बृहदीस्वरा मंदिर
बृहदीस्वरा मंदिर, को पेरुवुडइयर कोविल, राजराजेस्वरम भी कहा जाता है जिसे ग्याहरवीं सदी में चोल साम्राजय के राजा चोल ने बनवाया था. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है. यह मंदिर ग्रेनाइट की विशाल चट्टानों को काटकर वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाया गया है. इसमें एक खासियत यह है कि दोपहर बारह बजे इस मंदिर की परछाई जमीन पर नहीं पड़ती.
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सिद्धिविनायक मंदिर
मुंबई के प्रभा देवी में स्थित है सिद्धिविनायक मंदिर जिसे अठारवीं सदी में बनाया गया था. ऐसा माना जाता है कि किसी भी काम को शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है.
वैसे तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, पर मंगलवार के दिन खासतौर पर यहां भीड़ रहती है.
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गब्बर पर्वत (Gabbar parvat)-Gabbar parvat
गब्बर पर्वत भारत के गुजरात में बनासकांठा जिला स्थित एक छोटा सा पहाड़ी टीला है। यह प्रसिद्ध तीर्थ अम्बाजी से मात्र 5 कि.मी की दूरी पर गुजरात एवं राजस्थान की सीमा पर स्थित है। यहीं से अरासुर पर्वत पर अरावली पर्वत से दक्षिण पश्चिम दिशा में पवित्र वैदिक नदी सरस्वती का उद्गम भी होता है।
यह प्राचीन पौराणिक 51 शक्तिपीठों में से एक गिना जाता है। पुराणों के अनुसार यहां सती शव का हृदय भाग गिरा था। इसका वर्णन तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है। मंदिर तक पहुंचने के लिये पहाड़ी पर 999 सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं। पहाड़ी के ऊपर से सूर्यास्त देखने के अनुभव भी बेहतरीन होता है।
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चामुंडा पहाड़ी (Chamunda pahadi)-Chamunda pahadi
चामुंडा पहाड़ी मैसूर का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। यह मैसूर से लगभग 13 किमी दक्षिण में स्थित है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है, जो देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। मंदिर मुख्य गर्भगृह में स्थापित देवी की प्रतिमा शुद्ध सोने की बनी हुई है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था।
मंदिर की इमारत सात मंजिला है जिसकी ऊंचाई 40 मी. है। मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है जो 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा रखी हुई है।
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कैलाश पर्वत (Kailash Parvat)-Kailash Parvat
कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा रक्षातल झील हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं – ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज इत्यादि। हिंदू धर्म में इस पर्वत को बहुत ही पवित्र माना गया है। इस पर्वत को गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। पुराणों के अनुसार भगवान अनेक देवताओं, राक्षसों व ऋषियों ने इस पर्वत पर तप किया है। जनश्रुति है कि आदि शंकराचार्य ने इसी पर्वत के आसपास शरीर त्यागा था।
जैन धर्म में भी इस पर्वत का विशेष महत्व है। वे कैलाश को अष्टापद कहते हैं। कहा जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। इसे पृथ्वी स्थित स्वर्ग कहा गया है। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है।
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गोवर्धन पर्वत (Govardhan parvat)-Govardhan
गोवर्धन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक पवित्र पर्वत है। यह भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी तर्जनी अंगुली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराजजी भी कहते हैं। यहां दूर-दूर से भक्तजन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। यह परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है।
यहां लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर जमीन पर लेट जाते हैं और जहां तक हाथ फैलते हैं, वहां तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं। इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत करते-करते परिक्रमा करते हैं, जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी होती है। परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहीं एक प्रसिद्ध मंदिर भी है, जिसे दानघाटी मंदिर कहा जाता है ।
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अनुराग कश्यप की उम्र बमुश्किल 20 साल की रही होगी जब वो दिल्ली छोड़ मुम्बई आ गए ।
उन्हें फिल्मकार बनना था , सिर्फ फिल्मकार ही बनना था । कैसे ? ये उन्हें पता नही था ।
फिर वो एक दिन दिल्ली से मुम्बई चले आये । कहां रहूंगा , क्या खाऊंगा , कहा सोऊंगा ........ पैसे कहां से आएंगे , ये सब कुछ नही सोचा ।
बस चले आये ।
फिलिम लाइन में घुसने का एक रास्ता था थिएटर । सो पृथ्वी थिएटर पहुंचे । पर उसके गेट में घुसना ही मुमकिन न था । सो थिएटर में न घुस सके तो उसकी कैंटीन में ही जा पहुंचे । कैंटीन में coffee shop के मालिक से बोले , अपने हियाँ waiter रख लो .......
