Tuesday, 13 March 2018

अलंकार धारण करने का मूलभूत उद्देश्य एवं महत्त्व

        केवल हिन्दू संस्कृति में इस प्रकार सिर, बाल, कान, नाक, गर्दन, हाथ, उंगलियों, कमर तथा पैर में गहने पहनने की परंपरा है। इसके अतिरिक्त, हिन्दू धर्म में स्त्रियों को विशिष्ट अवसरों पर विशिष्ट अलंकार धारण करने की सलाह दी जाती है; जैसे विवाह समारोह और त्योहारों के समय में बाजूबंद और कमरबंद पहनना । ये गहने प्रदर्शन या सुख पाने की वस्तुएंं नहीं हैं, अपितु स्त्रियों को चैतन्य (दिव्य चेतना) प्रदान करने के लिए एवं उनमें देवत्व को सक्रिय करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम हैं ।
        इस लेख को पढने के उपरांत, सभी अलंकारों का महत्त्व एवं हिन्दू संस्कृति में सम्पूर्ण शरीर पर अलंकार धारण करने की परंपरा के महत्त्व को समझ सकते हैं । यह केवल हिन्दू संस्कृति की महानता को दिखाता है जो हर चरण पर मानवता के आध्यात्मिक कल्याण के बारे में सोचता है ।

१. हिन्दू धर्म में ‘अलंकृत होना’ एक प्रमुख आचार

        अलंकार के बिना आकार तेजोमय नहीं । आकार के बिना क्रिया नहीं । क्रिया के बिना प्रकृति नहीं और प्रकृति के बिना माया नहीं । मायारूपी विश्व को चैतन्यमय बनाने के लिए अलंकारों की आवश्यकता होती है

२. अलंकारों द्वारा तेजस्विता एवं प्रसन्नता प्रदान होना

        अलंकारों के स्पर्श से देह की चेतना जागृत होती है । चेतना से देह में सजगता आती है । सजगता से देह सात्त्विक तेजरूपी तरंगें ग्रहण कर संवेदनशील बनता है । इस संवेदनशीलता से ही तेजस्विता आती है । तेजस्विता से देवत्व आता है एवं देवत्व से प्रसन्नता आती है । प्रसन्नता से आनंदरूप ईश्वरीय तत्त्व का बोध होता है । ईश्वरीय तत्त्व के आकलन से मोक्ष प्राप्त हो सकता है

३. तारक एवं मारक तत्त्व

        मुखमंडल का तथा दमकनेवाले अलंकारों का आह्लादयुक्त तेज वायुमंडल के रज-तमात्मक कणों का नाश करता हैै, इसलिए वह तारक अर्थात देवत्व प्रदान करनेवाला है और मारक अर्थात अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करनेवाला है

४. सौंदर्यवृद्धि के लिए अलंकार उपयुक्त

        मनुष्य को अपनी देह के प्रति आसक्ति रहती है । देह को सजाने के लिए अर्थात अपने सौंदर्य में वृद्धि करने के लिए अलंकार धारण किए जाते हैं ।

५. अलंकार धारण करने से देवता की तरंगें ग्रहण कर पाना

अ. देवताओं द्वारा अलंकार धारण किए जाने से देवताओं से प्रक्षेपित तरंगें अलंकारों के माध्यम से व्यक्ति के लिए ग्रहण करना संभव होना

