सफाई की बात करना और लोगों को इसके महत्व की सीख देना एक बात है, लेकिन इसे खुद करके मिसाल कायम करना बिल्कुल अलग ही बात है। 23 राज्यों के करीब एक दर्जन वरिष्ठ नौकरशाहों ने ऐसा ही करके दिखाया है। इनमें केंद्रीय स्वच्छता सचिव परमेश्वरन अय्यर भी शामिल हैं। इन सभी अधिकारियों ने शनिवार सुबह चार घंटे लंबी बस यात्रा की और हैदराबाद से तेलंगाना स्थित वारंगल पहुंचे। कुछ अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर इन सभी नौकरशाहों ने गंगादेवीपल्ली गांव में 6 शौचालयों के गड्ढों की सफाई की। इस अभियान का मकसद शौचालय सफाई से जुड़ी सामाजिक शर्मिंदगी को दूर करना था।
परमेश्वरन अय्यर ने बताया कि अपनी तरह के इस पहले अभियान में हिस्सेदारी करने वाले अधिकारी अपने साथ एक बोतल कंपोस्ट भी लेकर गए थे। वे ग्रामीणों को जैविक कंपोस्ट खाद के महत्व के बारे में बताना चाहते थे। ग्रामीणों को समझाया गया कि कंपोस्ट खाद ना केवल बेहद फायदेमंद होता है, बल्कि इसका कोई नुकसान भी नहीं होता है।
शौचालय के गड्ढे साफ करने के बाद अधिकारियों ने कंपोस्ट को हाथ में भी उठाया। उन्होंने बताया कि कंपोस्ट देखने में एकदम गाढ़े भूरे रंग के कॉफी पाउडर जैसा लगता है। परमेश्वरन अय्यर ने बताया, '2 गड्ढों वाले शौचालय को साफ करना सुरक्षित है और इसका कोई नुकसान भी नहीं होता है। हम लोगों को समझाना चाहते थे कि किस तरह कम लागत में तैयार होने वाले ट्विन-पिट शौचालय ग्रामीण इलाकों के लिए सबसे बेहतर विकल्प हैं।' उन्होंने बताया, 'ये गड्ढे एक साल या 6 महीने तक बंद रहते हैं। उनको खोलकर उन्हें खाली करना और गड्ढे की सफाई करना सामाजिक तौर पर शर्मिंदगी का काम समझा जाता है। लोग खाद में बदल चुके मल की सफाई करने से हिचकते हैं। हम लोगों को समझाना चाहते थे कि यह सफाई की प्रक्रिया ना केवल बेहद आसान है, बल्कि ऐसा करना दिनचर्या के कामों की ही तरह सामान्य भी है। जब एक गड्ढा भर जाने पर आप उसे कुछ महीनों के लिए बंद कर देते हैं, तो उसके अंदर भरा मल साफ कंपोस्ट खाद में बदल जाता है।'
शौचलय के गड्ढे में उतरकर जैविक खाद में तब्दील हो चुके मल को बाहर निकालते हुए केंद्रीय स्वच्छता सचिव परमेश्वरन अय्यर...
