"हम क्या कर सकते हैं और क्या कर रहे हैं, क्या करने की आवश्यकता है और क्या हो रहा है, वर्त्तमान की परिस्थितियां आज हम सभी से यही प्रश्न पूछ रहीं हैं, जिसे हम व्यवहारिकता के नाम पर भले ही अनदेखा करने का प्रयास करें, पर इससे यथार्थ की परिस्थितियां नहीं बदलेंगी, फिर व्यवहारिकता के नाम पर हम संवेदनहीनता को ही समझदारी मान लें तो अलग बात है ।
देश के प्रयास की सही दिशा के लिए सही नेतृत्व की आवश्यकता होगी, सही नेतृत्व के लिए सही जन प्रतिनिधि निर्णायक होंगे, सही जन प्रतिनिधियों को सुनिश्चित करने के लिए विचारधारा के राजनैतिक संस्करण का नैतिक मूल्यों पर आधारित होना आवश्यक होगा और यह तभी संभव है जब राजनैतिक दल के रूप में कार्यरत लोगों में स्वयंसेवकों का संस्कार हो जिससे उनके समर्पण का विषय विचारधारा की जीत हो न की जीत की विचारधारा।
इस दृष्टि से देश के व्यवस्था परिवर्तन के प्रयास में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण व् निर्णायक हो जाती है; व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि के लिए राजनीतिक कार्यकर्ताओं का स्वयंसेवक बनने से राष्ट्र के परम वैभव के उद्देश्य की प्राप्ति संभव ही नहीं क्योंकि यह तभी संभव होगा जब स्वयंसेवक राजनीती के क्षेत्र में कार्यकर्त्ता की भूमिका निभाएं।
सत्ता के स्वार्थ से प्रेरित राजनीती तो सभी करते हैं, अगर स्वयंसेवक भी वही करें तो उनमें और दूसरों में क्या अंतर रह जाएगा; राष्ट्रवाद पर राजनीति न हो और राजनीति को राष्ट्रहित में सुनिश्चित करने के लिए आज राजनीति के क्षेत्र को कार्यकर्त्ता के रूप में स्वयंसेवकों की आवश्यकता है।
अपेक्षाएं अपनों से ही की जाती है और चुकी किसी विशेष उद्देश्य से संघ ने अपने गर्भ से जिस राजनैतिक दल को विकल्प के रूप में जन्मा था स्वाभाविक है की अपेक्षाएं भी उन्हीं से होंगी , दूसरों ने क्या किया यह तुलना व्यर्थ है, महत्व केवल इस बात का है की हम क्या कर सकते हैं और क्या कर रहे हैं, जितनी जल्दी हम इस बात को समझेंगे , देश, प्रदेश, राजनीति और सामाजिक व्यवस्था का उतना भला होगा।"
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