        ‘भक्तों के लिए देवता का तेज सहज उपलब्ध करने का साधन है ‘अलंकार’ ।’
देवताओं से प्रक्षेपित तरंगें ग्रहण करना संभव हो, इसलिए देवता भी अलंकारों सहित होना : ‘कलियुग में जीव की कुल सात्त्विकता अल्प है । इसलिए जीवों को अलंकार जैसे बाह्य माध्यमों का उपयोग हो, उसी प्रकार देवताओं से प्रक्षेपित तरंगों को भी अलंकारों के माध्यम से सगुणता प्राप्त हो तथा ऐसा तत्त्व सामान्य व्यक्ति के लिए ग्रहण करना सरल हो, इस उद्देश्य से ईश्वर ने सामान्य जनों के लिए प्रत्येक देवता के रूप की निर्मिति अलंकारों सहित की ।’ अतः हिन्दू धर्म में देवता का पूजन करते समय उन्हें वस्त्रालंकारों से सुशोभित करने की पद्धति है । दीपावली में श्री लक्ष्मीपूजन के समय अलंकार धारण करने हेतु देवी से प्रार्थना करते हैं । उस समय निम्नांकित श्लोक का पाठ किया जाता है ।
रत्नकंकणकेयूरकांचीकुण्डलनूपुरम् ।
मुक्ताहारं किरीटं च गृहाणाभरणानिमे ।।
अर्थ : हे देवी, रत्नजडित कंगन, केयूर अर्थात बाहुबंद, करधनी, कर्णाभूषण, पायल, मोतियों का हार, मुकुट इत्यादि अलंकार धारण करें ।

आ. अलंकारों के माध्यम से देवताओं का चैतन्य ग्रहण कर पाना

  • ‘अलंकार अर्थात ईश्वरीय तत्त्व ग्रहण कर जीव को उसका लाभ करवानेवाला प्रणेता ।
  • अलंकार धारण करने से देह द्वारा देवताओं की चैतन्यदायी उâर्जाशक्ति का स्रोत ग्रहण होता है तथा जीव को कार्य करने की गति मिलती है ।’
        ‘अलंकार धारण करने से सगुण चैतन्य ग्रहण करना तथा इस चैतन्य को देह के अलंकारों के माध्यम से घनीभूत कर, उसका प्रक्षेपण आवश्यकतानुसार अल्पावधि में करना संभव होता है ।’
        ‘शरीर के विशिष्ट भाग पर विशिष्ट अलंकार धारण करना अर्थात सगुणत्व के माध्यम से ब्रह्मांडमंडल में विशिष्ट समय पर कार्यरत देवता का तेजरूपी चैतन्य ग्रहण करना सरल होना ।’
        ‘अलंकार शरीर के सौंदर्य के कारण नहीं; अपितु ईश्वर से मनुष्य के शरीर को प्राप्त चैतन्य के कारण ही सुशोभित होते हैं !’

इ. त्योहार एवं धार्मिक विधि के दिन और शुभदिन पर नए अथवा रेशमी वस्त्र एवं विविध अलंकार धारण करने से देवताओं की तरंगें ग्रहण कर पाना

        ‘त्योहार तथा धार्मिक विधि के दिन तथा शुभदिन पर कभी-कभी देवता सूक्ष्मरूप से भूतल पर आते हैं । उस दिन व्यक्ति का वस्त्रालंकारों से सुशोभित होना, उसकेद्वारा देवताओं के आगमन का स्वागत करने के समान है । इससे देवता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और व्यक्ति देवताओं की तरंगें ग्रहण कर पाता है ।’

६. उद्देश्यानुसार कलाकृति युक्त अलंकार

        देवता का तारक अथवा मारक तत्त्व आकृष्ट करने के उद्देश्य के अनुसार नाग, कमल इत्यादि कलाकृतियुक्त अलंकार धारण किए जाते हैं ।
अनुभूति – देवता के शीश का मुकुट धारण करने पर अपने सिर का काली शक्ति का आवरण मुकुट की रिक्ति में खिंच जाना :
‘सितंबर २००६ में मैं गोवा के बालाजी देवालय में गई थी । देवता के दर्शन करने के उपरांत वहां के पुजारी ने देवता के शीश का मुकुट मेरे सिर पर रखा । तब मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे मेरे सिर का काली शक्ति का आवरण मुकुट की रिक्ति में खिंच गया है । उस समय मुझे मुकुट में विद्यमान देवता की शक्ति का भान हुआ ।’ – कु. मधुरा भोसले, सनातन संस्था

