सुप्रीम कोर्ट की मक्कारी देख भड़के राष्ट्रपति कोविंद
हक्के-बक्के रह गए मी-लार्ड ...
केवल हिन्दुओं के खिलाफ बड़े-बड़े फैसले सुना रहे व् अन्य फैसलों को लगातार ताले जा रहे सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रपति कोविंद ने जबरदस्त लताड़ लगाई है. विधि दिवस की पूर्व संध्या को आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्यायपालिका को खरी-खरी सुनाई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी खुद को सरकार से भी ऊपर समझने वाले जजों के दिमाग ठिकाने लगा दिए.
दिवाली पर पटाखे बैन जैसे फैसले फ़टाफ़ट लेने वाले कोर्ट भ्रष्टाचारी नेताओं के फैसलों को सालों-साल तारीख पर तारीख देते जाते हैं. अमीर तो गरीबों को अपनी गाडी से कुचल कर भी साफ़ बच निकलते हैं और गरीबों को न्याय मिलना नामुमकिन ही हो चुका है
प्रीम कोर्ट में जजों के नाम पर रिश्वतखोरी ,भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी अदालतों को फटकार लगाते हुए माननीय राष्ट्रपति ने गरीबों को न्याय मिलने में कठिनाई, देरी और न्यायिक व्यवस्था में निचले वर्ग के कम प्रतिनिधित्व खासतौर से महिलाओं के प्रतिनिधित्व का उल्लेख किया और कहा हर चार न्यायाधीशों में से केवल एक महिला होती है. उन्होंने कहा कि तीनों अंगों- न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को अच्छे व्यवहार का मॉडल बनना होगा.
वहीं लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कोलेजियम सिस्टम को बदलने की जरूरत बताई, जिसका कोर्ट बहुत सख्ती से बचाव करता रहा है. दरअसल अंग्रेजों द्वारा कोलेजियम सिस्टम इसलिए बनाया गया था, ताकि गुलाम भारत में अपनी मर्जी के लोगों को आसानी से जजों के पद पर नियुक्ति दिलवा सकें. पिछले 60 सालों में कांग्रेस ने इस सिस्टम को नहीं बदला और दुरूपयोग करके अपने पालतू चाटुकारों को सुप्रीम कोर्ट व् हाई कोर्ट्स में जज बनवाते रहे.यही वजह है कि कभी देश में किसी भ्रष्टाचारी नेता को शायद ही सजा होती हो. जज बनवाने के लिए रिश्वत देने तक के मामले सामने आते रहे हैं.
मोदी सरकार इसकी जगह और भी पारदर्शी सिस्टम लाने के पक्ष में है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ऐसा करने नहीं दे रही है. सुमित्रा महाजन और कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के कोलेजियम सिस्टम और न्यायिक सक्रियता पर सवाल उठाए. देश में जहाँ एक ओर लाखों-करोड़ों केस पेंडिंग हैं, वहीँ सुप्रीम कोर्ट सरकार के कामों में हस्तक्षेप में ही व्यस्त रहता है. जबसे मोदी सरकार आयी है, तब से सरकार को क्या-कैसे करना चाहिए, इसमें अदालतों के जज अपनी राय जबरदस्ती ही थोपते आये हैं. न्यायपालिका की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि नियुक्तियों पर बारीकी से काम हो. वहीँ सम्मेलन में मौजूद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने बात समझने की जगह उलटा अपनी ही सफाई देना शुरू कर दिया.
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