विदेशी फसल ...
स्कूलों में, एवम यदा कदा अखबारों में , ये प्रायः लिखा रहता है कि आलू पोलैंड से आया, टमाटर जापान से , गन्ना ब्राजील से भारत आया आदि। बस ये एक लाइन लिख कर फिर आगे आलू, टमाटर आदि के गुण, सब्जी बनाने की विधि, व्यंजन, औषधीय उपयोग आदि का वर्णन होता है। लेकिन ये कभी नहीं लिखा रहता कि भारत से कौन लेने गया था या वहा से कौन भारत लेकर आया और कब ?
एक 99% सत्य लेख की आड़ में केवल एक झूठ लिख दिया जाता है जिसको हमारा *अवचेतन मस्तिष्क ग्रहण कर लेता है*, और ये एक तथ्य हमको जीवन भर याद रह जाता है ,और ऐसे ही 1% प्रतिदिन के झूठ पढ़ते हुए 10 साल का बालक, *40 वर्ष की उम्र तंक मानसिक गुलाम बन जाता है।*
जबकि सत्य ये है कि पुराणो में सम्राट *पृथु द्वारा कृषि कार्य के विस्तार का प्रसंग आता है*, अग्निपुराण में हजारो औषधीयो एवम अनाज, शक्कर आदी का वर्णन है, निघंटु ग्रंथो में आलू,प्याज,गन्ने, दाल, पालक, घी,दूध, चावल, भिन्डी आदि का औषधीय वर्णन है,संस्क्रत में। महाभारत काल में विदुर जी की पालग साग और द्रौपदी की हांडी के चावल का वर्णन है।
भगवान् को छप्पन भोग अर्पित करने वर्णन पूजा पद्यति में है और प्राचीनकाल से लेकर कालियुग में *भारत के सम्राट का राज्य तो पृथ्वी के अधिकांश हिस्से था* जोकि कालान्तर में एशिया के कुछ हिस्से तक, 1100 वर्ष पहले तक, सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय तक रहा है।
तो फिर जापान,बर्मा,थायलैंड ये विदेश क्षेत्र कैसे हो गए भारत्त के प्राचीन इतिहास के हिसाब से।आज विशेष एकपोथिया लहसुन केवल आसाम तरफ पाया जाता है । यदि ये कुछ 500 किलोमीटर दूर पाया जाता तो तुरंत इल्लिमिनाती के एजेंट लिख देते कि ये लहसुन भारत में चीन से आया वस्तुतः चीन का बहुत सारा सीमावर्ती हिस्सा कुछ दशक पहले तक भारत का ही था
भारत के लोगो को जंगली अज्ञानी, भारत भूमि को साधनविहीन घोषित करने के लिये, *मैक्समूलर की आर्यो के बाहर से आगमन की थ्योरी एवम डिस्कवरी आफ इंडिया किताब को सही साबित करने के लिये* इल्लुमिनाति प्रतिदिन एक झूठ निर्मित करते जाता है और अंग्रेजी अखबार, पत्रिकाएं, मीडिया उसको प्रसारित करते है जोकि फिर हिंदी , क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित होकर पुरे देश में फ़ैल जाता है और मानसिक गुलामो की संख्या में वृद्धि होते जाती है।
एक श्रृंखला के रूप में, *यूरोप में जन्मा झूठ*, भारत की किताबो,अखबारों में परोसने वाले कौन, और उद्देश्य क्या ??
साभार अन्यत्र से
विष्णु गुप्त चाणक्य की पोस्ट
विष्णु गुप्त चाणक्य की पोस्ट
No comments:
Post a Comment