सहारनपुर देवबंद के एक मौलाना के उस बयान सुनकर होश ही उड़ गया जिसमें वह बहुत ही बेशर्मी से कह रहा था कि- "बद्रीनाथ हिंदूओं का मंदिर नही ब्लकि मुसलमानों का मजार है-" ...बद्रीनाथ हिन्दुओ का नहीं है, नाथ लगा देने से वो हिन्दू नहीं हो जाता, बद्रीनाथ असल में बदरुद्दीन शाह की मजार है क्या यह बयान किसी भी दृष्टि से क्षम्य हो सकता है.?
अगर बद्रीनाथ बदरूद्दीन के नाम पर रहता तो फिर फिर स्कंदपुराण में--" कृते मुक्तिप्रदाप्रोक्ता, त्रेतायां योग सिद्धिदा। विशाला द्वापरे प्रोक्ता, कलौ बद्रिकाश्रम।" और वाराह पुराण में --श्री बदर्याश्रमं पुण्यं यत्र यत्र स्थितः स्मरेत।स यति वैष्णवम स्थानं पुनरावृत्ति वर्जितः --का उल्लेख रहता ? जिस बद्रीनाथ का भारत के कई पुराण और महाभारत में बद्रीनाथ का भुगोल और नाम के साथ उल्लेख है उस बद्रीनाथ पर इतना बड़ा लांक्षण...?.सच तो यह है कि बद्रीनाथ महाभारत काल से ही भारत का महान तिर्थ है जो महाभारत के इस श्लोक से ज्ञात होता है---"
अन्यत्र मरणामुक्तिः स्वधर्म विधिपुर्वकात।
बदरीदर्शनादेव मुक्तिः पुंसाम करे स्थित।
वह मौलाना बताए पहाड़ पर इस्लाम कब पहुंचा ? इतिहास इस बात का साक्षी है --"पहाड़ पर भारतीय राजा राज्य करते रहें।इसे विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी कभी जीत ही नही सकें।
एक बार मोहम्मद तुगलक ने पहाड़ जीतने का प्रयास किया था। तुगलक ने 1337-38 में कूर्माचल-कुमायु -गढवाल जैसे पहाड़ी राज्य को जितने के लिए खुसरो मलिक के नेतृत्व में 1 लाख सेना भेजी किंतु क्षत्रीय राजा त्रिलोकचन्द्र चन्द्रवंशी ने चतुर नीति अपना कर घाटीयों,संकरे मार्ग और गुफाओं मे अपने छिपे अपने सैनिकों से तुगलक के 90 हजार सैनिकों को मार डाला था तब खुसरो मलिक बचे हुए 10 हजार सैनिकों के साथ जान बचाकर भागा था।
मोहम्मद तुगलक के इस करारी हार को इब्नबतूता बरनी और एसामी तदा जैसे मुस्लिम इतिहासकारों ने ही अच्छा खासा वर्णन किया है।इस करारी हार के बाद किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारी ने उत्तराखंड के पहाड़ की ओर देखने तक की हिम्मत नही की।
मंदिर का वर्तमान स्वरूप जो है उसे आदि शंकराचार्य जी ने बनाया है। उनका समय ईसा से 500-550 वर्ष पहले रहा है जबकि इस्लाम 6 ठी सदी में पैदा हुआ है। शंकराचार्य के समय तो इस्लाम मजहब अपने मां के गर्भ में भी नही था। इस्लाम देवभूमि के पहाड़ पर पहुंचा ही नही तो वहां मजार कैसे आ गया ?
No comments:
Post a Comment