मुझे ताड़का याद आती है। उसे यज्ञों का विध्वंस करना है, इसके लिए वो सभी मन्त्र जानने वालों की हत्या नहीं करती, वो सारी सामग्री चुरा नहीं भागती। वो बस हवन-कुण्ड में एक हड्डी फेंक जाती है। विदेशी आक्रमणों में हुए जौहर का इतिहास बिगाड़ना था तो बहुत मेहनत नहीं करनी, “पद्मिनी” नाम था या “पद्मावती” इसमें संशय पैदा कर देना भी बहुत है। एक हड्डी ही तो फेंकनी थी, इसलिये ताड़का और राक्षसी तरीका याद आता है।
मुझे सिंहिका राक्षसी याद आती है। ये जीव को नहीं उसकी परछाई को दबोच लेती थी, परछाई को त्यागने में असमर्थ जीव खुद उसके चंगुल में चला आता था। कोई बंधन ना हो, स्वतंत्रता युवाओं को प्रिय होती है, इसलिए वो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर युवाओं को ही बहकाती हैं। संतान तो अपनी ही परछाई सी है, उसे छोड़कर लोग कहाँ जायेंगे ? बच्चों के पीछे वो खुद ही फंसा, चला आता है।
मुझे कालनेमि याद आता है। उसे हनुमान को ठगकर, उन्हें समय से संजीवनी ले आने से रोकना है इसलिए वो साधू का वेष बनाता है। बिलकुल वैसे ही जैसे बड़े से तिलक, भगवा वस्त्रों और मोटी-मोटी मालाओं में खुले बालों वाली स्त्रियाँ टीवी बहसों में “पद्मावती” फिल्म के समर्थन में उतरी हैं। उन्हें भी बस फिल्म के विरोधियों का विरोध थोड़ा कम करना है। वो जीतेंगी नहीं, कालनेमि जैसा ही उन्हें भी पता है, इसलिए मुझे कालनेमि याद आता है।
मुझे मारीच याद आता है। उसे पता है वो गलत कर रहा है, लेकिन जिनके राजाश्रय में पल रहा है उनकी आज्ञा से बाध्य भी तो है ! वो भेष बदलता है, सोने का मृग बनकर सीता को लुभाने पहुँच जाता है। अंतिम समय तक भी छल नहीं छोड़ता, “हे राम” कहते ही मुक्ति मिलेगी ये जानकार भी “हा लक्ष्मण, हा सीते” चिल्लाता है। फिर वो कलाकार दिखते हैं जो कल निर्माताओं के पैसे पर पले और कल फिर उनके ही पास काम मांगने जाना है। उधार के तीस किलो का लहंगा और कई किलो के जेवर पहनकर वो लुभाने आ जाते हैं, अंत तक “मेरी बरसों की मेहनत डूबी” का रोना रोते हैं। भेष बदलकर वो स्त्रियों को लुभाने आये, इसलिए मारीच भी याद आता है।
मुझे रावण याद आता है। वो ज्ञानी है, लक्ष्मण रेखा क्यों लांघनी चाहिए इसके लिए नीति-धर्म की ही दुहाई देता है। अपने तरीकों, शालीनता, सभ्यता-संस्कृति की सीमाओं के अन्दर मौजूद सीता का वो अपहरण नहीं कर सकता। विमान, सेनाएं, बल-ज्ञान सब उसपर बेकार होगा ये जानता है। इसलिए वो बहकाकर सीता को लक्ष्मण-रेखा के बाहर लाना चाहता है। उसे पता है कि आग से जल सकते हो दूर रहो बच्चे को समझाया जा सकता है, गालियाँ क्यों नहीं सीखनी, इसमें गलत क्या है ? ये समझाना मुश्किल है। बस “माय चॉइस”, “फासीवाद के विरोध”, “आखिर ऐसा होगा क्या देख भर लेने से”, “चल देखें कुछ गलत दिखाया भी या नहीं”, जैसे किसी बहाने से दिखा देना है।
इसलिए मुझे रावण याद आता है।
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