Saturday, 10 March 2018

-अरुण लवानिया
( त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़े जाने के बाद विभिन्न राजनेताओं की मूर्तियाँ तोड़ने की राष्ट्रीय प्रतियोगिता भी शुरू हो गयी है। इसी कड़ी में पेरियार की मूर्ति तमिलनाडु में तोड़ी गयी जिसने वामपंथियों, अंबेडकरवादियों और मुसलमानों को अवसर प्रदान कर दिया कि वो पेरियार के बारे में भ्रामक जानकारी देकर हिंदू धर्म और देश को तोड़ने का कुचक्र पुन: शुरू कर दें। देश में पेरियार के बारे में उतना ही जानते हैं.जितना ये राष्ट्रद्रोही उन्हें बताते हैं। दो वर्ष पूर्व मैंने लंबे शोध के बाद पेरियार को निष्पक्षता से ' जैसा है वैसा ही' उजागर करते हुये चार लेख लिखे थे। पेरियार के ही अनेक लेख, भाषण, साक्षात्कार और उनके द्वारा संपादित तमिल पत्र पत्रिकायें ही इस लेख का आधार हैं। चारों लेख दो पोस्ट में क्रमश: देने के कारण पढ़ने में धीरज धारण करेंं। )
न भूतो न भविष्यति (भाग-1) !!!
वह सर्वजन के मुखिया , माननीय , विद्वान , तार्किक , नास्तिक , समाज सुधारक , महिलाओं के उद्धारक थे। उन्हें यूनेस्को ने 1970 में 'नये युग का रसूल' और 'दक्षिण-पूर्व एशिया का सुकरात' की उपाधि से विभूषित किया।
1- क्योंकि नये युग के रसूल ने कहा :
* मैं सदा गंदे और मूर्ख लोगों से घिरा रहना चाहता हूं ताकि मेरी किसी भी जनसभा में व्यर्थ का व्यवधान न हो और मैं सुना जा सकूं।"
* " मैंने अकेले ही जातियां और जातिवाद नष्ट कर दी हैं ।"
* " हम जातियों को संगठित कर रहे हैं।"
* " कपड़े इसलिये मंहगे हो गये हैं क्योंकि दलित महिलायें ब्लाउज़ पहनने लग गई हैं। चावल के मंहगा होने का कारण है कि कच्ची पीने वाले दलित अब चावल खाने लगे हैं। दलितों के शिक्षा ग्रहण करने के कारण बेरोजगारी बढ़ गई है।"
* " ब्राह्मण के नष्ट होने के पश्चात् ही जातिवाद समाप्त होगा। क्योंकि ब्राह्मण पैरों से लिपटा हुआ सांप है , काट लेगा। सांप और ब्राह्मण के मध्य ब्राह्मण को पहले मारो। "
* " हम सशंकित हैं क्योंकि हम समस्त ब्राह्मणों के बारे में सोचते हैं। सभी ब्राह्मण बुरे नहीं हैं।"
* " मुझे आजतक एक भी अच्छा ब्राह्मण नहीं मिला।"
* " ब्राह्मण को सड़क पर घेरकर उसका यज्ञोपवीत उतारो और शिखा काट दो।क्योंकि वेद और मनुस्मृति ने ब्राह्मण और वेश्या की संतान को ही शूद्र कहा गया है। सड़क पर चलता ब्राह्मण अपनी शिखा से हमें इस बात की याद दिलाकर हमारा अपमान करता है। हम मंदिरों को नष्ट कर देंगे।ब्राह्मणों के विस्तार को जला देंगे।उनकी औरतों को जनता की संपत्ति (वेश्या) बना देंगे।"
