हावतार बाबा जी के बारे में परमहंस योगानंद ने अपनी पुस्तक योगी कथामृत में 1945 में बताया था। उन्होंने बताया कि किस प्रकार हिमालय में रहते हुए बाबा जी ने सदियों से आध्यात्मिक लोगों का मार्गदर्शन किया है।बाबाजी सिद्ध हैं जो साधारण मनुष्य कि सीमाओं को तोड़ कर समस्त मानव मात्र के आध्यात्मिक विकास के लिए चुपचाप काम कर रहे हैं। बताया जाता है आदि शंकराचार्य और ईसा मसीह ने भी बाबा जी से दीक्षा ली थी।बाबाजी के जन्मस्थान और परिवार के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चल सका। जो लोग भी उनसे जब भी मिले, उन्होंने हमेशा उनकी उम्र 25-30 वर्ष ही बताई। लाहिड़ी महाराज ने बताया था कि उनकी शिष्य मंडली में दो अमेरिकी शिष्य भी थे। वे अपनी पूरी शिष्य मंडली के साथ कहीं भी कभी भी पहुंच जाया करते थे।परमहंस योगानंद ने अपनी पुस्तक में बाबाजी से जुड़ी दो घटनाओं का उल्लेख किया है .पहली घटना का उल्लेख करते हुए योगानंद ने लिखा है कि एक बार रात में बाबाजी अपने शिष्यों के साथ थे। पास ही में अग्नि जल रही थी। बाबाजी ने उस अग्नि से एक जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने एक शिष्य के कंधे पर मार दी। जलती हुई लकड़ी से इस तरह मारे जाने पर बाबाजी के शिष्यों ने विरोध किया। इस पर बाबाजी ने उस शिष्य के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कि मैंने तुम्हें कोई कष्ट नहीं पहुंचाया है बल्कि आज होने वाली तुम्हारी मृत्यु को टाल दिया है।इसी तरह जो दूसरी बात का उल्लेख योगानंद ने किया है, उसके अनुसार एक बार बाबाजी के पास एक व्यक्ति आया और वह जोर-जोर से उनसे दीक्षा देने की जिद करने लगा। बाबाजी ने जब मनाकर दिया तो उसने पहाड़ से नीचे कूद जाने की धमकी दी। इसपर बाबाजी ने कहा ‘कूद जाओ’, उस शख्स ने आव देखा न ताव पहाड़ी से कूद गया।यह दृश्य देख वहां मौजूद लोग हतप्रभ रह गए। तब बाबाजी ने शिष्यों से कहा- ‘पहाड़ी से नीचे जाओ और उसका शव लेकर आओ।’ शिष्य पहाड़ी से नीचे गए और क्षत-विक्षत शव लेकर आ गए। शव को बाबाजी के सामने रख दिया। बाबाजी ने शव के ऊपर जैसे ही हाथ रखा, वह मरा हुआ व्यक्ति सही सलामत जिंदा हो गया। इसके बाद बाबाजी ने उससे कहा कि ‘आज से तुम मेरी टोली में शामिल हो गए। तुम्हारी ये अंतिम परीक्षा थी।’
साधकों की ऐसे करते हैं मदद, उन्हें पता ही नहीं चलता
बाबाजी दुनियादारी से दूर रहकर योग साधकों को इस तरह सहायता करते हैं कि कई बार साधकों को उनके बारे में मालूम तक नहीं रहता। परमहंस योगानन्द ने ये भी बतलाया है कि सन् 1861 में लाहिड़ी महाशय को क्रिया योग की शिक्षा देने वाले बाबाजी ही हैं।बाद में लाहिड़ी महाशय ने अनेक साधकों को क्रिया योग की दीक्षा दी। लगभग 30 वर्ष बाद उन्होंने योगानंद के गुरु श्री युक्तेश्वर गिरी को दीक्षा दी। योगानंद ने 10 वर्ष अपने गुरु के साथ बिताए, जिसके बाद स्वयं बाबाजी ने उनके सामने प्रकट होकर उन्हें क्रिया योग के इस दिव्य ज्ञान को पाश्चात्य देशों में ले जाने का निर्देश दिया।
साधकों की ऐसे करते हैं मदद, उन्हें पता ही नहीं चलता
बाबाजी दुनियादारी से दूर रहकर योग साधकों को इस तरह सहायता करते हैं कि कई बार साधकों को उनके बारे में मालूम तक नहीं रहता। परमहंस योगानन्द ने ये भी बतलाया है कि सन् 1861 में लाहिड़ी महाशय को क्रिया योग की शिक्षा देने वाले बाबाजी ही हैं।बाद में लाहिड़ी महाशय ने अनेक साधकों को क्रिया योग की दीक्षा दी। लगभग 30 वर्ष बाद उन्होंने योगानंद के गुरु श्री युक्तेश्वर गिरी को दीक्षा दी। योगानंद ने 10 वर्ष अपने गुरु के साथ बिताए, जिसके बाद स्वयं बाबाजी ने उनके सामने प्रकट होकर उन्हें क्रिया योग के इस दिव्य ज्ञान को पाश्चात्य देशों में ले जाने का निर्देश दिया।
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