Sunday, 26 November 2017

vakt ke jhrokhe se.....kashmeer

भारतवर्ष और कश्मीर (शारदादेश) का महत्त्व !

नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुरवासिनी ।
त्वामहं प्रार्थयो नित्यं विद्यादानं च देहि मे ।

(चित्र POK स्थित शारदापीठ)

वसुंधरापर सौंदर्यताका प्रतीक : 
कश्मीर,आज आतंकवादी कार्यवाहियों का अड्डा बन गया है । १९ जनवरी १९९० को संपूर्ण कश्मीर से हिंदुओंको निकल जानेके आदेश दिए गए थे । धर्म बचानेके लिए कश्मीरी हिंदुओं ने अपनी भूमि,संपत्ति और स्मृतियां,सब का परित्याग कर दिया । चारुदत्त पिंगले जी द्वारा मार्गदर्शन के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे हैं । भूमंडल में सबसे पवित्रतम भूमि अर्थात यह भारतवर्ष है ! अनेक ऋषिमुनि,अवतार एवं विद्वज्जनों ने भारत भूमि को गौरवशाली बनाया है। 

विश्वके सबसे सुसंस्कृत वंशके रूप में सुप्रसिद्ध आर्य संस्कृति का विकास इस देश में ही हुआ । ऐसा भारत देश हमारी सांस है, तो हिंदू संस्कृति हमारी आत्मा !प्रारूप में दिखने वाला भारत,राष्ट्रपुरुष की देह है । उसका जम्मू-कश्मीर प्रांत प्रत्यक्ष हमारा दिमाग अर्थात बुद्धि है । यदि भारतवर्ष कश्मीर विहीन हो गया, तो भारत की अवस्था बुद्धिहीन मानव जैसी,अर्थात पशुवत हो जाएगी !

शारदा देश का महत्त्व 

कश्मीर भारतवर्षकी बुद्धि है, इसका आध्यात्मिक कारण मां सरस्वती का शारदापीठ है ! ब्रह्मदेवने सृष्टिकी रचना की । तत्पश्चात उन्होंने मानवको पृथ्वी पर भेजा । 

मानवने ब्रह्मदेव से प्रार्थना की, "हे भगवन्,आप विविध देवताओं को,हमारा उत्कर्ष एवं भला हो,इस हेतु पृथ्वी वर भेजें । तदुपरांत (पृथ्वीपर ) विविध स्थानोंपर देवताओं ने अपने-अपने स्थान बनाए। इसी क्रम से ज्ञान की देवी सरस्वती ने जो स्थान पसंद किया,वह कश्मीर है । अत: कश्मीर का नाम शारदा देश भी है ।भारतीय संस्कृति में हिंदू प्रतिदिन शारदादेवी के श्लोक का पठन करते समय कहते हैं,

नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुरवासिनी ।
त्वामहं प्रार्थयो नित्यं विद्यादानं च देहि मे ।।

अर्थ : हे कश्मीरवासिनी सरस्वती देवी,आपको मेरा प्रणाम । आप हमें ज्ञान दें,यह मेरी आपसे नित्य प्रार्थना है ।

वर्तमान में कश्मीर स्थित यह शारदापीठ पाकिस्तान व्याप्त कश्मीर में है, क्या इस श्लोक का पठन करने वाले यह बात जानते हैं ? प्रार्थना में श्री शारदादेवी के जिस स्थान का हम निर्देश करते हैं,अब उसका पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है,तथा वहां जाने पर हिंदुओं को पापस्थान से (पाकिस्तानसे ) प्रतिबंध किया जाता है, यह बडा क्लेशदायी है ।

(चित्र POK स्थित शारदापीठ)

ध्यान रखें,हम सरस्वतीपुत्र अर्थात ज्ञान के उपासक हैं । अपना शारदापीठ पुन: भारतभूमि ज्ञान की धरोहर बनाने हेतु हमें अपना कर्तव्य करना है । कश्मीर का पौराणिक इतिहास है।

कश्मीरकी स्थापना करनेवाले कश्यप ऋषि !

