Tuesday 28 November 2017

एक गोरे विदेशी ने जो कुछ लिखा है
 वह हिन्दुओं की आँखें खोलनेवाला है :
प्रत्येक मन्दिर पर एक IAS मुखिया बनकर बैठा हुआ है । पर किसी भी मस्जिद या चर्च पर नहीं ......The Hindu Religious and Charitable Endowment Act, 1951 राज्य सरकारों तथा नेताओं को यह अधिकार देता है कि वह हजारों हिन्दू मंदिरों पर अधिकार कर सकते हैं तथा उनपर एवं उनकी सम्पत्ति पर पूरा नियंत्रण रख सकते हैं। कहा गया है कि वे मंदिरों की सम्पत्ति को बेच सकते हैं और उन पैसों का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं...
यह आरोप किसी मंदिर के पदाधिकारी ने नहीं, बल्कि एक विदेशी लेखक , Stephen_Knapp ने अपनी किताब (Crimes Against India and the Need to Protect Ancient Vedic Tradition) में लगाया है, जो अमेरिका से छपी है। इसे पढ़ने पर आप चौंक जाएंगे।http://www.stephen-knapp.com/crimes_against_india.htm

नोट करनेवाली बात है कि जिन भक्त राजाओं ने ये मन्दिर बनवाए उनमें से किसी ने भी उन मन्दिरों पर कोई अधिकार नहीं जताया। कइयों ने तो अपना नाम तक नहीं छोड़ा है। मन्दिरों और उनके धन पर नियंत्रण की तो बात ही छोड़िये, इन राजाओं ने भूमि तथा अन्य संपत्तियों को इन मन्दिरों के नाम कर दिया, जिनमें इनके आभूषण भी शामिल हैं। उन्होंने मंदिरों की सिर्फ सहायता की, उनपर किसी प्रकार का दावा नहीं ठोका। और होना भी यही चाहिये।
आज की सरकारों ने कोई भी बड़ा मन्दिर नहीं बनवाया (कुछेक को छोड़कर) और उन्हें इनमें से किसी भी मन्दिर -- उनके धन, प्रशासन अथवा पूजा पद्धति पर कोई अधिकार नहीं है। इन मंदिरों का धन सिर्फ इन मन्दिरों के प्रशासन, उनके रखरखाव, पारिश्रमिक, उनसे जुड़ी आधारभूत संरचनाओं तथा सुविधाओं पर खर्च होना चाहिये तथा जो बच जाय अन्य गौण मन्दिरों, खासकर पुराने मन्दिरों की मरम्मत पर खर्च होना चाहिये।
परंतु , एक Temple Endowment Act के तहत, आंध्रप्रदेश में 43000 मंदिर सरकार के नियंत्रण में आ गए हैं, और इन मंदिरों का सिर्फ 18% राजस्व इन मंदिरों को लौटाया गया है, शेष 82% को अज्ञात कार्यों में लगाया गया है।
यहाँ तक कि विश्व प्रसिद्ध तिरुमाला तिरुपति मंदिर को भी नहीं बख्शा गया । Knapp के अनुसार, इस मंदिर में प्रतिवर्ष 3100 करोड़ से भी अधिक रूपये जमा होते हैं और राज्य सरकार ने इस आरोप का खण्डन नहीं किया है कि इस राशि का 85% राजकोष में जमा हो जाता है, और इसमें से अधिकतर उन मदों में व्यय होता है जो हिन्दू समुदाय से संबद्ध नहीं हैं।
एक और आरोप जो लगाया गया है वो ये कि आंध्र सरकार ने कम से कम 10 मंदिरों को गोल्फ कोर्स बनाने के लिये तोड़ने की अनुमति दी है। Knapp लिखते हैं, कल्पना कीजिये अगर 10 मस्जिद तोड़ दिये जाते तो कितना बवेला मचता?
ऐसी आशंका है कि कर्नाटक में जो लगभग 2 लाख मंदिरों से 79 करोड़ वसूले गए, उनमें से मंदिरों को सिर्फ 7 करोड़ मिले , मुस्लिम मदरसों और हज सब्सिडी में 59 करोड़ दिये गए और चर्चों को लगभग 13 करोड़ दिये गए।
Knapp लिखते हैं कि इसके कारण 2 लाख मंदिरों में से 25% यानि लगभग 50,000 मंदिर संसाधनों के अभाव में कर्नाटक में बंद कर दिये जाएंगे और उनके अनुसार सरकार के इस कृत्य के लिये सिर्फ हिंदुओं की लापरवाही और सहिष्णुता ही जिम्मेदार है।
