आप ओर भगवान ......
एकान्त में बैठ जाओ और कमरा बन्द कर लो। न हम किसीको देखें और न हमें कोई देखे । फिर भक्तोंके चरित्र पढ़ो, स्तोत्र पढ़ो, विनयपत्रिका पढ़ो। पढ़ते-पढ़ते जब हॄदय गद्गद हो जाय, नेत्रोंसे आँसू आने लगें, उस समय पुस्तक बन्द कर दो और नाम-जप करो, कीर्तन करो, प्रार्थना करो कि
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‘हे नाथ! आपको भूलूँ नहीं’ ऐसा कहते जाओ। ऐसा करते-करते जब आँसू सूख जायँ, वैसा भाव न रहे, तब जहाँ पढ़ने से वैसा भाव बना, उससे एक पृष्ठ पीछेसे पुन: पढ़ो। पढ़ते-पढ़ते वहाँ आते ही वैसा भाव बन जाय, तो फिर पुस्तक छोड़ दो। पुस्तक पूरी करने का लक्ष्य बिलकुल न रहे, भगवान् में मन लगानेका लक्ष्य रहे। जहाँ पढ़ते-पढ़ते मन लगा, वहाँ पुस्तक छोड़ दो और प्रार्थना करो, भगवान् से अपनी बात कहो, भगवान् के लिए रोते रहो।
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यह साधन आप घंटा-दो-घंटा रोजाना करके देखो। उस समय दूसरा कोई काम आ जाय तो उसको छोड़ दो कि अभी नहीं। करोड़ काम बिगड़ते हों तो बिगड़ने दो, पर भगवान् का स्मरण मत छोड़ो। भक्तोंके चरित्रमें मन लगे तो बहुत बढ़िया है ! भगवान् से भी भगवान् के भक्त का चरित्र बढ़िया है ।
परम श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी महाराज
एकान्त में बैठ जाओ और कमरा बन्द कर लो। न हम किसीको देखें और न हमें कोई देखे । फिर भक्तोंके चरित्र पढ़ो, स्तोत्र पढ़ो, विनयपत्रिका पढ़ो। पढ़ते-पढ़ते जब हॄदय गद्गद हो जाय, नेत्रोंसे आँसू आने लगें, उस समय पुस्तक बन्द कर दो और नाम-जप करो, कीर्तन करो, प्रार्थना करो कि
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‘हे नाथ! आपको भूलूँ नहीं’ ऐसा कहते जाओ। ऐसा करते-करते जब आँसू सूख जायँ, वैसा भाव न रहे, तब जहाँ पढ़ने से वैसा भाव बना, उससे एक पृष्ठ पीछेसे पुन: पढ़ो। पढ़ते-पढ़ते वहाँ आते ही वैसा भाव बन जाय, तो फिर पुस्तक छोड़ दो। पुस्तक पूरी करने का लक्ष्य बिलकुल न रहे, भगवान् में मन लगानेका लक्ष्य रहे। जहाँ पढ़ते-पढ़ते मन लगा, वहाँ पुस्तक छोड़ दो और प्रार्थना करो, भगवान् से अपनी बात कहो, भगवान् के लिए रोते रहो।
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यह साधन आप घंटा-दो-घंटा रोजाना करके देखो। उस समय दूसरा कोई काम आ जाय तो उसको छोड़ दो कि अभी नहीं। करोड़ काम बिगड़ते हों तो बिगड़ने दो, पर भगवान् का स्मरण मत छोड़ो। भक्तोंके चरित्रमें मन लगे तो बहुत बढ़िया है ! भगवान् से भी भगवान् के भक्त का चरित्र बढ़िया है ।
परम श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी महाराज
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