कश्यप ऋषि के नामसे इस भूभाग को ‘कश्मीर’ नाम प्राप्त हुआ । असुरों का नाश कर सज्जनों को अभय देने हेतु कश्यप ऋषि ने कश्मीर उत्पन्न किया । भारत के सारे क्षेत्रों से सुसंस्कृत तथा सुविद्य लोगों को वहां बसने का आमंत्रण देकर महर्षि कश्यप ने यह प्रदेश बसाया है ।

कश्मीरभूमि शिवभक्तों हेतु ही है !

महाभारत के युद्ध में सारे राजाओंने धर्मयुद्ध में हिस्सा लिया;किंतु कश्मीर के राजा गोकर्ण ने उसमें हिस्सा नहीं लिया । तब श्रीकृष्णने उस अधर्मीका वध किया तथा उसके स्थानपर उसकी पत्नी यशोमती का अभिषेक किया । इस प्रकार विश्वमें पहली बार एक महिला को शासनकर्ता बनाया गया तथा उसका आरंभ भी कश्मी से ही हुआ । उसका अभिषेक करते समय स्वयं श्रीकृष्ण ने बताया कि कश्मीर की भूमि साक्षात पार्वती का रूप है । इस भूमि पर केवल शिवतत्त्व प्राप्त करने हेतु प्रयत्नरत रहनेवालोंको ही राज करने का अधिकार है । जो शिवतत्त्वकी दिशामें अर्थात धर्म की दिशा में प्रयास नहीं करते,उन्हें इस भूमि पर रहने का कोई अधिकार नहीं ।आज के कश्मीर में अधर्मी अथवा असुर कौन हैं,तथा शिव प्रेमी कौन हैं, सूज्ञ व्यक्तियों को यह अलगसे बताने की आवश्यकता नहीं !

कश्मीरी संस्कृतिकी भारतीयता !

कश्मीरका निर्देश हिंदू धर्मके अनेक प्राचीन संस्कृत ग्रंथोंमें दिखता है । ‘शक्ति-संगमतंत्र’ ग्रंथमें कश्मीरकी व्याप्ति आगे दिए अनुसार है ।

शारदामठमारभ्य कुडःकुमाद्रितटान्तकम् ।
तावत्काश्मीरदेशः स्यात् पन्चाशद्योजानात्मकः ।।

अर्थ : शारदा मठसे केशरके पर्वत तक ५० योजन(१ योजन ४ कोस) विस्तृत भूभाग कश्मीर देश है । महाभारत में इसका निर्देश ‘कश्मीरमंडल’ है । 
(भीष्म. ९.५३)

भगवान श्रीकृष्ण तथा भगवान बुद्ध इन दो महात्माओं ने कश्मीर में रहकर सम्मान प्रदान किया है । युधिष्ठिर के राज्याभिषेकमें कश्मीर का राजा गोनंद उपस्थित था । इससे कश्मीर हिंदू संस्कृतिसे एकरूप है, यह बात आसानीसे समझमें आती है ।

इ.स. पूर्व २७३-२३२ की इस कालावधि में सम्राट अशोक ने श्रीनगरी राजधानी की स्थापना की । यही श्रीनगर है ! आज जहां श्रीनगर हवाई अड्डा है, उसके बाजू में सम्राट अशोक का पोता दामोदर का विशाल प्रासाद (भवन) था । कश्मीर स्थित सारे स्थानों के नाम परिवर्तन किए गए अथवा उनका इस्लामीकरण किया गया; किंतु आज भी श्रीनगरका नाम परिवर्तन नहीं कर सके, यह सत्य ध्यानमें रखें ! 

जिस कश्मीरकी राजधानी ही श्रीनगर है, वह राज्य अपना हिंदुत्व कैसे छुपा सकता है ? ख्रिस्त जन्मपूर्व ३००० वर्ष कश्मीर का अस्तित्व था,ऐसा पुरातत्वीय आधार दिया जाता है । उस समय इस्लाम का कोई प्रतिनिधि अस्तित्व़ में नहीं था; किंतु ओमर का कोई पूर्वज निश्चित ही उस समय कश्मीर में रहता होगा । यदि उसे पूछा जाए,तो कश्मीर भारत में कब का विलय हो गया,ऐसा वह बताएगा ।