ऊ बोला vacancy नही है ।
इन्ने कहा , मैं फ्री में काम करूंगा । सिर्फ खाना खिला देना ।
अब हिंदुस्तानी आदमी को फ्री का माल भोत अच्छा लगता है सो उन्ने फ्री का वेटर रख लिया ।
अनुराग पृथ्वी थिएटर की कैंटीन में लोगों को serve करने लगे ।
Theatre में हमेशा rehersal चलती रहती थी । संवाद पढ़ने के लिए एक reader की ज़रूरत होती थी ।
अनुराग ने कहा , मैं पढ़ दूं ? Free में ........
जल्दी ही अनुराग की demand पृथ्वी थिएटर में reader के रूप में होने लगी ........ वो लड़का जो फ्री में पढ़ देता है । वो जो न पैसे मांगता है ,न नाटक में रोल ........
अनुराग लिखना जानते थे ........ सो लिखने भी लगे ........ फ्री में ........
उन दिनों TV पे Soap Opera दैनिक सीरियल आने लगे थे । उनका रोज़ाना एक episode शूट होता था । जल्दी ही अनुराग कश्यप की ख्याति एक लेखक के रूप में हो गयी ।
वो लड़का जो लिख देता है , और न पैसे मांगता है न credits ।
अनुराग बताते हैं कि उस दौर में उन्होंने सीरियल्स के लिए जम के लिखा ........ 100 - 100 पेज लिख देते थे हाथ से ......... फिर एक दिन महेश भट्ट की नज़र पड़ी उन पे । और महेश भट्ट ने उनके साथ contract कर लिया .......... कभी कभी नामक सीरियल के लिए संवाद लिखने का ........ और वेतन तय हुआ 2.5 लाख रु महीना ......... और अगले 3 साल का contract था । अनुराग ने वो offer स्वीकार कर लिया ।
तभी एक मशहूर फिल्मकार भी एक फ़िल्म का offer ले के आ गए । पर वो Offer सिर्फ 10 महीने के लिए था और वेतन था सिर्फ 10 हज़ार रु महीना ।
कहां एक तरफ 3 साल के लिए अढाई लाख रु महीना और कहां सिर्फ 10 हज़ार रु वो भी सिर्फ 10 महीने के ........... महेश भट्ट का offer स्वीकार कर काम करते अभी सिर्फ एक महीना हुआ था ।
अनुराग अब एक दोराहे पे खड़े थे ।
एक तरफ 2.5 लाख रु थे दूसरी ओर सिर्फ 10 हज़ार ।
पर एक तरफ सीरियल था और दूसरी तरफ फ़िल्म ..........
अनुराग ने महेश भट्ट और उनका सीरियल छोड़ दिया और उस फिल्मकार की वो फ़िल्म sign कर ली ।
क्योंकि वो मुम्बई पैसा कमाने नही बल्कि फिल्मकार बनने आये थे ।
उस फिल्मकार का नाम था राम गोपाल वर्मा और फ़िल्म थी सत्या .........
शेष इतिहास है .........
सत्या भारतीय फिल्म इतिहास की एक कालजयी रचना है ज़िसे अनुराग कश्यप ने लिखा था और RGV ने बाकायदे उन्हें इसका credit भी दिया ........
उसके बाद अनुराग के पास फिल्में लिखने के ढेरों offer आये , कुछ उन्होंने लिखी भी ........पर अंततः उन्हें फिल्मकार ही बनना था ।
उन्होंने बिना किसी बजट के , सिर्फ अपने talent के बल पे पहले " पांच" बनाई जो Censor में फंस गई ।
फिर Black Friday बनाई जो Court में उलझ गयी ........