* " मैं ब्राह्मणों का नहीं बल्कि ब्राह्मणवाद का विरोधी हूं।"
" समस्त ब्राह्मणों की हत्या कर दो। उनकी औरतों की हत्या कर दो।उनके घरों को जला दो। "
* " हमें ब्राह्मणों का विरोध नहीं करना चाहिये।"
* " ईश्वर को नष्ट कर देना चाहिये ; धर्म को नष्ट कर देना चाहिये ; कांग्रेस को नष्ट कर देना चाहिये ; गांधी को नष्ट कर देना चाहिये । "
" ईमानदार , समर्पित और राष्ट्रभक्त ब्राह्मण भी हैं।हमें याद रखना चाहिये कि ब्राह्मण प्रभावशाली हैं। "
* " कोई ईश्वर नहीं है किसी भी कीमत पर नहीं है। जिसने ईश्वर की खोज की वह मूर्ख हैं।जिसने ईश्वर का प्रचार किया वह बदमाश है।
* " मैं आपसे यह नहीं कहता कि ईश्वर की तिलांजलि दे दो।
* " ईसाइयत और इस्लाम अपने-अपने ईश्वर को सदाचार से परिपूर्ण दिखाते हैं और ऐसे ईश्वर हमें स्वीकार्य हैं। मैं मात्र इतना ही कहता हूं कि ईसाइयों और मुसलमानों की तरह बहुदेववाद छोड़ दो। "
* " हिंदू धर्म को नष्ट कर दो।"
* " हमारे इस महान प्रयास में हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें आवश्यक ज्ञान और साहस दे...।"
* " इस देश में ब्राह्मण शत प्रतिशत शिक्षित हैं। परंतु 90 प्रतिशत अन्य जातियां , 99 प्रतिशत गैर ब्राह्मण और 99.5 प्रतिशत शोषित जातियां क्यों अशिक्षित हैं? इसका कारण है वेद।क्योंकि इसमें लिखा है कि कौन जाति शिक्षा की पात्र है और कौन नहीं है।"
* " हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार केवल दो ही जातियां है - ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण।सारे गैर ब्राह्मण पिछड़ी जातियों के शूद्र हैं।"
* " मनुस्मृति के दसवें अध्याय में लिखा है कि जो जाति के धर्म का अनुसरण नहीं करते हैं वो द्रविड़ हैं। यह भी लिखा है कि ब्राह्मण और शूद्र का पुत्र चांडाल या निकृष्ट मछुआरा होगा।आगे यह भी लिखा है कि जो जाति धर्म को आर्यावर्त में नहीं मानता वो जानवर की चमड़ी उतारने वाला है और मृतकों का वस्त्र पहनने और झूठा खाने वाला दलित है।
* " मनुस्मृति अध्याय 10 , श्लोक 44 में लिखा है कि द्रविड़ राष्ट्र के शासक शूद्र (पिछड़ी जातियां) हैं।"
* " मेरे प्रिय और विद्वान मित्र डाक्टर अंबेडकर अनुसूचित जाति संघ के नेता हैं। मुझे उनसे बहुत आशा थी कि वो आर्यों की क्रूरता को नष्ट करने में अपना सहयोग देंगे। लेकिन वो भी अब कांग्रेस की आर्यवादी व्यवस्था में हिंदुओं के नियंत्रण में हैं।उनके कांग्रेस से संबंध भी हैं। मुझे यह कहने में बहुत दुख होता है कि वो भी भारत का विभाजन न होने की उबाऊ उत्तर भारतीय अवधारणा के समर्थक हो गये हैं। ऐसे तो वो किसी दिन भारत से द्रविड़नाडु के विभाजन का भी विरोध करेंगे।"
