संसार के सब राष्ट्र राज्य समाज से इस प्रकार जुड़े हैं कि सब जगह विधि Law का प्राथमिक स्रोत वहां की परम्परार्यें और प्रथाएं हैं परन्तु भारत में नेहरु समूह ने ऐसा नहीं रखा है और अन्य दल ने इस भयंकर स्थिति को बदलने की चेष्टा तक नहीं की है .... इसके स्थान पर दलों के लोगों में एक अजब उन्माद है: बदल डालो , बदल डालो , यह बदल डालो , वह बदल डालो . पर असल में वे सत्तारूढ़ समूह के एजेंडा को लागु करने के लिए यह शोर मचाते हैं , ऐसा ही दयनीय ढांचा दलों का है. स्वयं को ये सब समाज से बाहर या ऊपर मानते है जबकि इनकी सब प्रेरणाएं किसी विदेशी व्यक्ति या समूह के मामूली विचारों का ही चीत्कार होती हैं और उसमे ही इन्हें गर्व है तब समाज कहाँ से आया ?
समाजवाद से राष्ट्रवाद तक सब किस समाज की भाषा है ? दुनिया का और कोई दल भारत की कोई भाषा क्यों नहीं बोलता ? बाहर के कुछ छोटे समूह सनातन धर्म की बात बोलने लगे हैं तो उनको भारत का कोई दल संज्ञान में ही नहीं लेता , क्योंकि उसे किसी न किसी यूरोपीय नारे से फुरसत ही नहीं है . जिस समाज को शक्ति हीन बना कर रखा गया है , उसे उसकी स्वाभाविक शक्ति सौंपे बिना समाज को यह करना चाहिए , वह करना चाहिए बोलते हुए आप कैसे लगते या दिखते होंगे ?
No comments:
Post a Comment