Saturday, 11 November 2017

'भंगी' का मतलब जानते हैं आप्...?
हमारे-आपके पूर्वजों ने जिन 'भंगी' और 'मेहतर' जाति को अस्‍पृश्‍य करार दिया, जिनका हाथ का छुआ तक आज भी बहुत सारे हिंदू नहीं खाते, जानते हैं वो हमारे आपसे कहीं बहादुर पूर्वजों की संतान हैं। मुगल काल में ब्राहमणों व क्षत्रियों को दो रास्‍ते दिए गए, या तो इस्‍लाम कबूल करो या फिर हम मुगलों-मुसलमानों का मैला ढोओ।
हिंदुओं की उन्‍नत सिंधू घाटी सभ्‍यता में रहने वाले कमरे से सटा शौचालय मिलता है, जबकि मुगल बादशाह के किसी भी महल में चले जाओ, आपको शौचालय नहीं मिलेगा, जबकि अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहां जैसे मुगल बादशाह को वास्‍तुकला का मर्मज्ञ ज्ञाता बताया है। लेकिन सच यह है कि अरब के रेगिस्‍तान से आए दिल्‍ली के सुल्‍तान और मुगल को शौचालय निर्माण तक का ज्ञान नहीं था। दिल्‍ली सल्‍तनत से लेकर मुगल बादशाह तक के समय तक पात्र में शौच करते थे, जिन्‍हें उन ब्राहमणों और क्षत्रियों और उनके परिजनों से फिकवाया जाता था, जिन्‍होंने मरना तो स्‍वीकार कर लिया था, लेकिन इस्‍लाम को अपनाना नहीं।
'भंगी' का मतलब जानते हैं आप्...। जिन ब्राहमणों और क्षत्रियों ने मैला ढोने की प्रथा को स्‍वीकार करने के उपरांत अपने जनेऊ को तोड़ दिया, अर्थात उपनयन संस्‍कार को भंग कर दिया, वो भंगी कहलाए। और 'मेहतर'- इनके उपकारों के कारण्‍ा तत्‍कालिन हिंदू समाज ने इनके मैला ढोने की नीच प्रथा को भी 'महत्‍तर' अर्थात महान और बड़ा करार दिया था, जो अपभ्रंश रूप में 'मेहतर' हो गया। भारत में 1000 ईस्‍वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति थी, लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्‍या-14 फीसदी हो गई। आपने सोचा कि ये 13 प्रतिशत की बढोत्‍तरी 150-200 वर्ष के मुगल शासन में कैसे हो गई।
वामपंथियों का इतिहास आपको बताएगा कि सूफियों के प्रभाव से हिंदुओं ने इस्‍लाम स्‍वीकार किया, लेकिन गुरुतेगबहादुर, उनके बेटों, उनके शिष्‍यों का बलिदान का सबूत हमारे समक्ष है, जिसे वामपंथी इतिहासकार केवल छूते हुए निकल जाते हैं। गुरु तेगबहादुरर के 650 शिष्‍यों को इस्‍लाम न स्‍वीकार करने के कारण आम जनता के समक्ष आड़े से चिड़वा दिया गया, फिर गुरु को खौलते तेल में डाला गया और आखिर में उनका सिर कलम करवा दिया गया। भारत में इस्‍लाम का विकास इस तरह से हुआ। इसलिए जो हिंदू डर के मारे इस्‍लाम धर्म स्‍वीकार करते चले गए, उन्‍हीं के वंशज आज भारत में मुस्लिम आबादी हैं, जो हिंदू मरना स्‍वीकार कर लिया, वह पूरा का पूरा परिवार काट डाला गया और जो हिंदू नीच मैला ढोने की प्रथा को स्‍वीकार कर लिया, वह भंगी और मेहतर कहलाए।
डॉ सुब्रहमनियन स्‍वामी लिखते हैं, '' अनुसूचित जाति उन्‍हीं बहादुर ब्राहण व क्षत्रियों के वंशज है, जिन्‍होंने जाति से बाहर होना स्‍वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन को स्‍वीकार नहीं किया। आज के हिंदू समाज को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्‍हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए, क्‍योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्‍वज को कभी झुकने नहीं दिया, भले ही स्‍वयं अपमान व दमन झेला।''
क्‍या आप सभी खुद को हिंदू कहने वाले लोग उस अनुसूचित जाति के लोगों को आगे बढ़कर गले लगाएंगे, उनसे रोटी-बेटी का संबंध रखेंगे। यदि आपने यह नहीं किया तो समझिए, हिंदू समाज कभी एक नहीं हो पाएगा और एक अध्‍ययन के मुकाबले 2061 से आप इसी देश में अल्‍पसंख्‍यक होना शुरू हो जाएंगे। इस पर अगले पोस्‍ट में प्रकाश डालूंगा।