* " भारत के संविधान और राष्ट्रीय ध्वज को जला दो।"
* " जब मैंने अछूतों को इस्लाम अपनाने की सलाह दी तो कई मुझसे क्रोधित हो गये।लेकिन मुझे क्रोध नहीं आया। मैंने यह नहीं कहा कि इस्लाम अपना कर तुम जन्नत जाओगे या मानसिक संतुष्टि पाओगे या अल्लाह को ही पा लोगे। लेकिन ऐसा करने से छूआछूत समाप्त हो जायेगा। इस्लाम में तुम नास्तिक हो या धार्मिक इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। तुम सच्चे मुसलमान हो या झूठे मुसलमान इस बात से तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी। इस्लाम का द्रविड़ीकरण हो जायेगा। तुम्हारी द्रविड़ पहचान बनी रहेगी।"
* तमिल जनता के कष्टमय जीवन का कारण है ब्राह्मणों , ईसाइयों और मुसलमानों द्वारा स्वयं के तमिल होने का दावा करना। "
* " अपमान और शोषण की दवा इस्लाम है। "
* " ब्राह्मणों का विरोध करने के दौरान हमने मुसलमानों को आवश्यकता से अधिक महत्व दे दिया। यह तो वही कहावत हो गई कि गोबर से बचने के लिये हमने विष्ठा पर पैर रख दिया। "
* " मैं न तो इस्लाम का बचाव कर रहा हूं और न ही इसका प्रचार । सत्य और केवल सत्य मात्र इतना ही है कि मुझे उतना विश्वास , सहयोग , प्रेम और मित्रता इस्लाम से नहीं है जितना तुमसे है। "
* " द्रविड़ों के लिये इस्लाम सबसे उपयुक्त धर्म है। प्राचीन द्रविडो़ं की संस्कृति , जीवन और साहित्य और परंपरायें इस्लाम के साथ साझेदारी प्रदर्शित करती हैं।कुछ सीमा तक ऐसा ईसाइत के साथ भी है।"
* " यदि आबादी ( ब्राह्मण) , धर्म (इस्लाम) और संस्कृति से अल्पसंख्यक समुदाय सत्ता को
नियंत्रित करता है तो यह देश के लिये विपदा से भरा है।"
* " मेरा मानना है कि इस्लाम में धर्मांतरण भारत की स्वतंत्रता में सहायक होगा।"
* " भारत के स्वतंत्रता दिवस को थका नाल (काले दिन)के रूप में मनाना चाहिये।"
* " अंग्रेजों को चाहिये कि वो भारत को आजाद न करें। यदि करें तो भी हमारी भूमि पर राज करते रहें या हमें भारत से अलग कर दें। अन्यथा हिंदी , विदेशी आर्य और उत्तर भारतीय हम पर हावी हो जायेंगे।"
* " यदि साहिबों ( मुसलमान ) और दलितों को नौकरी और शिक्षा में आबादी के अनुपात से आरक्षण मिल गया और बाकी बचा ब्राह्मण ले गये तो , ओ पिछड़ी जातियों , तुम्हारे भविष्य का क्या होगा। "
* " तमिल बर्बर लोगों की भाषा है। अंग्रेजी हर मायने में तमिल से बेहतर है। अंग्रेजी जानने वाला तार्किक बन जाता है। जो तमिल सीखता है वह रूढ़िवादी हो जाता है।"
* " तमिल को नकार कर तुम क्या खो दोगे ? इसकी आखिर क्या उपयोगिता है ?