७. अलंकार धारण करने से अनायास सूचीदाब (एक्यूप्रेशर) उपायों का लाभ होना

        सूचीदाब अर्थात शरीर के विशिष्ट अवयवों से संबंधित विशिष्ट बिंदु पर दबाव देकर शरीर में चैतन्यशक्ति के प्रवाह में आई काली शक्ति की बाधा दूर करना । ‘सूचीदाब’ उपायों से व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टों के निराकरण में सहायता मिलती है । (इस विषय की जानकारी सनातन के ग्रंथ ‘शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टों पर उपाय ‘सूचीदाब (एक्यूप्रेशर)’ तथा आगामी ‘सामान्य रोगों के लिए सूचीदाब उपाय (अनुभूतियों सहित)’ में दी है ।) ‘विविध अलंकार धारण करने से शरीर के विशिष्ट भाग के बिंदुओं पर दबाव पडता है, जिससे अनायास सूचीदाब (एक्यूप्रेशर) उपाय होते हैं । इससे स्पष्ट होता है कि ‘पूर्वकाल से चला आ रहा अलंकार धारण करने का उद्देश्य आध्यात्मिक स्तर पर किस प्रकार सूचीदाब पद्धति के माध्यम से जीव के लिए अज्ञात ही निरंतर कार्यरत है ।’ प्राचीन काल के जीवों द्वारा अलंकार धारण करने के आचार का परिपूर्ण पालन किया जाता था । इसलिए उन्हें किसी बाह्य माध्यम से स्वयं पर सूचीदाब पद्धति का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं पडी; क्योंकि वे अपने जीवन में निरंतर ही सूचीदाब का अनुभव कर रहे थे । कलियुग में हिन्दू आचारधर्म से परावृत्त हो चुका है, जिसके कारण बाह्यतः इस पद्धति का उपयोग करने की आवश्यकता उत्पन्न हुई है। इस प्रकार पूर्वकाल से ही सूचीदाब की पद्धति का उपयोग किया जाता था । इससे यही प्रमाणित होता है कि आचारधर्म द्वारा उसका उपयोग चैतन्य के स्तर पर करने में हमारे वैदिकजन अग्रसर थे ।’

८. अलंकारों के कारण चक्रशुद्धि तथा चक्रजागृति होना

        अलंकार शरीर के विशिष्ट अवयवों से संबंधित होते हैं । प्रत्येक अवयव शरीर के विशिष्ट चक्र (उदा. अनाहतचक्र, आज्ञाचक्र) से संबंधित होता है । विशिष्ट अवयव पर अलंकार धारण करने से अलंकारों के माध्यम से कार्यरत ईश्वरीय चैतन्य विशिष्ट अवयव से संबंधित चक्र तक पहुंचता है । इससे साध्य चक्रशुद्धि होने से अनिष्ट शक्तियों से पीडित व्यक्ति का कष्ट घटने में सहायता मिलती है । जो अनिष्ट शक्तियों की पीडा से मुक्त हैं, उनके चक्र जागृत होते हैं । इससे उन्हें विशिष्ट चक्र से संबंधित अनुभूति हो सकती है, उदा. अनाहतचक्र की जागृति से ईश्वर के प्रति भाव जागृत होता है ।

९. ग्रह पीडा से बचने के लिए अलंकार धारण करना

        मनुष्य के जीवन पर ग्रहों का बडा प्रभाव होता है । ग्रह पीडा निवारण के लिए अथवा उससे बचने के लिए विविध रत्नजडित अंगूठियां धारण करने के विषय में ज्योतिषशास्त्र में जानकारी दी जाती है ।
ग्रहरत्नकिस उंगलीमें धारण करते हैं ?
१. सूर्यमाणिकअनामिका
२. चंद्रमोतीकरांगुलि
३. मंगलमूंगाअनामिका
४. बुधपन्नाकरांगुलि
५. गुरुपुखराजतर्जनी
६. शुक्रहीराअनामिका
७. शनिनीलमणीमध्यमा
८. राहुगोमेदकनिष्ठिका
९. केतुलहसुनियाकनिष्ठिका