इसलिए भारतीय व हिंदू मानसिकता का विकास कीजिए और अपने सच्‍चे इतिहास से जुड़ने का भरसक प्रयत्न कीजिये,यही आज समय की मांग है।हमारे-आपके पूर्वजों ने जिन 'भंगी' और 'मेहतर' जाति को अस्‍पृश्‍य करार दिया, जिनका हाथ का छुआ तक आज भी बहुत सारे हिंदू नहीं खाते, जानते हैं वो हमारे आपसे कहीं बहादुर पूर्वजों की संतान हैं। मुगल काल में ब्राहमणों व क्षत्रियों को दो रास्‍ते दिए गए, या तो इस्‍लाम कबूल करो या फिर हम मुगलों-मुसलमानों का मैला ढोओ। आप किसी भी मुगल किला में चले जाओ वहां आपको शौचालय नहीं मिलेगा।
हिंदुओं की उन्‍नत सिंधू घाटी सभ्‍यता में रहने वाले कमरे से सटा शौचालय मिलता है, जबकि मुगल बादशाह के किसी भी महल में चले जाओ, आपको शौचालय नहीं मिलेगा, जबकि अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहां जैसे मुगल बादशाह को वास्‍तुकला का मर्मज्ञ ज्ञाता बताया है। लेकिन सच यह है कि अरब के रेगिस्‍तान से आए दिल्‍ली के सुल्‍तान और मुगल को शौचालय निर्माण तक का ज्ञान नहीं था। दिल्‍ली सल्‍तनत से लेकर मुगल बादशाह तक के समय तक पात्र में शौच करते थे, जिन्‍हें उन ब्राहमणों और क्षत्रियों और उनके परिजनों से फिकवाया जाता था, जिन्‍होंने मरना तो स्‍वीकार कर लिया था, लेकिन इस्‍लाम को अपनाना नहीं।
'भंगी' का मतलब जानते हैं आप्...। जिन ब्राहमणों और क्षत्रियों ने मैला ढोने की प्रथा को स्‍वीकार करने के उपरांत अपने जनेऊ को तोड़ दिया, अर्थात उपनयन संस्‍कार को भंग कर दिया, वो भंगी कहलाए। और 'मेहतर'- इनके उपकारों के कारण्‍ा तत्‍कालिन हिंदू समाज ने इनके मैला ढोने की नीच प्रथा को भी 'महत्‍तर' अर्थात महान और बड़ा करार दिया था, जो अपभ्रंश रूप में 'मेहतर' हो गया। भारत में 1000 ईस्‍वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति थी, लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्‍या-14 फीसदी हो गई। आपने सोचा कि ये 13 प्रतिशत की बढोत्‍तरी 150-200 वर्ष के मुगल शासन में कैसे हो गई।
वामपंथियों का इतिहास आपको बताएगा कि सूफियों के प्रभाव से हिंदुओं ने इस्‍लाम स्‍वीकार किया, लेकिन गुरुतेगबहादुर, उनके बेटों, उनके शिष्‍यों का बलिदान का सबूत हमारे समक्ष है, जिसे वामपंथी इतिहासकार केवल छूते हुए निकल जाते हैं। गुरु तेगबहादुरर के 650 शिष्‍यों को इस्‍लाम न स्‍वीकार करने के कारण आम जनता के समक्ष आड़े से चिड़वा दिया गया, फिर गुरु को खौलते तेल में डाला गया और आखिर में उनका सिर कलम करवा दिया गया। भारत में इस्‍लाम का विकास इस तरह से हुआ। इसलिए जो हिंदू डर के मारे इस्‍लाम धर्म स्‍वीकार करते चले गए, उन्‍हीं के वंशज आज भारत में मुस्लिम आबादी हैं, जो हिंदू मरना स्‍वीकार कर लिया, वह पूरा का पूरा परिवार काट डाला गया और जो हिंदू नीच मैला ढोने की प्रथा को स्‍वीकार कर लिया, वह भंगी और मेहतर कहलाए।
डॉ सुब्रहमनियन स्‍वामी लिखते हैं, '' अनुसूचित जाति उन्‍हीं बहादुर ब्राहण व क्षत्रियों के वंशज है, जिन्‍होंने जाति से बाहर होना स्‍वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन को स्‍वीकार नहीं किया। आज के हिंदू समाज को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्‍हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए, क्‍योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्‍वज को कभी झुकने नहीं दिया, भले ही स्‍वयं अपमान व दमन झेला।''
क्‍या आप सभी खुद को हिंदू कहने वाले लोग उस अनुसूचित जाति के लोगों को आगे बढ़कर गले लगाएंगे, उनसे रोटी-बेटी का संबंध रखेंगे। यदि आपने यह नहीं किया तो समझिए, हिंदू समाज कभी एक नहीं हो पाएगा और एक अध्‍ययन के मुकाबले 2061 से आप इसी देश में अल्‍पसंख्‍यक होना शुरू हो जाएंगे। इस पर अगले पोस्‍ट में प्रकाश डालूंगा।
इसलिए भारतीय व हिंदू मानसिकता का विकास कीजिए और अपने सच्‍चे इतिहास से जुड़ने का भरसक प्रयत्न कीजिये,यही आज समय की मांग है।
कुमार अवधेश सिंह

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