* " समस्त मंदिरों में तमिल ही पूजा अर्चना करने का माध्यम हो।"
* " तमिल एक बाधा है और समस्त तमिल कवि तर्कवाद के दुश्मन हैं। "
* " हमें विदेशी आर्यो , उत्तर भारतियों , ब्राह्मणों और हिंदी की गुलामी से निकलकर तमिल का खोया गौरव पुन: प्राप्त करना है।"
* " तिरुवल्लुवर ने अपने समयानुसार आर्यों की बकवास लिखी। उसने तर्कवाद की जगह भावनात्मक बकवास लिखी।"
* " तोल्कापियार आर्यों के हाथों बिका हुआ था। वह गद्दार था जिसने आर्य धर्म को तमिल व्याकरण के रूप में लिख दिया।"
* " कंबन गद्दार है और स्वयं को ब्राह्मण समझता था। उसने ब्राह्मणों की परंपराओं को तमिल संस्कृति में बदल दिया । "
* " लोग कहते हैं कि सुब्रम्हण्यम भारती अमर कवि हैं।पूरा तमिलनाडु उनकी प्रशंसा करता है। ऐसा केवल इसलिये है कि उन्होंने तमिल और तमिलनाडु का खुल कर गुणगान किया।इसके अतिरिक्त भला वो कर ही क्या सकता था। उसकी स्वयं की मातृभाषा संस्कृत वर्षों से मृतप्राय है। कोई दूसरी भाषा तो उसे आती न थी।वह संस्कृत में तो गाने में असमर्थ था।"
* " मेरी सलाह है कि वो समस्त तमिल अक्षर जो ऐसे बर्बर लोगों के समय के हैं उनसे मुक्ति पा ली जाये और तमिल भाषा के सुधार हेतु अंग्रेजी अक्षरों का प्रयोग किया जाये। "
* " मेरा सबसे आग्रह है कि घर में केवल अंग्रेजी में बोलें। तमिल का त्याग कर अपनी बीबी , बच्चों और यहां तक कि नौकरों से भी केवल अंग्रेजी में ही बात करें। केवल अंग्रेजी ही तुम सबको सुधारेगी। "
* " क्या फर्क पड़ता है यदि भाई को बहन से प्यार हो जाये या बेटा अपनी मां से शादी कर ले।"
* " महिलाओं को पुरूष के बराबर सम्मान और अधिकार मिलना चाहिये। "
* " महिलाएं विवाह के बजाय स्वछंद यौनाचार को अपनायें।"
2- यूनेस्को ने 1970 में इन्हीं सम्मानित व्यक्ति को इसलिये भी 'नये युग का रसूल' और 'दक्षिण-पूर्व एशिया का सुकरात' की उपाधि से विभूषित किया क्योंकि :
* नये युग के रसूल के लंबे समय तक सहयोगी और मित्र रहे सामी चिदंबरम द्वारा लिखित रसूल की प्रामाणिक जीवनी ' तमिझार थलैवर' के अनुसार सार्वजनिक जीवन में आने से पहले नये युग के रसूल ने अपना जीवन ऐसे बिताया जैसे कल नहीं आयेगा। इनका मस्तिष्क और रवैया उपद्रवी था। वयस्क होने पर इन्होंने अधिकतर समय वेश्याओं की संगति में बिताया। 19 साल की उम्र में 13 साल की नागाम्मै से विवाह होने के पश्चात भी दक्षिण-पूर्व एशिया के सुकरात और इनके मित्रों ने कावेरी नदी के किनारे अपनी शाम और रातें वेश्याओं के साथ बिताई। साथ ही अपनी पत्नी को पूरे समूह के लिये खाना पका कर पहुंचाने का आदेश भी दिया।
* सुकरात साहेब ने हिंदू महिलाओं से कहा कि मंगल सूत्र को उतार फेकें और बिना किसी फेरे , मंत्र और पंडित के एक दूसरे के गले में केवल माला डालकर ही विवाह करें। रसूल ने इसे 'आत्मसम्मान विवाह' कहा।यह नास्तिक विवाह कहलाया।लेकिन इन्होंने अपने जीवन में कभी ईसाइयों और मुसलमानों को ऐसे आत्म सम्मान विवाह की सलाह देने का साहस नहीं किया।
