धर्मांतरण के कारण हिन्दू जनसंख्या में आई कमी को रेखांकित करते केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू के बयान ने कांग्रेस में खलबली मचा दी है ! उनकी चिंता का एक कारण वे अटकलें भी हैं, जिनमें माना जा रहा है कि अरुणाचल प्रदेश के मुख्य मंत्री पेमा खांडू जल्द ही मिशनरी गतिविधियों की जांच करने के लिए नियम बनाने जा रहे हैं ।
अरुणांचल प्रदेश में भाजपा 12 वर्ष के बाद दोबारा दो माह पूर्व दिसंबर में सत्तारूढ़ हुई है, जब रीजनल पीपुल्स पार्टी के 43 में से 33 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया !
स्मरणीय है कि राजीव गांधी के शासनकाल में हुई पॉप की भारत यात्रा के बाद से ही पूर्वांचल में धर्मांतरण की बाढ़ आ गई थी और चीन की सीमा से लगा यह क्षेत्र धीरे धीरे ईसाई बहुल होता गया !
इस पृष्ठभूमि में कांग्रेस की राज्य इकाई के महासचिव मिन्किर लोल्लेन का यह बयान देखा जाना चाहिए, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अरुणाचल प्रदेश में घर वापसी के माध्यम से उसे एक हिंदू-बहुल राज्य बनाने के गुप्त एजेंडे पर कार्य कर रहे हैं ।
स्वाभाविक ही भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य की जनसांख्यिकी को बदलने में कांग्रेस की बड़ी भूमिका रही है।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष तपीर गाओ ने कहा कि कांग्रेस शासनकाल में स्वदेशी जनजातियों की समृद्ध परंपरा और संस्कृति के विनाश का जो षडयंत्र रचा गया उसका एक लंबा इतिहास है, जबकि भाजपा की नीति सदैव स्वदेशी प्रथाओं, परंपरा और संस्कृति के संरक्षण के समर्थन की रही है ।
आस्थाओं का संघर्ष -
ईसाई मिशनरियों ने धर्मांतरण के लिए मुख्यतः डोनी-पोलो और रंग्फ्रा जैसे स्वदेशी धर्मों को निशाना बनाया ।
डोनी -पोलो का अर्थ है सूर्य-चंद्रमा ! जैसाकि नाम से ही स्पष्ट है यह सम्प्रदाय मुख्यतः प्रकृति पूजक है, तथा इसके अनुयाईयों में मुख्यतः स्थानीय अपतानी, गालो, न्यिशी और तागिन जनजातियों का अबोतानी समूह है ।
इसीप्रकार रंग्फ्रा सम्प्रदाय की आधार भावभूमि को वैष्णव मत का आदिवासी संस्करण कहा जा सकता है ! इसके अनुयाईयों में मुख्य रूप से तंग्सा जनजाती के लोग हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से संचालित वनवासी कल्याण आश्रम इन स्वदेशी मान्यताओं को बढ़ावा देने व जनजातियों को संगठित कर स्वावलंबी बनाने के कार्य में प्राणपण से जुटा है ।
इसके बाद भी 2014 के पूर्व तक के सत्ता अधिष्ठानों के सबल संरक्षण में व्यापक पैमाने पर धर्मान्तरण हुए, जिसे जनगणना के आंकडे भी स्पष्ट करते हैं –
ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि 1951 तक अरुणाचल प्रदेश में एक भी ईसाई नहीं था, किन्तु 2001 आते आते कुल जनसंख्या का 18.7% भाग ईसाई हो गया तथा राज्य की आबादी का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह बन गया ! हिंदुओं की आवादी 34.6% और डोनी-पोलो की 30.7% रह गई ।
यह आनुपातिक परिवर्तन इतने पर ही नहीं थमा, 2011 की जनगणना के अनुसार तो ईसाई धर्म अब राज्य का सबसे बड़ा धर्म बन चुका है। रोमन कैथोलिक ईसाई अब राज्य की कुल आबादी के 30.26% हैं, जबकि हिन्दू हिंदुओं की आबादी 29.04% रह गई है । हिन्दुओं की जनसंख्या में 5.56% की कमी आई है तो डोनी -पोलो के अनुयायियों की संख्या में भी 4.5% की गिरावट दर्ज की गई है ।
क्या तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का एकसूत्री कार्यक्रम बहुसंख्यक हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बनाना है ?
एक महत्वपूर्ण विषय पर पाठक महानुभाव ध्यान दें –
ओडिशा में 1967 में धर्मांतरण विरोधी कानून बना, उसके बाद 1968 में मध्य प्रदेश ने ऐसा ही क़ानून बनाया । 1978 में अरुणाचल प्रदेश ने भी धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम के नाम से एक क़ानून बनाया जिसका मुख्य उद्देश्य धर्मांतरण की जाँच करना ही था ।
इसके बाद 2000 में छत्तीसगढ़, 2003 में गुजरात, 2007 में हिमाचल प्रदेश और 2008 में राजस्थान ने भी धर्मांतरण विरोधी कानून पारित कर किसी को बल पूर्वक या आर्थिक प्रलोभन देकर धर्मांतरण पर कानूनन रोक लगा दी ।
अरुणाचल का धर्मांतरण विरोधी कानून, अन्य राज्यों के विपरीत, निष्प्रभावी है, क्योंकि इसके अंतर्गत कोई नियम नहीं बनाये गए हैं । इस कमी का लाभ उठाकर ईसाई मिशनरियां बेख़ौफ़ अपनी कारगुजारियां जारी रखे हुए हैं !
अब माना जा रहा है कि पेमा खांडू के नेतृत्व में भाजपा सरकार मिशनरी गतिविधियों की जांच करने के लिए नियम बनाने जा रही है ।
वर्ष 2013 में भाजपा के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू ने घोषणा की थी कि अगर उनकी पार्टी जीतती है तो एक राष्ट्रव्यापी धर्मांतरण विरोधी कानून बनायेगी । पार्टी जीत तो गई है, किन्तु अभी भी वह राज्यसभा में अल्पमत में है और चाहकर भी क़ानून नहीं बना सकती ।
क्या पांच राज्यों के चुनाव इस स्थिति को बदल पायेंगे ? क्या राज्यसभा में भाजपा बहुमत में आ पायेगी ?
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