पूरे 5 साल वो इसी में उलझे रहे पर कभी हार नही मानी ।
आज गुलाल , Dev D , No Smoking , Girl In Yellow Boots और फिर उसके बाद Gangs Of Wasseypur जैसी Cult Classic बना के अनुराग एक बहुत बड़ा नाम बन चुके हैं ।
बृहदीस्वरा मंदिर, को पेरुवुडइयर कोविल, राजराजेस्वरम भी कहा जाता है जिसे ग्याहरवीं सदी में चोल साम्राजय के राजा चोल ने बनवाया था. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है. यह मंदिर ग्रेनाइट की विशाल चट्टानों को काटकर वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाया गया है. इसमें एक खासियत यह है कि दोपहर बारह बजे इस मंदिर की परछाई जमीन पर नहीं पड़ती.
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सिद्धिविनायक मंदिर
मुंबई के प्रभा देवी में स्थित है सिद्धिविनायक मंदिर जिसे अठारवीं सदी में बनाया गया था. ऐसा माना जाता है कि किसी भी काम को शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है.
वैसे तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, पर मंगलवार के दिन खासतौर पर यहां भीड़ रहती है.
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गब्बर पर्वत (Gabbar parvat)-Gabbar parvat
गब्बर पर्वत भारत के गुजरात में बनासकांठा जिला स्थित एक छोटा सा पहाड़ी टीला है। यह प्रसिद्ध तीर्थ अम्बाजी से मात्र 5 कि.मी की दूरी पर गुजरात एवं राजस्थान की सीमा पर स्थित है। यहीं से अरासुर पर्वत पर अरावली पर्वत से दक्षिण पश्चिम दिशा में पवित्र वैदिक नदी सरस्वती का उद्गम भी होता है।
यह प्राचीन पौराणिक 51 शक्तिपीठों में से एक गिना जाता है। पुराणों के अनुसार यहां सती शव का हृदय भाग गिरा था। इसका वर्णन तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है। मंदिर तक पहुंचने के लिये पहाड़ी पर 999 सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं। पहाड़ी के ऊपर से सूर्यास्त देखने के अनुभव भी बेहतरीन होता है।
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चामुंडा पहाड़ी (Chamunda pahadi)-Chamunda pahadi
चामुंडा पहाड़ी मैसूर का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। यह मैसूर से लगभग 13 किमी दक्षिण में स्थित है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है, जो देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। मंदिर मुख्य गर्भगृह में स्थापित देवी की प्रतिमा शुद्ध सोने की बनी हुई है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था।
मंदिर की इमारत सात मंजिला है जिसकी ऊंचाई 40 मी. है। मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है जो 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा रखी हुई है।
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कैलाश पर्वत (Kailash Parvat)-Kailash Parvat
कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा रक्षातल झील हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं – ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज इत्यादि। हिंदू धर्म में इस पर्वत को बहुत ही पवित्र माना गया है। इस पर्वत को गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। पुराणों के अनुसार भगवान अनेक देवताओं, राक्षसों व ऋषियों ने इस पर्वत पर तप किया है। जनश्रुति है कि आदि शंकराचार्य ने इसी पर्वत के आसपास शरीर त्यागा था।
जैन धर्म में भी इस पर्वत का विशेष महत्व है। वे कैलाश को अष्टापद कहते हैं। कहा जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। इसे पृथ्वी स्थित स्वर्ग कहा गया है। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है।
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गोवर्धन पर्वत (Govardhan parvat)-Govardhan
गोवर्धन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक पवित्र पर्वत है। यह भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी तर्जनी अंगुली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराजजी भी कहते हैं। यहां दूर-दूर से भक्तजन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। यह परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है।
यहां लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर जमीन पर लेट जाते हैं और जहां तक हाथ फैलते हैं, वहां तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं। इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत करते-करते परिक्रमा करते हैं, जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी होती है। परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहीं एक प्रसिद्ध मंदिर भी है, जिसे दानघाटी मंदिर कहा जाता है ।
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अनुराग कश्यप की उम्र बमुश्किल 20 साल की रही होगी जब वो दिल्ली छोड़ मुम्बई आ गए ।
उन्हें फिल्मकार बनना था , सिर्फ फिल्मकार ही बनना था । कैसे ? ये उन्हें पता नही था ।
फिर वो एक दिन दिल्ली से मुम्बई चले आये । कहां रहूंगा , क्या खाऊंगा , कहा सोऊंगा ........ पैसे कहां से आएंगे , ये सब कुछ नही सोचा ।
बस चले आये ।
फिलिम लाइन में घुसने का एक रास्ता था थिएटर । सो पृथ्वी थिएटर पहुंचे । पर उसके गेट में घुसना ही मुमकिन न था । सो थिएटर में न घुस सके तो उसकी कैंटीन में ही जा पहुंचे । कैंटीन में coffee shop के मालिक से बोले , अपने हियाँ waiter रख लो .......