* रसूल ने मंदिर में पूजा अर्चना मात्र तमिल में करने को कहा।लेकिन कभी चर्च और मस्जिदों में प्रार्थना और इबादत में तमिल के प्रयोग की बात नहीं की।
* रसूल ने सड़कों पर स्वयं जलूस निकाल कर राम के चित्र पर चप्पल की माला पहनाई और विनायक की प्रतिमा तोड़ी। लेकिन कभी कुंवारी मरियम , क्रौस, दरगाह और इस्लामिक रसूल के चित्र के साथ ऐसा करने का दुस्साहस नहीं किया।
* नये युग के रसूल आजीवन अपने कुल के विनायक मंदिर न्यास के सदस्य रहे और अपने भाई की मृत्यु पर उनका समस्त अंतिम संस्कार स्वयं वैष्णव रीति से किया। वो नास्तिक जो ठहरे।
* उन्होंने जाति व्यवस्था का पुरजोर विरोध किया परंतु हस्ताक्षरों में अपनी जाति नायकर लिखना नहीं भूले।
* रसूल ने महिलाओं के आत्म सम्मान की लड़ाई लड़ी।उनके शोषण का विरोध किया।कहा कि यदि कोई महिला अपने पति से खुश नहीं है तो अपना मंगल सूत्र उतार कर स्वयं को पति से मुक्त कर ले।अपने नाम के साथ अपने कुल का नाम लगाकर आत्मसम्मान प्राप्त करे।रसूल ने इसकी मिसाल अपने घर में ही दी जब भीड़ में खड़े होकर उन्होंने अपनी तेरह साल की पत्नी को मंदिर के उत्सव में भाग लेने के कारण सम्मान देते हुये दासी अर्थात वेश्या कहकर फटकारा । रसूल महिलाओं के उध्दारक जो ठहरे।
* रसूल ने बाल विवाह का विरोध किया लेकिन इकहत्तर साल की भरी जवानी में अपने सहयोगी की छब्बीस साल की बेटी से दूसरा विवाह किया। नये युग के रसूल रेगिस्तानी रसूल से कम तो न थे।
* सुकरात साहेब ने महिलाओं से कहा कि वो विवाह कर अपनी पहचान न खोयें और ना ही विवाह के बाद अपना नाम बदलें। लेकिन इन्होंने 71 साल की उम्र में 26 साल की अपनी पोती की उम्र की लड़की से विवाह कर उसका नाम बदल अपना नाम दे दिया - ईवीआर मनियामई।
* सुकरात साहेब ने आजादी से पूर्व और पश्चात दो हिंदी विरोधी आंदोलन चलाये।लेकिन हिंदी विद्यालय के लिये अपनी जमीन दान में भी दी।
* रसूल साहेब ने जिन्ना और बाबा साहेब से भेंटकर भारत से अलग एक अलग देश द्रविड़नाडु की पैरवी अंग्रेजों से करने का अनुरोध किया। जिन्ना से वादा किया कि अलग देश द्रविड़नाडु बनने पर यहां के सात प्रतिशत मुसलमानों को उनके समस्त मजहबी अधिकार प्राप्त होंगे। जब विभाजन का समय आया तो जिन्ना ने इन्हें सनकी समझ केवल पाकिस्तान की ही वकालत की। राष्ट्रवादी बाबा साहेब ने तो विभाजन समय आबादी की पूरी अदला-बदली का सुझाव ही दे डाला , संस्कृत को राष्ट्भाषा बनाये जाने की वकालत की , आर्यों के विदेशी होने की ईसाई अवधारणा को नकार कर सबको यहीं का आर्य होने की घोषणा भी कर दी। सुकरात साहेब की आशाओं पर घड़ों पानी पड़ गया और बाबा साहेब को ना ही केवल कटुवचन बोले परंतु उनके बनाये संविधान को जलवाकर जैसे बाबा साहेब को ही चुनौती दे डाली।
* पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के अनुसार , " तथ्य यह है कि पेरियार ब्रिटिश एजेंड था।उसने जातिगत् घृणा ही फैलाई , विशेषरुप से ब्राह्मणों के विरूध्द।"
