Tuesday, 28 February 2017

"युद्ध की तैयारी करो बाजी...शायद यह हमारा अंतिम युद्ध है...हमारी सेना उनके मुकाबले बहुत कम है...उनके मुकाबले के हथियार हमारे पास नहीं है..लगता है हम विशालगढ तक नहीं पहूंच पायेंगे।"...शिवाजी ने बिजापूर से लड़ने आयी विशाल सेना को देखते हुये कहा। "महाराज आप जाइये ! जब तक मैं खड़ा हूँ मैं इन्हें यह गोलखिंडी दर्रा(घाटी) पार नहीं करने दूँगा। स्वराज को आपकी जरूरत है", बाजीप्रभू देशपांडे ने शिवाजी के पैर छुते हुये कहा।

शिवाजी ने बाजी प्रभु को गले लगाया और कहा "जैसे ही मैं उपर पहूंच कर तोप दाग दूँ तो समझ जाना मैं सुरक्षित उपर पहूंच गया हूँ। तुम तुरंत वापस आ जाना।

शिवाजी के लगातार हमलों से भड़के बिजापूर के बादशाह ने सिद्दी जौहर, अफजल खां की मौत का बदला लेने के लिये धधक रहे उसके बेटे फाजल खां के नेतृत्व में सेना भेजी।शिवाजी ने चकमा दे कर पन्हाला किले से 600 सैनिकों के साथ विशालगढ़ की ओर निकल गये।उन्होंने 300 सैनिकों को अपने साथ लिया और 300 बाजीप्रभू को सौंप दिये। सिद्दी जौहर ने अपने दामाद सिद्दी मसूद और फाजल खां को 4000 सैनिकों के साथ शिवाजी को पकड़ने उनके पिछे भेज दिया।

शिवाजी बाजीप्रभू को गोलखिंडी दर्रे पर छोड़ विशालगढ की ओर बढ गये। विपक्षी सेना की पहली टुकड़ी दर्रे के नीचे आ खड़ी हुई। मराठाओं की तादात बहुत कम थी। लेकिन ऐसे पहाड़ी युद्ध करने में वह हमेशा से ही पारंगत थे। हथियार कम थे इसलिये बाजीप्रभू ने बड़ी मात्रा में पत्थर इकट्ठे किये। और पुरी ताकत से नीचे से उपर आती सिद्दी जौहर की सेना पर भीषण हमला किया। बिजापूर की सेना हैरान परेशान थी। उन्हें इस तरह के युद्ध की कल्पना नहीं थी। इस हमले में उन्हें भयानक क्षति पहूंची। बड़ी संख्या में विरोधी सैनिक मारे गये। सेना पिछे हट गयी। तभी दुसरी टुकड़ी मदत के लिये पहूंच गयी। पत्थर खतम हो गये थे। अब बारी थी सीधे हमले की। इसमें भी मराठाओं ने विरोधीयों को रौंद दिया। पर मराठाओं के भी बड़े से सैनिक मारे गये। लगातार युद्ध से बाजीप्रभू थकने लगे।

वहाँ विशालगढ के रास्ते में भी बीजापूरी सेना तैनात थी। उन्हें हरा शिवाजी आगे बढे। इधर बाजीप्रभू का शरीर खुन से लथपथ था पर उनकी आँखे शत्रु पर हाथ हथियार पर तथा कान तोप की आवाज के लिये विशालगढ पर थे। इतने में फाजल खां की सेना भी पहूंच गयी। मराठाओं ने हार नहीं मानी। अंत तक लड़े। भागे नहीं। लगभग सारे सैनिक मारे गये। गोलखिंडी दर्रा खुन से लाल हो गया। लड़ते लड़ते तीर बाजीप्रभू के छाती में धंस गया। तभी विशालगढ से तोप की गर्जना हुुई। महाराज सुरक्षित पहूंच गये थे। तब जा कर बाजी प्रभू ने बचे हुये मुठ्ठी भर सैनिकों को वापस जाने कहा। और अपना कर्तव्य पुरा कर प्राण त्याग दिये। महज 279 सैनिक गंवा कर 3000 हजार सैनिकों को मराठाओं ने खतम कर दिया।

इस युद्ध में दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। मराठाओं से लड़ कर टुट चुकी सिद्दी जौहर और फाजलं खान की सेना तोप से हुये हमलों के सामने टिक नहीं पायी। बाप अफजल खां जिसकी शिवाजी महाराज ने पेट फाड़ अतड़ीयाँ निकाल दी थी उसका बदला लेने आया बेटा फाजल खां वहाँ से भाग खड़ा हुआ। और महज अपने वचन निभाने और स्वराज्य के लिये शिवाजी को जिंदा रखने हेतु महान योद्धा बाजीप्रभू देशपांडे ने प्राणों की आहुति दे दी। महाराज ने इस बलिदान को पूजते हुये दर्रे का नाम गोलखिंडी से पावन खिंडी कर दिया।

समय लगता है स्वराज्य बनने में। छत्रपति बिना बलिदान के नहीं बनते। कुछ घंटे की लाइनों और निजी नुकसान से हारना नहीं है। मैदान छोड़ भागना नहीं है।

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