धार्मिकदृष्टिसे

१. हिंदू संस्कृति में १६ संस्कारों का विशेष महत्त्व है । जो उपनयन संस्कार करते हैं, वे उसके पश्चात बच्चे को सात कदम उत्तर की दिशा में,अर्थात कश्मीर की दिशा में चलने हेतु कहते हैं । इससे हिंदू संस्कारों की दृष्टिसे कश्मीर का महत्त्व ध्यान में आएगा ।

२. हिंदू संस्कृति, मंदिर संस्कृति है । संपूर्ण कश्मीर घाटी एक समय भव्य दिव्य तथा ऐश्वर्यशाली मंदिरों हेतु सुप्रसिद्ध था । इस्लामी कुदृष्टि पडनेसे आज सर्वत्र इन मंदिरोंके भग्नावशेष ही देखने को मिलते हैं । कश्मीरके गरूरा गांव में ‘जियान मातन’ नाम का दैवी तालाब था । इस तालाब के किनारे ६०० वर्ष पूर्व ७ मंदिर थे । 

सिकंदर भूशिकन नामके काश्मीर के मुसलमान राजा ने उनमें से ६ मंदिर गिराए । सातवां मंदिर गिराने की सिद्धता में था कि उस तालाब से खून बहने लगा । इस घटना से सिकंदर भूशिकन आश्चर्यचकित हुआ तथा घबराकर वहां से भाग गया । इस प्रकार उस क्रूरकर्मीके चंगुल से सातवा मंदिर मुक्त हुआ,जो आज भी विद्यमान है । यह मंदिर आज क्यों खडा है ? कश्मीर हिंदू संस्कृति है,इसकी पहचान बताने हेतु ही !

अध्यात्मिकदृष्टि से

१. श्रीविष्णु-लक्ष्मी एवं शारदादेवी एक साथ कभी भी नहीं रहतीं, ऐसा कहा जाता है; किंतु केवल कश्मीर में ही लक्ष्मी एवं शारदादेवी एकसाथ रहती आई हैं । यहां एक स्थानपर शारदाका तथा दूसरे स्थानपर श्रीलक्ष्मीका स्थान है ।

२. कश्मीरकी नागपूजक संस्कृति : 
नागपूजन हिंदू धर्मका अविभाज्य अंग है । कश्मीरमें प्राचीन कालसे नागपूजा प्रचलित है । अत: अनेक तालाब तथा झरनोंको नागदेवताओं के नाम प्राप्त हुए हैं । उदाहरण,नीलनाग,अनंतनाग,वासुकीनाग, तक्षकनाग आदि । नाग उसके संरक्षकदेवता थे । 
अबुल फजलने आईने अकबरीमें कहा है कि उस क्षेत्रमें लगभग सातसौ स्थान पर नाग की आकृतियां खोदी हुई दिखती हैं । विष्णु ने वासुकीनाग को सपरिवार यहां रहने की आज्ञा दी थी तथा यहां उसे कोई मारेगा नहीं,ऐसा वचन भी दिया था । क्या अरबस्थान में नागपूजन होता है ?वहां तो मू्र्तिपूजा भी नहीं होती, नाग की आकृतियां खोदनेका प्रश्न ही नहीं उठता !

सांस्कृतिकदृष्टिसे

प्राचीन कालसे कश्मीरमें उच्च संस्कृतिकी 
देखभाल होती आ रही है । 
विद्या एवं कलाओंका उत्कर्ष वहां दो सहस्र 
वर्षों से चला आ रहा है ।

१. संस्कृत भाषा हिंदू संस्कृतिका केंद्रबिंदू है । इस देववाणीमें सब धार्मिक विधियोंकी रचना हुई है । ये सारी धार्मिक विधियां कश्मीर से केरल तक केवल संस्कृत भाषामें ही पठन की जाती हैं । इससे कश्मीरका केवल केरलसे ही नहीं, अपितु सारे भारतवर्षसे भाषिक,सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंध समझमें आएगा ।

२. क्षेमेंद्र,मम्मट,अभिनवगुप्त,रुद्रट,कल्हण जैसे पंडितोंने अनेक विद्वत्तापूर्ण संस्कृत ग्रंथों की रचना की । धर्म तथा तत्त्वज्ञानके क्षेत्रोंमें कश्मीरी लोगोंने प्रशंसनीय कार्य किया था । पंचतंत्र,यह सुबोध देनेवाला हिंदू संस्कृति का ग्रंथ कश्मीरमें लिखा गया, यह बात कितने लोग जानते हैं ?