* सुकरात साहेब ने कहा कि जातिवाद से मुक्त होना नितांत आवश्यक है ।लेकिन स्वयं को सदा बालिजा जाति का ही कहा।
* गैर तमिल सुकरात साहेब ने तमिल को तो बर्बर लोगों की भाषा कहा परंतु अपनी मातृभाषा कन्नड़ और अपने तेलुगू पिता की भाषा में एक भी कमी नहीं गिनाई।
* सुकरात साहेब ने ब्राह्मण विरोध में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने शुरूआती दिनों में सुकरात साहेब इरोड शहर के कराइवाइकल मैदान में जनसभा को संबोधित किया करते थे। माइक के लिये बिजली के तार मैदान के बगल स्थित वकील अय्यर के घर से लिये जाते थे।ऐसी ही एक जनसभा में सुकरात साहेब ने ऊंची आवाज में अपने अनुयायियों को भड़काते हुये कहा कि वो हाथ में कैंची लेकर सड़कों पर निकलें और ब्राह्मणों के यज्ञोपवीत और शिखा काट दें। वकील दंडपानी अय्यर ने यह सुनते ही बिजली के तार को काट कर माइक बंद कर दिया। सुकरात साहेब को अपनी गलती का एहसास हुआ।उन्होंने तुरंत ऊंची आवाज में अय्यर को सुनाते हुये कहा कि उनके अनुयायी यह निश्चित करें कि अय्यर जैसे अच्छे ब्राह्मण भी हैं जिन्हें न छुआ जाये। यह सुनते ही अय्यर ने पुन: बिजली के तार जोड़ दिये और माइक चालू हो गया।
नये युग के रसूल विद्वान भी थे क्योंकि इन्होंने मात्र कक्षा चार तक ही शिक्षा ग्रहण की थी। इनकी मातृभाषा कन्नड़ थी। पिता तेलुगू थे तो तेलुगू भी आती थी।तमिलनाडु में जन्म होने के कारण बाई डिफाल्ट तमिल भी सीख ली। संस्कृत और अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था। फिर भी बस इन्हीं तीन भाषाओं को जानकर आप वेद और मनुस्मृति , महाभारत और रामायण के विद्वान बन गये और इन संस्कृत के ग्रंथों पर तमिल में विस्तृत टीका भी की। है ना आश्चर्य की बात !
सुकरात ए दक्षिण-पूर्व एशिया के उपर्युक्त चंद प्रामाणिक कथनी और करनी से स्पष्ट होता है कि उनके लिये हिंदू विरोध ही नास्तिक होना था। हिंदू देवी-देवताओं और परंपराओं का विरोध ही तर्कवाद था। यहां भी उन्होंने केवल अय्यर और अयंगर ब्राह्मणों के मंदिरों को ही निशाना बनाया। प्रदेश की सशक्त और लड़ाकू पिछड़ी जातियों जैसे वन्नियार , थेवर , कोंगु वेल्लाल गौंडर आदि के मंदिरों की तरफ देखने तक का साहस नहीं किया। सच में देखा जाये तो पेरियार के नास्तिकता और तर्कवाद के दायरे से इस्लाम और ईसाइयत बाहर थी।ब्राह्मणों को नष्ट करना ही जाति विहीन समाज का आधार था। इनका जातियां तोड़ो अभियान केवल ब्राह्मण विरोध ही था।उन्हें हिंदू धर्म शास्त्रों में महिलाओं के प्रति भेदभाव तो दिखा पर इस्लाम में महिलाओं की स्थिति पर चुप्पी लगा गये।नमाज , अजान , हालेलुइया आदि प्रार्थनायें तमिल में हो ऐसा कहने से भयभीत हो गये।
कौन थे ऐसे अद्भूद व्यक्ति ? अबतक कुछ तो अनुमान आप सबने लगा ही लिया होगा कि क्या था उनका नाम ? सही अनुमान है आपका। वो थे इरोड वेंकट रामास्वामी नायकर (ई वीआर रामासामी नायकर)। जिन्हें प्यार से उनके अनुयायी ठंठई पेरियार ( मुखिया और सम्मानित) कहने लगे।
