Wednesday, 22 February 2017

हिन्दु "जयचन्दों" से कुछ सवाल हैं।
बिना उत्तेज़ित हुये पढ़े और विचार करें। तर्क़ों का स्वागत है, कुतर्क़ों का नहीं। सवाल निम्नवत हैं:
1. क्या आज़ादी मिलने के बाद भारत का "धर्म-आधारित" विभाजन हुआ? जवाब है, हाँ।
2. जब महज़ धर्म के नाम पर मुसलमानों ने भारत को तोड़ दिया, फिर भारत पर उनका कैसा हक़?
जवाब है, कोई हक़ नहीं।
3. जब बँटवारे में मुसलमानों को अलग मुस्लिमराष्ट्र मिला तो क्या हिन्दुओं को अलग हिन्दुराष्ट्र लेने का हक़ नहीं था?
जवाब है, बिल्कुल था।
4. चलिये छोड़िये, हिन्दुओं को अलग हिन्दुराष्ट्र नहीं मिला, ये ना-इंसाफ़ी भी स्वीकार ! कुछ मुसलमानों ने पाक़िस्तान जाने की बजाय हिन्दुस्तान में रहना पसन्द किया, येभी स्वीकार। भारत एक "धर्म-निरपेक्ष" राष्ट्र घोषित हुआ, स्वीकार। तो क्या इस "धर्म-निरपेक्ष" राष्ट्र में सभी धर्मों को समान अधिकार नहीं मिलना चाहिये था? महज़" अल्पसंख्यक" के नाम पर किसी धर्म-विशेष को विशेषाधिकार देने का क्या औचित्य था?
जवाब है - हाँ, सभी धर्मों को समान अधिकार मिलने चाहिये थे। किसी धर्म-विशेष को विशेषाधिकार देने का कोई औचित्य नहींथा।
5. अगर आरक्षण देने का कोई प्रावधान था, तोक्या सभी धर्मों में आरक्षण की समान पद्धतिलागू नहीं होनी चाहिये थी?
जवाब है, हाँ। अगर नीतिगत तरीक़े से सोचा जाये तो सभी धर्मों के लिये आरक्षण की समान पद्धति लागू होनी चाहिये थी।
6. चलो, इस मुद्दे को भी नज़र-अंदाज़ करते हैं।चलो, अल्पसंख्यक के नाम पर दिये जा रहेविशेषाधिकार भी स्वीकार! अब सवाल ये हैकि क्या मुस्लिम सांवैधानिक ढ़ाँचे के अनुरूपआज भी "अल्पसंख्यक" हैं?
जवाब है, नहीं। आज वो कुल जन्संख्या का लगभग 20% हो चुके हैं। तो अब वो "अल्पसंख्यक" नहीं हैं। फ़िर विशेषाधिकारों का कोई औचित्य नहींहै।
7. अगर मुसलमान "अल्पसंख्यक" हैं तो फ़िर बुद्ध,जैन, सिंधी, पारसी, सिख आदि क्या हैं? क्याउन्हें "अल्पसंख्यक" के नाम पर कोई विशेषाधिकार प्राप्त हैं?
जवाब है, नहीं। वास्तविक अल्पसंख्यकों की पूर्णतया अनदेखी हो रही है, क्यों कि वो"वोट-बैंक" नहीं हैं। सरकारी उदासीनता काआलम ये है कि सिंधी, पारसी आज विलुप्त होनेके कगार पर हैं।
8. जिसे आप धर्म-निरपेक्षता कहते हैं, क्या वो सिर्फ़ हिन्दुओं के लिये है, मुस्लिमों के लिये नहीं?
जवाब है, हाँ। ये "धर्म निरपेक्षता" सिर्फ़ हिन्दुओं पर थोपी जाती है। कश्मीर जैसे मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम, हिन्दुओं को खदेड़-खदेड़ कर भगाते हैं, उनके लिये कोई "धर्म-निरपेक्षता" नहीं। जबकि हिन्दु-बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम मज़े से रहते हैं, क्योंकि हिन्दु धर्म-निरपेक्ष हैं
भाई! सवाल और भी कयी हैं, ये तो महज़ शुरूआती झांकी है। आशा है कि हिन्दुओं के बीच मौज़ूद "जयचन्दों" की शायद आँखें खुलें। मुस्लिमों और हिन्दुओं में सबसे बड़ा फ़र्क़ यही है कि मुस्लिमों में गद्दार जयचन्दों की संख्या ना के बराबर है,जबकि हिन्दुओं में कदम-कदम पर जयचन्द मौजूद हैं जो उसी डाल को साम्प्रदायिक बोलकर काटने में लगे हैं, जिस पर वो खुद बैठे हैं। इस मामले में मुसलमान बधाई के पात्र हैं।
मुसलमान हिन्दुओ के जन्मजात दुश्मन ही सही पर हिन्दुओं को उनसे कुछ सीखना चाहिये।
मौन गुलामी के दलदल में , आज धंसी हैं भारत माँ ,"
"यूं लगता है फिर मुगलों के , बीच फंसी हैं भारत माँ........"
"केसरिया झंडे मज़ार की , चादर बनकर बैठे हैं ,"
"रामचंद्र के बेटे खुद ही , बाबर बनकर बैठे हैं........"

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