ऊ बोला vacancy नही है ।
इन्ने कहा , मैं फ्री में काम करूंगा । सिर्फ खाना खिला देना ।
अब हिंदुस्तानी आदमी को फ्री का माल भोत अच्छा लगता है सो उन्ने फ्री का वेटर रख लिया ।
अनुराग पृथ्वी थिएटर की कैंटीन में लोगों को serve करने लगे ।
Theatre में हमेशा rehersal चलती रहती थी । संवाद पढ़ने के लिए एक reader की ज़रूरत होती थी ।
अनुराग ने कहा , मैं पढ़ दूं ? Free में ........
जल्दी ही अनुराग की demand पृथ्वी थिएटर में reader के रूप में होने लगी ........ वो लड़का जो फ्री में पढ़ देता है । वो जो न पैसे मांगता है ,न नाटक में रोल ........
अनुराग लिखना जानते थे ........ सो लिखने भी लगे ........ फ्री में ........
उन दिनों TV पे Soap Opera दैनिक सीरियल आने लगे थे । उनका रोज़ाना एक episode शूट होता था । जल्दी ही अनुराग कश्यप की ख्याति एक लेखक के रूप में हो गयी ।
वो लड़का जो लिख देता है , और न पैसे मांगता है न credits ।
अनुराग बताते हैं कि उस दौर में उन्होंने सीरियल्स के लिए जम के लिखा ........ 100 - 100 पेज लिख देते थे हाथ से ......... फिर एक दिन महेश भट्ट की नज़र पड़ी उन पे । और महेश भट्ट ने उनके साथ contract कर लिया .......... कभी कभी नामक सीरियल के लिए संवाद लिखने का ........ और वेतन तय हुआ 2.5 लाख रु महीना ......... और अगले 3 साल का contract था । अनुराग ने वो offer स्वीकार कर लिया ।
तभी एक मशहूर फिल्मकार भी एक फ़िल्म का offer ले के आ गए । पर वो Offer सिर्फ 10 महीने के लिए था और वेतन था सिर्फ 10 हज़ार रु महीना ।
कहां एक तरफ 3 साल के लिए अढाई लाख रु महीना और कहां सिर्फ 10 हज़ार रु वो भी सिर्फ 10 महीने के ........... महेश भट्ट का offer स्वीकार कर काम करते अभी सिर्फ एक महीना हुआ था ।
अनुराग अब एक दोराहे पे खड़े थे ।
एक तरफ 2.5 लाख रु थे दूसरी ओर सिर्फ 10 हज़ार ।
पर एक तरफ सीरियल था और दूसरी तरफ फ़िल्म ..........
अनुराग ने महेश भट्ट और उनका सीरियल छोड़ दिया और उस फिल्मकार की वो फ़िल्म sign कर ली ।
क्योंकि वो मुम्बई पैसा कमाने नही बल्कि फिल्मकार बनने आये थे ।
उस फिल्मकार का नाम था राम गोपाल वर्मा और फ़िल्म थी सत्या .........
शेष इतिहास है .........
सत्या भारतीय फिल्म इतिहास की एक कालजयी रचना है ज़िसे अनुराग कश्यप ने लिखा था और RGV ने बाकायदे उन्हें इसका credit भी दिया ........