पेरियार के चक्कर में हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों की आम जनता उतनी ही राष्ट्रवादी है जितना कोई भी अन्य हो सकता है।यह कटु अनुभव पेरियार को उसके जिंदा रहते मिल गया था। जब पेरियार ने अंग्रेजों से अलग देश की जोरदार मांग की तो उन्होने तमिलनाडु , आंध्र प्रदेश , केरल और कर्नाटक को मिलाकर द्रविड़ नाडु का नाम दिया। उनकी इस मांग को तमिलनाडु की जनता ने तो पूरी तरह ठुकराया ही बाकी अन्य प्रदेशों ने भी अपने को इससे अलग कर लिया। पेरियार के प्रथम लाड़ले राजनीतिक शिष्य अन्नादुरई ने भी इसका विरोध किया।पेरियार से विद्रोह कर अन्नादुरई द्वारा अलग दल डीऐमके बनाने का यह भी एक कारण था।
दक्षिण तमिलनाडु के राष्ट्रवादी कद्दावर पिछड़ी जातियों के नेताओं जैसे मुथुरामलिंग थेवर , राजा सर अन्नामलाई चेटियार आदि ने पेरियार की ब्राह्मण , मंदिर और हिंदू विरोधी सनक का खुले आम विरोध किया ।इसलिये इस क्षेत्र में पेरियार की सनक का असर बहुत ही कम रहा। फलस्वरूप तुलनात्मक रूप से इस क्षेत्र में ब्राह्मण विरोध भी बहुत कम हुआ।पेरियार का ब्राह्मण विरोध राजनीतिक था । समस्त पिछड़ी जातियां ब्राह्मणों को मुद्दा बनाते हुये एकजुट होकर राजनीतिक सत्ता ही हासिल करना चाहती थीं। इसमें वो पूरी तरह सफल भी हुयीं।सफल होते ही प्रदेश के बीस प्रतिशत दलितों पर पिछड़ी जातियों के अत्याचार बेरोक-टोक शुरू हो गये जो आज भी निरंतर जारी हैं।
इतना पढकर अगर आप यह सोच रहे हैं आम तमिल जनता भी पेरियार जैसी सोच रखती थी तो आप सरासर गलत हैं।आम तमिल जनता के बजाये हिंदुओं से ईसाई और मुस्लिम बने तमिलियों और पेरियार के गुंडे ही अधिकतर अपराधों में शामिल रहे। जैसे इंदिरा गांधी की हत्या के कारण सभी सिखों को अपराधी मानना गलत है वैसे ही तमिलनाडु के मात्र तीन प्रतिशत ब्राह्मणों और मंदिरों पर हमले और उनके राज्य से पलायन के लिये सारे गैर-ब्राह्मण तमिल हिंदुओं को दोषी मानना गलत है।यदि कोई दोषी है तो व्यक्तिगत रूप से पेरियार और केवल पेरियार । पिछले पचास सालों से तमिलनाडु में सत्ता लगातार अति पिछड़ी जातियों , पिछड़ी जातियों और अन्य पिछड़ी जातियों के हाथ में है। राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से ब्राह्मण अप्रासांगिक है।
हिंदू मक्कल काची और हिंदू मुन्नानी जैसे हिंदू वादी दल अब खुलकर पेरियार का विरोध करने लगे हैं।कुछ वर्ष पूर्व जब तमिलनाडु के सबसे प्रसिध्द रंगराज मंदिर के सामने पेरियार की मूर्ति लगाई गई तो इसको तोड़ने वाले हिंदू मक्कल काची के पिछड़ी जाति के सदस्य ही थे।