३. कुछ सहस्र वर्ष कश्मीर संस्कृत भाषा एवं विद्या का सबसे बडा तथा श्रेष्ठ अध्ययन केंद्र था ।
दसवें शतकतक भारतके सारे क्षेत्रोंसे छात्र अध्ययन हेतु वहां जाते थे 

तत्त्वज्ञान,धर्म,वैद्यक,ज्योतिर्शास्त्र,शिल्प,अभियांत्रिकी,चित्रकला,संगीत,नृत्य आदि अनेक विषयोंमें कश्मीर निष्णात था । हिंदुओंके सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक ग्रंथोंमें उनका अभिमानपूर्ण निर्देश है; किंतु आज इस गौरवशाली इतिहास को भीषण एवं प्रचंड वर्तमान ने पोंछ दिया है । हमें यह परिस्थिति परिवर्तन करनी है ।

४. ललितादित्य,अवंतिवर्मा,यशस्कर,हर्ष इन राजाओंने अनेक विद्वानों तथा कलाकारों को आश्रय देकर संस्कृतिके विकासमें सहयोग लिया । अनेक भव्य सुंदर मंदिर निमार्ण कर शिल्पकलाके स्मारक बनाकर रखे हैं ।

५. ‘प्रत्यभिज्ञादर्शन’ नामक एक नया दर्शन कश्मीर में ही उत्पन्न हुआ । अत: वह ‘काश्मीरीय’ नामसे प्रसिद्ध हुआ । वसुगुप्त (इ.स. का ८ वा शतक) कश्मीरी महापंडित इस दर्शनके मूल प्रवर्तक हैं ।

६. कश्मीरी क्रियापदमें भारतीय आर्य विशेषताएं स्पष्ट रूपसे समझमें आती हैं । कश्मीरी साहित्यका विकास भी उसकी भारतीय आर्य परंपराका निर्देशक है । यह भाषा अरबी अथवा जंगली उर्दू से उत्पन्न नहीं है, अपितु देववाणी संस्कृतकी कन्या है,यह ध्यानमें रखें !

नैसर्गिकदृष्टिसे

१. भारतका नंदनवन : कालिदासने कश्मीर अर्थात दूसरा स्वर्ग ही है,ऐसा लिखकर रखा है । पृथ्वीपर कैलास सर्वोत्तम स्थान,कैलासपर हिमालय सर्वोत्तम स्थान तथा हिमालयमें कश्मीर सर्वोत्तम स्थान,इतिहासकार कल्हणने कश्मीरका ऐसा ही वर्णन लिखकर रखा है ।

२. सर वाल्टर लॉरेन्सने कहा है कि एक समय काश्मीर में इतनी समृद्धि तथा निरामयता थी कि वहांकी स्त्रियां सृजन शीलतामें जैसे भूमि से स्पर्धा करती थीं । भूमि जैसे सकस धानसंपदा देती है, वहा की स्त्रियां वैसी ही सुदृढ संततिको जनम देती थीं । किंतु आज क्या हो रहा है ? उसी कश्मीर घाटीमें ३० वर्षकी इन महिलाओंकी माहवारी बंद हो रही है । यह सब दुर्भाग्यपूर्ण है !

स्त्रियोंको राज्यकर्ताका पद देनेकी परंपरा 
देनेवाला कश्मीर !

दिद्दा,सुगंधा,सूर्यमती जैसी अनेक कर्तव्यनिष्ठ राज्यकर्ता स्त्रियां भी कश्मीरके इतिहास में प्रसिद्ध हुर्इं । उन्होंने बडी कुशलतासे राजकारोबार किया तथा प्रजाको सुखी रखा ।

पूरे विश्वमें हिंदू धर्मप्रचारक भेजनेवाला देश !