उसके बाद अनुराग के पास फिल्में लिखने के ढेरों offer आये , कुछ उन्होंने लिखी भी ........पर अंततः उन्हें फिल्मकार ही बनना था ।
उन्होंने बिना किसी बजट के , सिर्फ अपने talent के बल पे पहले " पांच" बनाई जो Censor में फंस गई ।
फिर Black Friday बनाई जो Court में उलझ गयी ........
पूरे 5 साल वो इसी में उलझे रहे पर कभी हार नही मानी ।
आज गुलाल , Dev D , No Smoking , Girl In Yellow Boots और फिर उसके बाद Gangs Of Wasseypur जैसी Cult Classic बना के अनुराग एक बहुत बड़ा नाम बन चुके हैं ।
ज़िन्दगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जब आपको फैसला करना होता है ।
दिमाग और दिल दोनो अलग अलग राह सुझाते हैं ।
दिमाग और दिल दोनो अलग अलग राह सुझाते हैं ।
दिल की सुनो .........
Know How से ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है Know Why ..........
यदि Know Why Strong हो तो Know How तो मिल ही जायेगा जैसे तैसे कैसे भी ।
Know Why को Strong रखो ।
अजीत सिंह दद्दा पोस्ट से साभार
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आश्चर्य की बात है ..."महाकाल" से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसा सम्बन्ध है.?
अगर सभी 12 ज्योतिर लिंगों को जो भारत में हैं उनको लाइन द्वारा उत्तर से दक्षिण की ओर मिलाने पर दिखाए हुए शंख के आकार में बनेगा ..और उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी है रोचक---
सोमनाथ- 777 किमी
ओंकारेश्वर- 111 किमी
भीमाशंकर- 666 किमी
काशी विश्वनाथ- 999 किमी
मल्लिकार्जुन- 999 किमी
केदारनाथ- 888 किमी
त्रयंबकेश्वर- 555 किमी
बैजनाथ- 999 किमी
रामेश्वरम- 1999 किमी
घृष्णेश्वर - 555 किमी
सनातन धर्म में कुछ भी बिना कारण के नही होता था । उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है । जो सनातन धर्म में हजारों सालों से केंद्र मानते आ रहे है इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गण ना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये है करीब 2050 वर्ष पहले ।
करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क)अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायीं गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला । आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते है सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये । हिन्दू धर्म की मान्यताये पुर्णतः वैज्ञानिक आधार पर निर्मित की गयी है । बस हम उसे दुनिया में पेटेंट नही करवा सके ।
Know How से ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है Know Why ..........
यदि Know Why Strong हो तो Know How तो मिल ही जायेगा जैसे तैसे कैसे भी ।
Know Why को Strong रखो ।
अजीत सिंह दद्दा पोस्ट से साभार
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आश्चर्य की बात है ..."महाकाल" से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसा सम्बन्ध है.?
अगर सभी 12 ज्योतिर लिंगों को जो भारत में हैं उनको लाइन द्वारा उत्तर से दक्षिण की ओर मिलाने पर दिखाए हुए शंख के आकार में बनेगा ..और उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी है रोचक---
सोमनाथ- 777 किमी
ओंकारेश्वर- 111 किमी
भीमाशंकर- 666 किमी
काशी विश्वनाथ- 999 किमी
मल्लिकार्जुन- 999 किमी
केदारनाथ- 888 किमी
त्रयंबकेश्वर- 555 किमी
बैजनाथ- 999 किमी
रामेश्वरम- 1999 किमी
घृष्णेश्वर - 555 किमी
सनातन धर्म में कुछ भी बिना कारण के नही होता था । उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है । जो सनातन धर्म में हजारों सालों से केंद्र मानते आ रहे है इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गण ना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये है करीब 2050 वर्ष पहले ।
करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क)अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायीं गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला । आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते है सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये । हिन्दू धर्म की मान्यताये पुर्णतः वैज्ञानिक आधार पर निर्मित की गयी है । बस हम उसे दुनिया में पेटेंट नही करवा सके ।
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