पहली बार सोशल मीडिया पर पेरियार के चित्र को चप्पलों से मारती महिलाओं का वीडियो आया तो पेरियार समर्थकों का सर घूम गया कि ये क्या हुआ। चूंकि पेरियार के गुंडे पिछड़ी जाति के हिंदुओं की तरफ भय के मारे आंख भी नहीं कर सकते तो इनका क्रोध बेगुनाह ब्राह्मणों पर ही फूटा। ब्राह्मणों द्वारा संचालित मंदिरों में इन गुंडों ने तोड़फोड़ तो की क्योंकि इन्हें पता है कि वह प्रतिरोध नहीं करेगा। परंतु पेरियार के समय से लेकर आजतक इसके गुंडों की हिम्मत नहीं हुयी कि किसी भी पिछड़ी जाति द्वारा संचालित मंदिर की तरफ झांक भी सकें। इन्हें पता है कि ऐसा दुस्साहस इनके लिये काल साबित होगा। पेरियार की मूर्ति कभी किसी मस्जिद , दरगाह या चर्च के सामने क्यों नहीं लगाई जाती इसका उत्तर पेरियार के गुंडों के पास नहीं है। पेरियार वादी अब इसलिये भी परेशान हैं कि उन्होंने काटजू की गौमांस खाने की वकालत पर उसे सर आंखों पर बैठाया लेकिन जब काटजू ने पेरियार को ब्रिटिश एजेंट , जातिवादी और ब्राह्मण द्रोही कह डाला तो सबको सांप सूंघ गया।
पेरियार ने द्रविड़ साहित्य की समानता इस्लाम से की पर तमिल व्याकरण और साहित्य के जनक को गालियां दी। जैसे पाणिनी का अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण है वैसे ही लगभग 800 वर्ष ईसा पूर्व तोल्कापियार द्वारा रचित 'तोल्कापियम'सर्वाधिक पुराना तमिल व्याकरण का ग्रंथ है। तोल्कापिय्यम तीन पुस्तकों में लिपिबध्द है और हर पुस्तक में नौ अध्याय हैं ।कंबर ने वाल्मीकि रामायण को आधार बनाकर तमिल में 'कंब रामायण' लिखी। सुब्रम्हण्यम भारती को भी किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। महाकवि तिरूवल्लुवर जो लगभग 250 वर्ष ईसा पूर्व संगम काल में हुये उन्हें भी अनपढ़ पेरियार ने भरा बुला कहा। तिरुवल्लुवर निम्न जाति के वैष्णव संत थे। इन्हें थेवा पुलवर, वल्लुवर और पोयामोड़ी पुलवर नामों से भी जाना जाता है। इन्होंने महाकाव्य 'तिरुक्कुरल' लिखा जिसमें तीन विभिन्न अध्यायों - धर्म , अर्थ, काम - के अंतर्गत नीति शास्त्र का उपदेश दिया और हिंदू देवी-देवताओं का श्रध्दा से वर्णन किया। जब तमिल व्याकरण और साहित्य ईसा से भी सैकड़ों साल प्राचीन और धनी है तो फिर पेरियार ने इसकी समानता इस्लाम और ईसाइयत से कैसे कर दी वो ही जानें।
लेकिन क्या पेरियार में सब बुरा ही बुरा था और तमिलनाडु में उनका कोई राजनीतिक या सामाजिक योगदान न था ? ऐसा कहना भी गलत है। इस लेख के अगले भागों में पेरियार के संपूर्ण सामाजिक जीवन , उनके आंदोलन , योगदान और वर्तमान में उनकी अप्रासांगिकता का तथ्यात्मक विश्लेषण किया जायेगा। साथ ही पेरियार के कारण ही तमिलनाडु के बीस प्रतिशत दलितों का क्यों और कैसे लगातार अमानवीय उत्पीड़न हो रहा है और पेरियार की विरासत थामे डीएमके और एआईडीम जैसे राजनीतिक दल राज्य दलित उत्पीड़न को मौन और सक्रिय समर्थन भी दे रहे हैं इसका भी सिलसिलेवार आंकड़ों के साथ खुलासा किया जायेगा। महाकाव्य 'तिरिकुल्लर' और पेरियार रचित 'सच्ची रामायण' का भी परिचय दिया जायेगा । क्योंकि इन सभी बातों को समझकर ही पेरियार के असली चरित्र को समझा जा सकता है।
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