१०. अलंकारों के कारण अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होना

‘प्राचीन काल में क्षत्रिय राजा अलंकार (सोने – चांदी के) धारण करते थे । इस कारण शत्रु द्वारा अघोरी (तांत्रिक) प्रयोग करने पर उससे उनकी रक्षा होने में सहायता मिलती थी ।’

अ. अलंकार धारण करने से विशिष्ट अवयव के सर्व ओर सुरक्षा-कवच निर्मित होने से अनिष्ट शक्तियों से होनेवाला कष्ट घट जाना

        ‘अलंकार धारण करने पर विशिष्ट अवयव के सर्व ओर बंधन अर्थात चैतन्य का सुरक्षा-कवच निर्मित होता है । अतः अनिष्ट शक्ति व्यक्ति को कष्ट नहीं दे पाती । अनिष्ट शक्ति से पीडित व्यक्ति द्वारा अलंकार धारण करने पर उस व्यक्ति के शरीर में विद्यमान अनिष्ट शक्ति की देह भी प्रतिबंधित रहती है । (इससे उस अनिष्ट शक्ति को अन्य अनिष्ट शक्तियों से अथवा पाताल से सहायता प्राप्त करने का मार्ग बंद हो जाता है ।) यह किसी घर में चोरी करने के लिए आए चोर को पकड कर उसका शरीर बांधने के समान है । किसी के शरीर में प्रवेश कर चुकी अनिष्ट शक्ति, साथ ही बाहर से कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्ति के लिए व्यक्ति द्वारा धारण किए गए अलंकार अर्थात घर के लिए बनाए गए संरक्षक घेरे के समान है । इसीलिए अलंकार धारण करने से अनिष्ट शक्तियों के कारण होनेवाली पीडा घट जाती है ।’

आ. अलंकारों द्वारा कवच समान कार्य करना

        ‘साधना न करनेवाले जीव को अनिष्ट शक्तियों से न्यूनतम १० प्रतिशत सुरक्षा मिले, इसलिए स्वर्ण के अलंकारों की निर्मिति की गई । अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण सर्वप्रथम अलंकारों पर होता है । इसलिए आक्रमण का दुष्प्रभाव सर्वसामान्य पर पहले की तुलना में अल्प होता है । इसीप्रकार, अलंकार रज-तम से प्रभारित होने पर उनकी शुद्धि कर उनका उपयोग पुनः किया जा सकता है । अर्थात अलंकार सुरक्षा-कवच के समान कार्य करते हैं ।’

इ. अलंकार धारण करने पर ईश्वरीय चैतन्य आकर्षित एवं प्रक्षेपित होने की तथा अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों से रक्षा होने की मात्रा

साधारण स्त्रियांसाधारण पुरुषउच्च स्तरके जीव
(टिप्पणी १)
अलंकार
धारण करनाधारण न करनाधारण करनाधारण न करनाधारण करनाधारण न करना
१. ईश्वरीय चैतन्य आकृष्ट होने की मात्रा (प्रतिशत)१९१३१७१६१८२०
२. आकृष्ट ईश्वरीय चैतन्य
देह में बनाए खने की मात्रा
(प्रतिशत)
१५१०१२१२१८२२
३. अलंकारों के कारण कनिष्ठ
स्तर की अनिष्ट शक्तियों के
आक्रमणों से रक्षण होने की
मात्रा (प्रतिशत)
१२२०२५
टिप्पणी १- पुरुषों का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से अधिक एवं स्त्रियों का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक
संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्त्विक ग्रंथ ‘अलंकारोंका महत्त्व

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