कित्तूर की वीर रानी चेन्नम्मा
कर्नाटक में चेन्नम्मा नामक दो वीर रानियां हुई हैं l केलाड़ी की चेन्नम्मा ने औरंगजेब से, जबकि कित्तूर की चेन्नम्मा ने अंग्रेजों से संघर्ष किया था l कित्तूर के शासक मल्लसर्ज की रुद्रम्मा तथा चेन्नम्मा नामक दो रानियां थीं l काकतीय राजवंश की कन्या चेन्नम्मा को बचपन से ही वीरतापूर्ण कार्य करने में आनंद आता था l वह पुरुष वेश में शिकार करने जाती थी l ऐसे ही एक प्रसंग में मल्लसर्ज की उससे भेंट हुई l उसने चेन्नम्मा की वीरता से प्रभावित होकर उसे अपनी दूसरी पत्नी बनाया l
कित्तूर पर एक ओर टीपू सुल्तान तो दूसरी ओर अंग्रेज नजरें गड़ाये थे l दुर्भाग्यवश चेन्नम्मा के पुत्र शिव बसवराज और फिर कुछ समय बाद पति का भी देहांत हो गया l ऐसे में बड़ी रानी के पुत्र शिवरुद्र सर्ज ने शासन संभाला, पर वह पिता की भांति वीर तथा कुशल शासक नहीं था l स्वार्थी दरबारियों की सलाह पर उसने मराठों और अंग्रेजों के संघर्ष में अंग्रेजों का साथ दिया l अंग्रेजों ने जीतने के बाद सन्धि के अनुसार कित्तूर को भी अपने अधीन कर लिया l कुछ समय बाद बीमारी से राजा शिवरुद्र सर्ज का देहांत हो गया l चेन्नम्मा ने शिवरुद्र के दत्तक पुत्र गुरुलिंग मल्लसर्ज को युवराज बना दिया l
पर, अंग्रेजों ने इस व्यवस्था को नहीं माना तथा राज्य की देखभाल के लिए धारवाड़ के कलैक्टर थैकरे को अपना राजनीतिक दूत बनाकर वहां बैठा दिया l कित्तूर राज्य के दोनों प्रमुख दीवान मल्लप्पा शेट्टी तथा वेंकटराव भी रानी से नाराज थे l वे अंदर ही अंदर अंग्रेजों से मिले थे l थैकरे ने रानी को संदेश भेजा कि वह सारे अधिकार तुरंत मल्लप्पा शेट्टी को सौंप दे l रानी ने यह आदेश ठुकरा दिया l वे समझ गयीं कि अब देश और धर्म की रक्षा के लिए लड़ने-मरने का समय आ गया है l रानी अपनी प्रजा को मातृवत प्रेम करती थीं l अतः उनके आह्नान पर प्रजा भी तैयार हो गयी l गुरु सिद्दप्पा जैसे दीवान तथा बालण्णा, रायण्णा, जगवीर एवं चेन्नवासप्पा जैसे देशभक्त योद्धा रानी के साथ थे l
23 अक्तूबर, 1824 को अंग्रेज सेना ने थैकरे के नेतृत्व में किले को घेर लिया l रानी ने वीर वेश धारण कर अपनी सेना के साथ विरोधियों को मुंहतोड़ उत्तर दिया l थैकरे वहीं मारा गया और उसकी सेना भाग खड़ी हुई l कई अंग्रेज सैनिक तथा अधिकारी पकड़े गये, जिन्हें रानी ने बाद में छोड़ दिया, पर देशद्रोही दीवान मल्लप्पा शेट्टी तथा वेंकटराव को फांसी पर चढ़ा दिया गया l स्वाधीनता की आग अब कित्तूर के आसपास भी फैलने लगी थी l अतः अंग्रेजों ने मुंबई तथा मद्रास से कुमुक मंगाकर फिर धावा बोला l उन्हें इस बार भी मुंह की खानी पड़ी, पर तीसरे युद्ध में उन्होंने एक किलेदार शिव बासप्पा को अपने साथ मिला लिया l उसने बारूद में सूखा गोबर मिलवा दिया तथा किले के कई भेद शत्रुओं को दे दिये l अतः रानी को पराजित होना पड़ा l
अंग्रेजों ने गुरु सिद्दप्पा को फांसी पर चढ़ाकर रानी को धारवाड़ की जेल में बंद कर दिया l देशभक्त जनता ने रानी को मुक्त कराने का प्रयास किया, पर वे असफल रहे l पांच वर्ष के कठोर कारावास के बाद 21 फरवरी, 1929 को धारवाड़ की जेल में ही वीर रानी चेन्नम्मा का देहांत हुआ l रानी ने 23 अक्तूबर को अंग्रेजों को ललकारा था. उनकी याद में इस दिन को दक्षिण भारत में ‘महिला दिवस’ के रूप में मनाया जाता है l
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