Sunday, 19 November 2017

पुरे देवभूमि को इस्लामी भूमि बनाने की तैयारी


बद्रीनाथ को अचानक से बदरुद्दीन नहीं बता दिया, पुरे देवभूमि को इस्लामी भूमि बनाने की तैयारी
मेरे एक मित्र ने 1997 में श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मन्दिर समिति की जोशीमठ बैठक में यह निवेदन किया था कि मुस्लिम बद्रीनाथ को बदरुद्दीन की मजार और केदारनाथ को केदारूदीन की मजार में निरूपित कर फिदाईन तैयार कर रहे हैं। उस वक्त CS टोलिया जी के कहने पर इतिहास लेखन की वैठक थी और उसमें वेदपाठी, धर्माधिकारी के अलावा तत्कालीन मुख्यकार्यकारी अधिकारी बी के मिश्रा थे। तब जनपद चमोली में देवबन्द से प्रशिक्षित जेहादियों को छोटे बच्चों को कुरान और उर्दू पढ़ाने के लिए भेजा गया था। ये घरों में जाकर पढ़ाते थे। तब तक गोपेश्वर में केवल पोस्ट आफिस के पास ही इनका अड्डा जाना जाता था।
देवबन्द के लोगों के आने के बाद परिस्थितियों में परिवर्तन आया। जो रणनीति कश्मीर में अपनायी थी उसे ही उत्तराखण्ड में भी लागू किया जाने लगा। दिन में अंडे मुर्गी, फल, शब्जी, बिसात खाने, मैकेनिक, की दुकान और रात को जिहाद की शिक्षा। परिणाम यह हुआ कि हिंदुओं की लड़कियों का मुसलमानों के साथ निकाह की खबरें आने लगी।
गोपेश्वर में मस्जिद बनाने के प्रयास तेज हुए। अलकापुरी में कब्रिस्तान को SDM अबरार अहमद ने डन्डे के बल पर मंजूरी दी। गोपेश्वर नगर क्षेत्र में ही नहीं पूरे जिले में इस्लाम के अनुयायियों की बाढ़ आगयी। उन्होंने ठेकेदार बन कर मकान खरीद लिए । सवर्ण तो मुसलमानों को किरायेदार रखते नहीं। बस्ती वालों के यहां रहे। और वहीं दामाद भी बन गये। पहले माँ से रिश्ते बनाये और बाद में शादी बेटी से की और फिर घर जमाई बन कर जमीन भी हड़प दी। पुलिस लाइन से लेकर पठालीधार पोखरी बैंड तक यही हाल है। और तो और गोपेश्वर जहां एबर्टशन बन्दोबस्त में तक भी 200 नाली जमीन मन्दिर के नाम दर्ज कागजाद थी।
1965 के उत्तराखण्ड ज़मीदारी विनाश कानून ने मन्दिर को ज़मीदारी मान लिया और मन्दिरों के नाम जिस जमीन से मन्दिरों की दिया बत्ती और भोग पूजा होती थी। और मन्दिर के भंडारी, बाजीगिरी, कमदी, आदि खैकर थे, जमीन उन खैकरों के नाम दर्ज हो गयी। मन्दिर कंगाल और अवैध कब्ज़े धारी मालामाल हो गये। आज उस जमीन पर इस्लामिक जेहादियों की हवेलियां उग आयी है।
मन्दिर की जमीन पर उगी इन हवेलियों में पुजारियों को कत्ल करने के लिए हथियारों का जखीरा होने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। यही स्थिति नन्दप्रयाग और जोशीमठ में है। लेकिन इन जेहादियों को प्रतिष्ठित करने में दोगले पत्रकारों की भी बड़ी भूमिका रही है। दारू के पैक में बिकने वाले पत्रकार हमेशा सेक्युलर आवरण में इनके काले कारनामों को छुपाने के लिए अग्रणी रहे हैं।
हर बार साम्प्रदायिक सौहार्द की दुहाई मंचों से माइक पर देने वालों की ही चलती है। अब जब पिछले 20 सालों में इस्लामिक जेहादियों ने अपनी जमीनी पकड़ यहां मजबूत कर ली तो बद्रीनाथ पर अपने कब्जे के पत्ते खोल दिए हैं। यही कश्मीर में होता रहा है। यह जेहाद की रणनीति का हिस्सा है। अब देवभूमि के अस्तित्व बचाने का एक ही रास्ता है कि म्यामांर सरकार से सीख लेते हुए उनकी नीतियों का अनुपालन किया जाय ।
Vithal Vyas

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