Monday, 13 November 2017

ये है वीरांगना पद्मावती का जौहर स्थल, जहां 

आज भी गूंजती है चीखें...

चित्तौड़ का गौरवशाली इतिहास न सिर्फ राजपूतों की बहादुरी का साक्षी रहा है बल्कि मेवाड़ की इस धरती पर ऐसी वीरांगनाएं भी पैदा हुई हैं जिन्होंने धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए बेधड़क धधकती अग्नि में खुद को स्वाहा कर डाला, यही वो स्थल है, जहां आज भी लोग श्रद्धा से अपना सिर झुकाते हैं। इसी कुंड में महारानी पद्मावती (पद्मिनी) ने 16 हजार स्त्रियों के साथ जौहर किया था।

चित्तौड़गढ़ के किले में उस कुंड की ओर जाने वाला रास्ता आज भी उस भयानक कहानी का गवाह है। यह रास्ता बेहद अंधेरे वाला है जिस पर आज भी कोई जाने का साहस नहीं करता। इस गलियारे की दीवारों तथा कई गज दूर भवनों में आज भी कुंड की अग्नि के चिन्ह और उष्णता का अनुभव किया जा सकता है। साफ दिखाई देता है कि विशाल अग्निकुंड की ताप से दीवारों पर चढ़े हुए चूने के प्लास्टर जल चुके हैं। इस चित्र में कुंड के समीप जो दरवाजा दिख रहा है कहा जाता है कि चितौड़ की आन-बान और शान के लिए वीरांगना पद्मावती वहीं से अपनी साथी महिलाओं के साथ कुंड में कूद गई थीं। कहते हैं कि यह जौहर इतना विशाल था कि कई दिनों तक इस कुंड में अग्नि धधकती रही। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि सैकड़ों वीरांगनाओं की आत्माएं आज भी इस कुंड में मौजूद हैं और यहां इस कुंड से अक्सर औरतों की चीखें सुनाई पड़ती हैं।
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गोवर्धन मठ पूरी पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने भी पद्मावती के विकृत इतिहास को लेकर अपना कड़ा विरोध प्रस्तुत किया है।
महारानी पद्मावती हमारी गौरव हैं। हमारे गौरव के साथ किसी को छेड़ने का कोई अधिकार नहीं।
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इतिहासकारों के पास खिलजी का प्रमाण है, पद्मिनी का नही। ऐसे इतिहासकारों को चुल्लू भर पानी दे देना चाहिये।
पद्मावती खिलजी की कल्पना हो सकती है ये भी माना जा सकता है; किंतु उस कल्पना का सीधा सम्बंध आप चितौड़ से दिखा रहे हो और फिर ये भी कह रहे हो कि वो काल्पनिक है। काल्पनिक चीजों का किसी वंश विशेष से सम्बंध कैसे हो दिखाया जा सकता है ?? ये शुद्ध झोल नही तो और क्या है !

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