Tuesday, 13 March 2018

अलंकारों की शुद्धि

        स्वर्ण अलंकारों का निर्माण उन व्यक्तियों को जो किसी प्रकार की साधना नहीं कर रहे हैं कम से कम अनिष्ट शक्तियां से १० प्रतिशत तक सुरक्षा प्राप्त हो इस उद्देश्य से किया गया था । अनिष्ट शक्तियां सर्व प्रथम अलंकारों पर आक्रमण करती हैं इसलिए एक साधारण व्यक्ति उन आक्रमणों के सीधे होने वाले प्रभाव से स्वाभाविक रूप से बच जाता है । इसके साथ, यदि अलंकार रज-तम से प्रभावित हो गए हैं तो उन्हें उतार कर उनकी शुद्धि कर के पुनः धारण किया जा सकता है । इस लेख के द्वारा यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि बिना विभूति लगाकर अलंकार धारण करने से विभूति लगाकर अलंकार धारण करना अधिक लाभकारी है । इस से अलंकारों को शुद्ध करने का महत्त्व भी समझ में आएगा ।

१. स्थूल से शुद्धि

अलंकारों को रीठे के पानी में डुबोकर रखना : स्वर्ण -चांदी के अलंकार पांच मिनटतक रीठे के पानी में डुबोकर रखें । तत्पश्चात हलके हाथ से मलने से उस पर जमी हुई धूल तथा मैल निकालने से अलंकार स्वच्छ हो जाते हैं ।

२. सूक्ष्म से शुद्धि

        ‘वर्तमान में अधिकांश व्यक्तियों को न्यून-अधिक मात्रा में अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है । अनिष्ट शक्तियों से पीडित व्यक्तिद्वारा धारण किए गए अलंकारों में अनिष्ट शक्तियां कष्टदायक शक्ति संग्रहित करती हैं । व्यक्ति के शरीर में कष्टदायक शक्ति का संचार होने लगता है । कष्टदायक शक्ति के कारण अलंकारधारण करने के स्थान से संबंधित अवयव में वेदना हो सकती है । इसलिए अलंकारों की ओर देखने पर अच्छा न लगे अथवा अलंकार धारण करने पर कष्ट अनुभव हो, तो कष्ट की तीव्रता के अनुसार उन अलंकारों की निम्नांकित तत्त्वों से शुद्धि करें ।
  • तेजतत्त्व : अलंकारों को सर्व ओर से विभूति लगाएं ।
  • वायुतत्त्व : अलंकारों पर विभूति फूंकें अथवा उदबत्ती जलाकर अलंकारों को उसका धुआं दिखाएं ।
  • आकाशतत्त्व : अलंकार रिक्त बक्से में (टिप्पणी १) रखें और / अथवा उसके निकट प.पू. भक्तराज महाराजजी के भजन (टिप्पणी २) लगाएं ।’
    टिप्पणी १ – रिक्त बक्से में रिक्ति की निर्मिति होती है । रिक्ति निर्गुण तत्त्व का प्रतीक है । निर्गुण तत्त्व के कारण कष्टदायक शक्ति नष्ट होती है ।
    टिप्पणी २ – प.पू. भक्तराज महाराजजी सनातन संस्था के प्रेरणास्रोत हैं । ये भजन प.पू. भक्तराज महाराजजी जैसे अति उच्च स्तर के संतद्वारा लिखे गए हैं । उन्होंने स्वयं भजनों को संगीतबद्ध कर अपने स्वर में गाया है । इस कारण इन भजनों में शब्दशक्ति के साथ नादशक्ति तथा चैतन्य भी है । अतएव अलंकारों में विद्यमान कष्टदायक शक्ति दूर होती है ।

अ. विभूति से होनेवाली शुद्धि

  • अलंकारों को विभूति लगाकर धारण करने के लाभ :
    सामान्यत: अलंकार धारण करने पर व्यक्ति के शरीर में विद्यमान कष्टदायक शक्ति घटती ही है; परंतु अलंकारों को विभूति लगाकर धारण करने पर जब तक विभूति का परिणाम रहेगा, तब तक व्यक्ति के शरीर में विद्यमान कष्टदायक शक्ति और अधिक मात्रा में घटती है । इसके साथ ही व्यक्ति को कष्ट देने वाली अनिष्ट शक्तियों का बल भी घटता है ।
  • अनिष्ट शक्ति से दुष्प्रभावित अलंकारों की शुद्धि के लिए आवश्यक कालावधि :
    जिन अलंकारों पर अनिष्ट शक्ति का दुष्प्रभाव पडा है, उन्हें उतारकर रखने से १० प्रतिशत लाभ होता है । अलंकारों पर विभूति का लेप लगाकर रखने से उन पर आया कष्टदायक शक्ति का आवरण १५ दिनों में घट जाता है । केवल अलंकार उतारकर रखने से तीन माह पश्चात उनमें विद्यमान कष्टदायक शक्ति घट जाती है ।

आ. रिक्त बक्से से होने वाली शुद्धि

  • अलंकार बक्से में रखना :
    बक्से में अलंकार रखने पर हम पर भी आध्यात्मिक उपाय होते हैं । अलंकार बक्से के बाहर रखने पर तथा अपने शरीर पर अलंकार न होने पर भी ऐसा लगा कि स्वयं पर कष्टदायक शक्ति का आवरण आ रहा है ।
  • अलंकार उपाय बक्से में रखने से अनिष्ट शक्ति नष्ट होती है :
    जीवद्वारा अलंकारों के उपयोग से उसकी शक्ति (स्पंदन)अलंंकारों में आकृष्ट होती है । अलंकार बक्से में रखने से अलंकारों में स्थित कष्टदायक शक्ति नष्ट होने तक अलंकार धारण करने वाले जीव पर आध्यात्मिक उपाय होते हुए प्रतीत हुए । कष्टदायक शक्ति नष्ट होने पर आगे उपायों का परिणाम जीव पर प्रतीत नहीं होता तथा वह विशिष्ट चरण तक ही अनुभव होता है । जीव के कष्टों में वृद्धि भी नहीं होती । इनसे अलंकारों में विद्यमान कष्टदायक शक्ति घट जाने का बोध होता है । ऐसा लगा कि अलंकारों में विद्यमान कष्टदायक शक्ति घट जाने पर, उन अलंकारों को पुनः धारण करने पर उनसे चैतन्य अधिक मात्रा में और वेग पूर्वक प्रक्षेपित होता है । इससे अलंकार धारण करने का अधिक लाभ हो रहा है ।

इ. अग्निशुद्धि

कभी-कभी स्वर्ण अथवा चांदी के पुराने अलंकार गलाकर अलंकार बनाए जाते हैं । उस समय धातु अग्नि में गलाने से धातु की एक प्रकार से अग्नि में शुद्धि होती है ।
संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्त्विक ग्रंथ ‘स्त्री-पुरुषों के अलंकार

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