सम्राट कनिष्कके राजमें विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षतामें एक विशाल धर्मपरिषद आयोजित की गई थी । भारतके कोने-कोनेसे ५०० धर्मपंडित वहां नीती नियमोंका विचार-विमर्श करने हेतु गए थे । परिषद संपन्न होनेके पश्चात वहींसे युवा धर्मपंडित तिब्बत,चीन एवं मध्य एशिया गए तथा उन्होंने हिंदू दर्शनके सत्यज्ञान का प्रसार किया । चीनमें भारतके अन्य क्षेत्रोंसे जितने धर्म प्रसारक गए,उससे अधिक धर्मप्रसारक केवल कश्मीरसे गए हैं,एक समय उस क्षेत्रमें ऐसा अभिमानसे कहा जाता था ।

कश्मीरी हिंदुओं का स्वभूमि से विस्थापन, धोखे की घंटी !

एक समय सुंदरताकी धरोहरके रूप में भारत की प्रतिष्ठामें सम्मानका सिरपेंच धारण करनेवाला कश्मीर आज आतंकवादियों की कार्यवाहियों का केंद्र बन गया है । कश्मीर का वर्तमान राजनैतिक,सामाजिक एवं शैक्षणिक जीवन देखें, तो 68 वर्ष स्वतंत्रता का उपभोग लेनेवाले भारत की दृष्टिसे कश्मीर एक कलंक ही होगा ।

अतीत की जो बातें अपने सामने आती रहती हैं, उन्हें सुनकर भी अनसुना करना, समझकर भी नासमझ बनना, तथा देखकर भी अनदेखा करना, इसके जैसा दूसरा भ्रम नहीं होगा । १९ जनवरी १९९० को संपूर्ण कश्मीरसे हिंदू निकल जाएं, स्थान-स्थानपर ऐसा आदेश दिया गया । खुले आम कहा गया, समाचारपत्रोंमें आवेदन दिए गए, और पूरे हिंदू समाजको वहांसे निकल जाना पडा । 

उनके सामने तीन पर्याय थे । एकतो धर्म बदलें,जिहादमें सम्मिलित हों, अथवा वहांसे चले जाएं । उन हिंदुओंने बहुत बडा त्याग किया । धर्म बचाने हेतु अपनी भूमि,सम्पत्ति,अपनी यादें,बचपन,सारे मृदु (नाजुक) धागे अपने हाथोंसे तोडकर ये लोग दूसरे स्थानपर जाकर रहे ।

हिंदू धर्म जीवित रखनेका दायित्व भाग्य का नहीं !

अनेक कश्मीरी हिंदुओंने बताया, १९९० में जब यह सब हुआ, उससे पूर्व यदि मुझे कोई बताता कि २० वर्ष पश्चात आपको यह सब छोडकर जाना पडेगा, तो उसका विश्वास कभी भी न करता; किंतु २० वर्ष पश्चात वह वास्तविकता हमारी आंखों के सामने प्रत्यक्ष उपस्थित थी । यदि हम कुछ न करें,तो कुछ वर्ष पश्चात यह वास्तविकता हमारे सामने उपस्थित होगी, इस विषयमें मेरे मनमें तिलमात्र संदेह नहीं; क्योंकि यह विधिका विधान है । 

हम यदि केवल अपने लिए जीवन जीकर हिंदू धर्म हेतु कुछ भी नहीं करेंगे, तो हिंदू धर्म जीवित रखनेका दायित्व ईश्वरपर नहीं । ईश्वरका नियम है कि जो अपनी जडें दृढ पकडकर खडा होता है,वही टिक पाता है । जो अपनी जडें दृढतासे पकडकर खडा नहीं होता, उसे अस्तित्वकाकोई अधिकार नहीं । हम उस हेतु क्या प्रयास करनेवाले हैं, यही महत्त्वपूर्ण बात है ।

हिंदू धर्म,धर्मीय तथा राष्ट्रकी रक्षा करनेकी प्रतिज्ञा करें !

अपने सामने आए शत्रु शस्त्रोंसे सज्ज हैं, उनके पास आर्थिक सामर्थ्य है, उनकी तरफ प्रसारमाध्यम हैं, तथा सबकुछ उनके अनुकूल है । अत: कोई छोटा कृत्य कर अल्पसंतुष्ट रहने का कोई अर्थ नहीं है । हमें सहस्रों हाथोंसे,सहस्रों मुखोंसे कार्य करने हैं, तथा यह कार्य करनेका समय यही है । यदि यह आज नहीं किया,कल करनेका मन किया, तो कुछ उपयोग नहीं होगा, यह अच्छी तरह जान लें ।

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