Wednesday, 8 November 2017

विकास खन्‍ना का विकासपथ—

डॉक्टर ने कहा नहीं चल सकेगा, मां बोली उड़ेगा ..!

पाक विधा में इनका शायद ही कोई मुकाबला कर सकता है। इनके बनाए भोजन का स्‍वाद अमेरिका के राष्‍ट्रपति भी चख चुके हैं। वे शानदार रसोइए के साथ ही सिद्धहस्‍त लेखक, फ‍िल्‍कार, समाजसेवक भी हैं। विकास खन्‍ना का नाम ही उनकी पहचान है। उनके व्‍यक्तित्‍व से तो सभी रूबरू हैं, पर ये बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि वे जन्‍मजात दिव्‍यांग (विशेष अंग वाले) हैं। इस अनचाही ख्‍ाूबी के बावजूद विकास ने जीवन के विकास पथ पर जिस तरह कदम बढ़ाए हैं, वह काबिलेतारीफ है और प्रेरक भ्‍ाी।
देश विकास की सफलता पर नाज करता है। ”2017 में विश्‍व के शीर्ष रसोइया” में स्‍थान बनाकर विकास ने भारत को गौरवान्तित होने का एक और अवसर दिया है। पाक विधा पर लिखी उनकी किताब भारत की विविधता को भी विश्‍वपटल पर रखती है। विकास दुनिया के शीर्षस्‍थ लोगों से मिले, लेकिन अपनी जड़ों को कभी नहीं भूले और हमेशा याद रखा कि वे कहां से आए हैं।उनका बचपन कठिनाई भरा रहा। जन्‍म से ही उनके हाथ और पैर विशेष्‍ा आकार, प्रकार के थे, जिसके चलते शुरुआती कुछ वर्ष तक उन्‍हें चलने में मुश्‍िकलों  का सामना करना पड़ा। इंस्‍टाग्राम पर एक पोस्‍ट में वह कहते हैं, ”जब एक चिकित्‍सक ने मेरी मां से कहा कि आपका बेटा दूसरे बच्‍चों की तरह ठीक से चलने में सक्षम नहीं होगा। मां ने उत्‍तर दिया, ”यह आपका विचार है, वह उड़ने के लिए पैदा हुआ है। ”अपने पैरों को चलने लायक बनाने के लिए बालावस्‍था में विकास ने चीन में बने विशेष जूते पहने, लेकिन वे वजनी और असुविधाजनक थे। दूसरों के ताने और चिढ़ाने से बचने के लिए वह रसोई में जाता और वहां भोजन पका रही दादी मां को बड़े ही चाव से देखता, वे जो मसाले प्रयोग में लाती थीं उनके बारे में हमेशा प्रश्‍न करता। तब वह बच्‍चा नहीं जानता था कि रसोई का यह अनुभव उसके उज्‍जवल भविष्‍य का रास्‍ता तैयार कर रहा है।उसकी मां हमेशा प्रोत्‍साहित करती थी कि वह एक दिन अमृतसर का सबसे अच्‍छा कुक बनेगा। इसी विश्‍वास के साथ उन्‍होंने लॉरेंस गार्डन बेंक्‍वेट्स (Lawrence Garden Banquets) नाम से खानपान का व्‍यवसाय शुरू किया। इस तरह पाक कला की उनकी यात्रा शुरू हुई।
मेंगलोर में मणिपाल विश्‍वविद्यालय में प्रवेश करने के लिए एक साक्षात्‍कार के दौरान उनकी अंग्रेजी इतनी कमजोर थी कि इंटरव्‍यू के बाद वह रोने लगे। हालांकि अपनी कुशलता और समर्पण के बल पर व डीन को समझाने में सफल रहे।
बाद में विकास न्‍यूयार्क चले गए और वहां सलाम बाम्‍बे रेस्‍टॉरेंट में कार्यकारी रसोइया बन गए। छोले भटूरे की दुकान में रसोइया से लेकर बराक ओबामा, दलाई लामा और नरेन्‍द्र मोदी तक को पकवान बनाकर खिलाने का सपना विकास ने पूरा किया है।नामचीन रसोइया होने के बाद भ्‍ाी विकास विनम्र इंसान हैं। उनके ही शब्‍दों में “असंभव बस एक नजरिया है, इसके अलावा कुछ नहीं”। ( ‘Impossible is just an opinion, nothing else!’)
हम भी उनकी इस बात से सहमत है!

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