जुड़वा गड्ढों वाले शौचालय में ऊपर ढकने के लिए पत्थर का एक तख्ता होता है। इस तख्ते में 2 छेद बने होते हैं। दोनों गड्ढों के ऊपर एक-एक छेद होता है। एक समय में एक गड्ढे का ही इस्तेमाल किया जाता है। जब वह गड्ढा भर जाता है, तो उसके ऊपर बने छेद को बंद कर दूसरे गड्ढे का इस्तेमाल शुरू किया जाता है। 6 महीने या फिर साल भर बाद उस गड्ढे में जमा मल सुरक्षित तरीके से निकाला जा सकता है। इसका इस्तेमाल खाद की तरह किया जा सकता है। गड्ढा खाली किए जाने के बाद जब दूसरा गड्ढा भर जाए, तो पहले गड्ढे को फिर से इस्तेमाल में लाया जा सकता है। यह प्रक्रिया लगातार चल सकती है।
अधिकारियों की इस टीम के साथ स्वच्छता और साफ-सफाई के क्षेत्र से जुड़े 2 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ भी गंगादेवीपल्ली गए थे। साल 2007 में यह गांव भारत का पहला ऐसा गांव बना जहां खुले में शौच की आदत से पूरी तरह मुक्ति पा ली गई थी।
परमेश्वरन अय्यर ने बताया कि अपनी तरह के इस पहले अभियान में हिस्सेदारी करने वाले अधिकारी अपने साथ एक बोतल कंपोस्ट भी लेकर गए थे। वे ग्रामीणों को जैविक कंपोस्ट खाद के महत्व के बारे में बताना चाहते थे। ग्रामीणों को समझाया गया कि कंपोस्ट खाद ना केवल बेहद फायदेमंद होता है, बल्कि इसका कोई नुकसान भी नहीं होता है।
शौचालय के गड्ढे साफ करने के बाद अधिकारियों ने कंपोस्ट को हाथ में भी उठाया। उन्होंने बताया कि कंपोस्ट देखने में एकदम गाढ़े भूरे रंग के कॉफी पाउडर जैसा लगता है। परमेश्वरन अय्यर ने बताया, '2 गड्ढों वाले शौचालय को साफ करना सुरक्षित है और इसका कोई नुकसान भी नहीं होता है। हम लोगों को समझाना चाहते थे कि किस तरह कम लागत में तैयार होने वाले ट्विन-पिट शौचालय ग्रामीण इलाकों के लिए सबसे बेहतर विकल्प हैं।' उन्होंने बताया, 'ये गड्ढे एक साल या 6 महीने तक बंद रहते हैं। उनको खोलकर उन्हें खाली करना और गड्ढे की सफाई करना सामाजिक तौर पर शर्मिंदगी का काम समझा जाता है। लोग खाद में बदल चुके मल की सफाई करने से हिचकते हैं। हम लोगों को समझाना चाहते थे कि यह सफाई की प्रक्रिया ना केवल बेहद आसान है, बल्कि ऐसा करना दिनचर्या के कामों की ही तरह सामान्य भी है। जब एक गड्ढा भर जाने पर आप उसे कुछ महीनों के लिए बंद कर देते हैं, तो उसके अंदर भरा मल साफ कंपोस्ट खाद में बदल जाता है।'
शौचलय के गड्ढे में उतरकर जैविक खाद में तब्दील हो चुके मल को बाहर निकालते हुए केंद्रीय स्वच्छता सचिव परमेश्वरन अय्यर...
जुड़वा गड्ढों वाले शौचालय में ऊपर ढकने के लिए पत्थर का एक तख्ता होता है। इस तख्ते में 2 छेद बने होते हैं। दोनों गड्ढों के ऊपर एक-एक छेद होता है। एक समय में एक गड्ढे का ही इस्तेमाल किया जाता है। जब वह गड्ढा भर जाता है, तो उसके ऊपर बने छेद को बंद कर दूसरे गड्ढे का इस्तेमाल शुरू किया जाता है। 6 महीने या फिर साल भर बाद उस गड्ढे में जमा मल सुरक्षित तरीके से निकाला जा सकता है। इसका इस्तेमाल खाद की तरह किया जा सकता है। गड्ढा खाली किए जाने के बाद जब दूसरा गड्ढा भर जाए, तो पहले गड्ढे को फिर से इस्तेमाल में लाया जा सकता है। यह प्रक्रिया लगातार चल सकती है।
अधिकारियों की इस टीम के साथ स्वच्छता और साफ-सफाई के क्षेत्र से जुड़े 2 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ भी गंगादेवीपल्ली गए थे। साल 2007 में यह गांव भारत का पहला ऐसा गांव बना जहां खुले में शौच की आदत से पूरी तरह मुक्ति पा ली गई थी।
No comments:
Post a Comment