Knapp फिर केरल का उल्लेख करते हैं जहाँ, वो कहते हैं, गुरुवयूर मंदिर के फण्ड को दूसरी सरकारी योजनाओं में लगा दिया गया है जिससे 45 हिन्दू मंदिरों का विकास रुक गया है। #अयप्पा_मन्दिर की भूमि पर कब्ज़ा कर लिया गया है तथा चर्च, विस्तृत वन क्षेत्र को -- सबरीमाला के निकट हजारों एकड़ भूमि को -- अतिक्रमण से दबाकर बैठी है।
केरल की कम्युनिस्ट राज्य सरकार एक अध्यादेश पारित करना चाहती है ताकि वह Travancore & Cochin Autonomous Devaswam Boards (TCDBs) को समाप्त कर दे तथा 1800 हिन्दू मंदिरों पर उनके सीमित स्वतंत्र अधिकारों को हथिया ले। अगर लेखक का कहना सही है, तो महाराष्ट्र सरकार भी राज्य में 450,000 मन्दिरों पर कब्ज़ा करना चाहती है जो राज्य के दिवालियेपन को हटाने के लिये विशाल राजस्व जुटाएंगे।
और इससे भी बढ़कर, Knapp कहते हैं कि उड़ीसा में राज्य सरकार #जगन्नाथ_मन्दिर की 70,000 एकड़ से भी अधिक दान में मिली भूमि को बेचना चाहती है, जिसकी राशि से इसके अपने ही मन्दिर कुप्रबंधन से उपजे वित्तीय घाटे को पूरा किया जाएगा।
Knapp के अनुसार, इन बातों की जानकारी इसलिये नहीं हो पाती क्योंकि भारतीय मीडिया, खासकर इंग्लिश टेलीविज़न और प्रेस, हिन्दू विरोधी हैं और हिन्दू समुदाय को प्रभावित करनेवाली किसी भी बात को न तो कवरेज देना चाहती हैं, और न ही उनसे कोई सहानुभूति रखती हैं। अतः, सरकार के सभी हिन्दू विरोधी कार्य बिना किसी का ध्यान खींचे चलते रहते हैं।
संभव है कि कुछ लोगों ने पैसे कमाने के लिये मन्दिर खड़े कर लिये हों। पर सरकार को भला इससे क्या सरोकार होना चाहिये? सारी आमदनी को हड़प लेने की बजाय, सरकार मंदिरों को फण्ड के प्रति जवाबदेह बनाने के लिये कमिटियों की स्थापना कर सकती है -- ताकि उस धन का सिर्फ मन्दिर के उद्देश्य से समुचित उपयोग हो सके।
Knapp का कहना है कि: स्वतंत्र लोकतान्त्रिक देशों में कहीं भी धार्मिक संस्थाओं को सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता और देश के लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाता।
पर भारत में ये हो रहा है। सरकारी अधिकारियों ने हिन्दू मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथों में ले रखा है, क्योंकि उन्हें इसमें पैसों की गंध लगती है, वे हिंदुओं की लापरवाही से परिचित हैं, वे जानते हैं कि हिन्दू हद दर्जे के सहिष्णु और धैर्यवान हैं, वे ये भी जानते हैं कि सड़कों पर प्रदर्शन करना , संपत्ति का नुकसान करना, धमकी, लूट, हत्या, ये सब हिंदुओं के खून में नहीं है ।
हिन्दू चुपचाप बैठे अपनी संस्कृति की हत्या देख रहे हैं। उन्हें अपने विचार स्पष्ट और बुलंद आवाज में व्यक्त करने चाहिये। समय आ गया है कि कोई सरकार से कहे कि सभी तथ्यों को सामने रखे ताकि जनता को पता चले कि उसकी पीठ पीछे क्या हो रहा है। पीटर को लूट कर पॉल का पेट भरना धर्मनिरपेक्षता नहीं है। और मंदिर लूटने के लिये नहीं हैं।
हम तो समझ रहे थे कि महमूद ग़ज़नवी मर चुका है, पर कहाँ ?

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