्भा थे. इस तरह राणा के बेटे ऊदा सिंह ने अपने ही पिता को मौत के घाट उतार वह कर दिया था, जो जंग में न तो मुगल शासक कर सके और न ही कोई और दुश्मन!
आप सोच में पड़ गए होंगे कि एक बेटा अपने बाप की गर्दन कैसे काट सकता है!
आखिर ऐसा क्या कारण रहे होंगे कि ऊदा सिंह ने अपने पिता को मौत के घाट उतारकर अपना नाम इतिहास में काली सियाही से लिखवा लिया.
बहरहाल, यह जानने से पहले ‘राणा कुम्भा’ को जानना होगा–
कौन थे राणा कुम्भा?
राणा कुम्भा को कुम्भकरण और कँहू राणा कुम्भा के नाम से भी जाना जाता है. उनका जन्म चितौड़ के राजा राणा मोकल के घर में हुआ था. चूंकि उनके पिता एक प्रतापी राजा थे इस लिहाज से वीरता उन्हें विरासत में ही मिल गयी थी. आगे 1431 ई. में उनके पिता की मृत्यु हो गई, तो 1433 में वह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे और सबसे पहले अपने दुश्मन देवड़ा चौहानों को हराकर आबू पर अपना कब्जा जमाया.
इसके बाद वह मालवा की तरफ आगे बढ़े और सुलतान महमूद खिलजी को बुरी तरह से हार का स्वाद चखाया. अपनी इस जीत को यादगार बनाने के लिए उन्होंने चित्तौड़ में एक कीर्तिस्तंभ बनवाया, जोकि बहुत विख्यात है.
आगे भी उनकी जीत का सिलसिला चलता रहा.
उन्होंने नागौर, नराणा, सारंगपुर, अजमेर, बूंदी, खाटू, चाटूस, मंडोर, मोडालगढ़ जैसे मजबूत क्षेत्रों पर अपना झंडा फहराया. यही नहीं उन्होंने दिल्ली के सुलतान सैयद मुहम्मद शाह को भी अपना लोहा मनवाया. कहते हैं कि उनके दुश्मनों ने उन्हें कई बार हराने की कोशिश की, किंतु वह अपने मंसूबों में सफल नहीं रहे.
हर बार राणा ने उनको खदेड़ दिया.
दुश्मन एकजुट हो गए, लेकिन…
राणा के विजय अभियान में 1455 की नगौर की लड़ाई को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. इस युद्ध में उन्होंने वहां के राजा मुजाहिद खां को पराजित कर शम्स खां को वहां का राजा बना दिया. उन्हें लगा था कि शम्स उनके साथ वफादारी करेगा, किन्तु उसने सत्ता पर बैठते ही राणा के साथ बगावत कर दी.
उसको सबक सिखाने के लिए राणा ने दोबारा से नागौर पर चढ़ाई कर दी.
नतीजा यह रहा कि शम्स अपनी जान बचाकर गुजरात के बादशाह कुतुबुद्दीन के पास जा पहुंचा. फिर उसकी सेना के साथ राणा का सामना करने आया. उसे लगा था कि वह राणा से युद्ध जीत लेगा, लेकिन राणा की तलवार ने उसकी सेना के छक्के छुड़ा दिए.
अंतत: यह युद्ध राणा के नाम रहा. यह समाचार जैसे ही गुजरात के राजा कुतुबुद्दीन को मिला, उसने 1456ईं में राणा पर खुद धावा बोल दिया. राणा ने उसे भी धूल चटा दी और आगे बढ़ गए.
चूंकि, राणा नागौर के युद्ध में व्यस्त थे, इसलिए मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने इस मौके का फायदा उठाया और उनके कई राज्यों पर कब्जा कर लिया. हालांकि, 1458 में राणा ने अपना साहस दिखाते हुए अपने खोए हुए राज्यों को वापस हासिल कर लिया.
आखिर क्यों उनका अपना पुत्र बना ‘मौत का कारण’?
35 वर्ष की अल्पायु में नगौर जैसे कई युद्ध अपने नाम करने के कारण राणा कुम्भा राजस्थान के एक ऐसे शासक बन चुके थे, जिनको हराना नामुमकिन सा बन गया!
यही नहीं उन्होंने अपने शासन काल में प्रजा के लिए कुछ ऐसे कार्य किए, जिनके चलते वह उनके दिलों के भी राजा बन गए. उनके द्वारा मेवाड़ में कुल बत्तीस दुर्ग बनाए गए. इनमें चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ कुछ बड़े उदाहरण हैं.
इस प्रकार राणा की यशकीर्ति चारों ओर फैल गई. साथ ही यह संदेश गया कि जब तक वह जिंदा है, तक तक मेवाड़ की गद्दी पर दूसरा कोई नहीं बैठ सकता. यह संदेश शायद राणा कुम्भा के बड़े बेटे ‘ऊदा सिंह’ के गले से नहीं उतरा.
वह राणा के विपरीत अति महत्वाकांक्षी और क्रूर था. वह मेवाड़ की बागड़ोर अपने हाथों में चाहता था, जोकि पिता के होते हुए संभव नहीं था. उसने सोचा कि जब तक राणा जिंदा हैं, वह राजा नहीं बन सकता.
मुश्किल यह थी कि उन्हें मारना किसी के बस की बात नहीं थी.
इस कारण उसने खुद ही अपने पिता की मौत की साजिश रच डाली. वह जानता था कि उसके पिता रोज सुबह पूजा के लिए अपने भवन के पास मौजूद मंदिर में जाते हैं.
यही एक समय होता था, जब उनके साथ तलवार नहीं होती थी!
इस लिहाज से उनके पुत्र ऊदा सिंह ने इसके लिए पूरी योजना बनाई और मंदिर जैसे पवित्र स्थान को 1468 में अपने पिता के खून से लाल कर दिया.
राणा की मौत के बाद क्या..?
पिता की मौत के बाद ऊदा सिंह सत्ता काबिज करने में तो सफल रहा, लेकिन वह उस गद्दी को अच्छे से संभाल नहीं पाया. अपनी कमजोर पकड़ और अकुशलता के कारण उसने अपने शासन के पांच साल के भीतर ही मेवाड़ के बड़े हिस्सों को खो दिया.
दिलचस्प बात तो यह थी कि उसकी मौत भी अजीब ढंग से हुई. कहते हैं कि वह एक दिन अपने महल परिसर के बाहर था, तभी कड़ाके की बिजली कड़की और उसके ऊपर आकर गिर पड़ी. इससे ऊदा सिंह जल कर राख हो गया और मृत्यु को प्यारा हो गया.
लोगों की ऐसी मान्यता है कि ‘राणा कुम्भा’ खुद बिजली बनकर उसके ऊपर बरसे थे और अपनी हत्या का बदला खुद लिया था.
राणा के शरीर को उनके बेटे ऊदा ने भले खत्म कर दिया था, लेकिन इतिहास में राणा अमर हैं. उनकी शौर्यता की कहानी हमेशा युवाओं को प्रेरित करती रहेगी.
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