Thursday, 29 March 2018

अम्बेड़करवाद v/s मुस्लिम तुष्टिकरण, धर्मान्तरण और इस्लामी भाईचारा
इस्लामी भाईचारा विश्वव्यापी भाईचारा नहीं हैं | वह मुसलमानों के प्रति भ्रातृत्व है | उनका भ्रातृत्व उन्हीं तक, उनके समाज तक ही सीमित हैं | 
 जिस प्रकार वर्तमान राजनीति का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम विकास न होकर केवल मुस्लिम तुष्टिकरण ही रह गया है जिसके कारण मुस्लिमों द्वारा की गयी कई बड़ी हिंसक घटनाओ पर भी राज्य हो या केन्द्र प्रशासन मौन रहा है |
इस तुष्टिकरण रूपी विष का बीज आजादी से पूर्व ही बो दिया गया था जिसका विरोध सभी देशभक्तो द्वारा किया गया उन्हीं में से एक नाम डॉ० भीमराव अम्बेड़कर जी का भी है |
तुष्टीकरण की नीति के विरोधी होने के कारण ही बाबा साहेब ने लखनऊ पैक्ट (जिसके आधार पर मुस्लिमों को सीटों का आरक्षण पहली बार मिला था) और नेहरू रिपोर्ट की भी निन्दा की थी |
१९ जनवरी १९२९ को 'बहिष्कृत भारत' में लिखे एक लेख में उन्होंने कहा कि...
"जिस योजना में हिन्दुओं का अहित होता हो वह योजना किस काम की | हम इस रपट का विरोध इसलिए नहीं करते हैं कि वह अस्पृश्यों के अधिकारों का हनन करती है वरन् इसलिए कि उससे हिन्दुओं को खतरा है और सारा हिन्दुस्तान उससे भविष्य में मुसीबत में पड़ सकता है |" (१)
वर्तमान में एक और समस्या देखने में आ रही है कि दलित लोग यहाँ तक की अफसर तक भी अपनी माँगे न पूरी होती देखकर इस्लाम कबूल करने की चैतावनी देते है ऐसे लोग अम्बेड़कर द्रोही है न कि वादी |
डॉ० अम्बेड़कर चाहते तो स्वयं भी इस्लाम या ईसाई धर्म अपना सकते थे मगर भारत माँ का वो सपूत बड़ा ही दूरदर्शी था अतः वे स्वयं कहते थे कि...
"यदि वे इस्लाम धर्म स्वीकार करते हैं तो मुसलमानों की संख्या इस देश में दूनी हो जायेगी और मुस्लिम प्रभुत्व का खतरा भी पैदा हो जायेगा | यदि वो ईसाई धर्म स्वीकार करते हैं तो ईसाईयों की संख्या अधिक बढ़ जायेगी और इससे भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व सुदृढ़ हो जायेगा |" (२)
जिस प्रकार प्रारम्भ में मुस्लमान नवाबो द्वारा भारतीयो का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया गया उसी प्रकार का कु कृत्य बटवारे के पश्चात् भी पाकिस्तान और हैदराबाद के निजाम ने भी किया |
जब बाबा साहेब को मुस्लिमों द्वारा दलितो पर किये किये जा रहे अत्याचारों का पता चला तो वो बहुत दुःखी हुए | उन्होनें जहाँ हैदराबाद के निजाम को भारत का दुश्मन बताया वही समाचार पत्रों में दलितो के लिए एक वक्तव्य प्रकाशित करवाया जिसमे उन्होने कहा...
"बलात्-मुस्लिम बनाये जाने से बचने के लिए वे जिस भी प्रकार सम्भव हो भारत आजायें | मुसलमानों पर केवल इसलिये भरोसा अथवा विश्वास न कर लें कि उनकी सवर्ण हिन्दुओं से नाराजगी है, यह बहुत बड़ी भूल होगी |" (३)
जैसा व्यवहार मुस्लिमों का विश्वरभर में है उसे देखते हुए गैर-मुस्लिम जो निर्णय निकालते है ऐसा ही कुछ निर्णय विवेकशील डॉ० अम्बेड़कर जी का भी था | वो कहते हैं...
"इस्लामी भाईचारा विश्वव्यापी भाईचारा नहीं हैं | वह मुसलमानों के प्रति भ्रातृत्व है | उनका भ्रातृत्व उन्हीं तक, उनके समाज तक ही सीमित हैं | जो इस समाज के बाहर हैं उनके प्रति मुसलमान घृणा और शत्रुता रखते हैं | एक सच्चा मुसलमान कभी भी भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना भाई मानने को तैयार नहीं होगा | इसी कारण मौलाना मोहम्मद अली ने एक महान भारतीय और सच्चा मुसलमान होने के बाबजूद मृत्यु के बाद येरूशलम की क्रब में दफनाया जाना पसन्द किया |" (४)
डॉ० अम्बेड़कर जी १९१९ की याद करते हुये लिखते हैं कि...
"स्मरण रखो कि जब खिलाफत आन्दोलन चल रहा था तब भारत के मुसलमान अफगानिस्तान के अमीर को भारत पर आक्रमण का न्यौता देने चले गये थे |" (५)
मित्रों अन्त मैं बस यही कहना चाहता हुँ कि राजनैतिक पार्टिया डॉ० अम्बेड़कर पर केवल राजनीति करना छोड़कर उनके विचारो पर अमल करे साथ ही वो युवा जो स्वयं को तो अम्बेड़करवादी बताते है परन्तु बीफ पार्टी और आंतकीयो की फाँसी पर नारेबाजी आदि राष्ट्रविरोधी कार्य करते हैं एक बार उस राष्ट्रभक्त को पढ़े और जाने आखिर डॉ० अम्बेड़कर क्या थे ???
Ref::-
(१) *बहिष्कृत भारत -- डॉ० बी• आर• अम्बेड़कर
(२) * डॉ० अम्बेड़कर : व्यक्तित्व एंव कृतित्व-- डॉ० डी• आर• जाटव पृष्ठ २०१
(३) * डॉ० भी• अम्बेड़कर-- डॉ० बृजलाल वर्मा पृष्ठ ३३९-३४०
(४) * राष्ट्रपुरूष डॉ० भीमराव अम्बेड़कर-- डॉ० कृष्ण गोपाल पृष्ठ २०
(५) * थाट्स आन
पाकिस्तान-- डॉ० भीमराव अम्बेड़कर पृष्ठ ९०
ओ३म्...!
जय आर्य ! जय आर्यावर्त !!

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