Sunday 27 September 2015

हिन्दू की आँख में तो आंसू तब भी आजाता है जब मिटटी की मूर्ती बिसर्जित होने के लिए जाने लगती है.
.... ओर वो शांतिदूत है जो जीव हत्या के बाद भी जश्न मनाते है और मुबारकबाद देते हे..
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.ढकोसलो का नारा ..सारे धर्म समान है..
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एक जनाब खालिद हुसैन ट्विटर पर खूब खुश होकर चिट्ठी बाँच रहे थे कि "मुम्बई में ईद उल अजहा की नमाज़ के लिए मस्जिद में जगह कम पड़ गई तो बगल में लगे गणेश जी के पंडाल में नमाज़ पढ़ी गई।"
मैंने रिप्लाई किया कि "अच्छा है। हम भी उम्मीद करते हैं कि जरुरत पड़ने मस्जिद में भी गणेश आरती हो सकेगी "
24 घंटे हो गए। अभी तक जवाब नहीं आया।
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एक लीटर पानी से आजीवन हरा-भरा रहेगा पौधा
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राजस्थान के सीकर जिले में गांव दांता के सुंडाराम वर्मा ने अनूठी खोज की जिसमें एक लीटर पानी से आजीवन एक पौधा जीवित रह सकता है। पिछले 25 वर्षों से वे इस कार्य को बखूबी अंजाम दे रहे हैं और अभी तक उनके द्वारा लगाए गए ऐसे पौधों की संख्या 50 हजार पार कर चुकी है। इस खोज के लिए न केवल उन्हें भारत सरकार की विभिन्न कृषि संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया गया, बल्कि विदेशों में भी उनकी इस खोज को खूब सराहा गया। सुंडाराम वर्मा 
्ने विज्ञान से स्नातक उपाधि प्राप्त की।
 शिक्षा पूरी करने के बाद दो बार वे शिक्षक पद के लिए चुने गए, लेकिन उन्होंने शिक्षक बनने में दिलचस्पी नहीं ली। वर्ष 1983 में उन्हें राजस्थान की ओर से दिल्ली के पूसा इंस्टीट्यूट में 'फार्मर ट्रेनिंग कोर्स' पर जाने का अवसर मिला। वहां सभी का उन्नत खेती सिखाने पर आग्रह था, लेकिन राजस्थान और वहां सूखे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए वर्मा की लगन बिना पानी वाली खेती की जानकारी प्राप्त करने में ज्यादा थी। उन्होंने तब चना, गेंहू, सरसों और जौ यानी कम पानी में होने वाली फसलों की जानकारी ली। उनके दिमाग में यह बात रहती थी कि ऐसी खोज की जाए जिसमें कम पानी की सिंचाई से भी पौधे पनप सकें। उन्होंने दिल्ली में कृषि वैज्ञानिकों से मिलकर उनको अपनी खोज के बारे में बताया जिसे खूब सराहा गया। उन्होंने बताया कि इस विधि से मिट्टी 0.5 फीसद से 3 फीसद तक जल अवशोषित करती है। एक घन मीटर मिट्टी में 80 से 300 लीटर पानी अवशोषित करने की क्षमता होती है।
 मिट्टी में गया जल खरपतवार और केशिका नली के सिद्धांत (कैपिलरी एक्शन) से बाहर निकलकर वाष्पित हो जाता है। उनके अनुसार 5 से 6 इंच चौड़ा और डेढ़ फुट गहरा गड्ढा खोद कर उसमें पौधे लगाने शुरू किए। उनका मानना था कि पौधा लगाते समय करीब 10 इंच का होता है और ऊपर से 2 इंच मिट्टी दबाने पर वह 12 इंच तक का हो जाता है जिसमें गीली मिट्टी डाली जाती है। पौधा लगाते समय उसमें मात्र एक लीटर पानी डालने की आवश्यकता होती है जिसके बाद जीवन में कभी पानी नहीं डालना पड़ता है। उनके अनुसार जुलाई माह में 'प्री मानसून' और 20 अगस्त के बाद होने वाली मूसलाधार बारिश के तुरंत बाद खेत की जुताई करनी चाहिए।
मानसून में बरसात का पानी मिलना ही उसके लिए काफी होता है। उन्होंने सबसे पहले 1983 में कुल 200 पौधे लगाए थे। श्री वर्मा ने राजस्थान की प्रमुख 15 फसलों की 700 से अधिक प्रजातियों को संकलित किया। 400 प्रजातियां नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सिस (एनबीपीजीआर) पूसा, दिल्ली में संरक्षित की गई हैं जिनमें से 197 को पंजीकृत किया जा चुका है। वे राजस्थान में राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान (एनआईएफ) के प्रतिनिधि के रूप में नई-नई खोज करने वाले किसानों को खोज कर उन्हें प्रोत्साहन दे रहे हैं। -राहुल शर्मा

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