Wednesday, 15 November 2017


#शहीद_बिरसा_मुंडा
(15 नवंबर 1875 से 9 जून 1900)
बिरसा मुंडा 19वीं सदी के एक प्रमुख आदिवासी जननायक थे। उनके नेतृत्‍व में मुंडा आदिवासियों ने 19वीं सदी के आखिरी वर्षों में मुंडाओं के महान आन्दोलन उलगुलान को अंजाम दिया। बिरसा को मुंडा समाज के लोग भगवान के रूप में पूजते हैं।
#आरंभिक जीवन
सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म १५ नवम्बर १८७५ को झारखंड प्रदेश मेंराँची के उलीहातू गाँव में हुआ था। साल्गा गाँव में प्रारम्भिक पढाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढने आये। इनका मन हमेशा अपने समाज की ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी बुरी दशा पर सोचता रहता था। उन्होंने मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिये अपना नेतृत्व प्रदान किया। १८९४ में मानसून के छोटा नागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की।
#मुंडा विद्रोह का नेतृत्‍व
1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती बाबा" के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।
#विद्रोह में भागीदारी और अन्त
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।
जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये।
बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।
बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा हवाई-अड्डा भी है।
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।। हम बिरसा को भगवान क्यों मानते हैं ।।
15 नवम्बर 1875 में झारखंड क्षेत्र में एक साधारण जनजाति परिवार में जन्म लेकर बकरियाँ चराने में बिरसा का बचपन बीता । बिरसा थोड़ा बड़ा हुआ तो उसके मन में भी पढ़ने की ललक जगी और वहीं चाईबासा के ईसाई मिशन स्कूल में दाखिला ले लिया । परंतु स्कूल में बिरसा के पहनावे को लेकर पादरियों ने मजाक उड़ाया । इस पर बिरसा ने भी पादरियों और उनके धर्म का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया । ईसाई धर्म प्रचारक इसको कहाँ सहन करने वाले थे, उन्होंने बिरसा को स्कूल से निकाल दिया ।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बिरसा के पिता सुगना मुंडा तथा उनके चाचा, ताऊ सभी ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके थे और जर्मन ईसाई धर्म प्रचारकों के सहयोगी के रूप में काम करते थे । ऐसे में बिरसा के अंदर मिशनरियों के विरुद्ध रोष पैदा होना किसी चमत्कार से कम नहीं था ।
स्कूल छोड़ने के बाद बिरसा के जीवन में नया मोड़ आया । स्वामी आनन्द से उनका संपर्क आया और उसके बाद बिरसा ने महाभारत और हिन्दू धर्म का ज्ञान हुआ । यहीं से 1895 में कुछ ऐसी आलौकिक घटनाएं घटी कि बिरसा के स्पर्श मात्र से लोगों के रोग दूर होने लगे ।
किसानों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाकर बिरसा ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध बिगुल फूँक दिया । लोगों को मादक पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी । जन सामान्य में बिरसा के प्रति दृढ़ विश्वास और अगाध श्रद्धा ने उन्हें भगवान का अवतार बना दिया ।
सही भी था । लोगों को शोषण और अन्याय से मुक्त कराने का काम ही तो भगवान करते हैं, वही काम विरसा ने किया । बिरसा भगवान के उपदेशों का असर समाज पर होने लगा और और जो #मुंडा ईसाई बन गए थे वे पुनः हिन्दू धर्म में लौटने लगे ।
ईसाई प्रचारकों को ये कहाँ सहन होने वाला था, उन्होंने ब्रिटिश सरकार को कहकर बिरसा को भीड़ इकट्ठी कर उन्हें आन्दोलन करने से मना कर दिया । लैकिन बिरसा नहीं माने और उन्होंने शोषण के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा । उन्हें गिरफ्तार कर लिया और दो साल तक #हजारीबाग जेल में रखा । समाज में गुस्सा बढ़ते देख उन्हें यह कहकर छोड़ा गया कि वे ईसाइयों के खिलाफ प्रचार नहीं करेंगे ।
बिरसा नहीं माने, उन्होंने संगठन बनाकर अपने धर्म का प्रचार जारी रखा । परिणामस्वरूप स्वरूप उन्हें फिर गिरफ्तार करने के आदेश जारी हुए, किन्तु बिरसा इस बार हाथ नही आये और उन्होंने अपने नेतृत्व में अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंककर नए राज्य की स्थापना का निश्चय कर लिया ।
24 दिसम्बर 1899 में उन्होंने सीधा आंदोलन प्रारम्भ कर दिया । अंग्रेजी शासन के कई पुलिस थानों में आग लगा दी । सेना से सीधी मुठभेड़ हो गई । खूब संघर्ष किया, परंतु तीर कमान कब तक गोलियों का सामना कर पाते । बिरसा के कई साथी शहीद हो गए ।
और वही दुर्भाग्य ....समाज के ही दो लोगों ने धन के लालच में बिरसा को गिरफ्तार करवा दिया । जहाँ जेल में अंग्रेजों ने उन्हें भोजन में जहर देकर मार दिया ।
बिरसा वीरगति को प्राप्त हुए और पूरे झारखंड क्षेत्र तथा बाद में उनकी वीरता के किस्से सारे देश भर में साहित्य और लोकगीतों के माध्यम से गूँजने लगे ।
बोलो #बिरसा_भगवान की जय ।
#भारत_भारती में आज बिरसा भगवान की जयन्ती मनाई गई ।


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