Sunday 12 November 2017

प्रेरक प्रसंग

औदार्य

कर्नाटक के सन्त बसवेश्वर के घर एक बार रात्रि को एक चोर आया और उसने उनकी सोती हुई धर्मपत्नी गंगाबिका के गले का रत्नहार निकाल लिया । इससे वह जाग गयी और जोरों से चीख उठी । चीख सुनकर बसवेश्वर भी घबराकर उठ बैठे और उन्होंने पत्नी से चीखने का कारण पूछा । गंगाबिका से रत्नहार चोरी जाने की बात सुनकर उन्होंने डाँटा और बोले, "चिल्लाने की बजाय तुम्हें उसे दूसरे आभूषण भी लेने देना था । मैं नहीं जानता था कि तुम इतनी लालची हो ।" इस पर गंगाबिका ने क्षमा माँगी । बसवेश्वर बोले, "यह चोर अवश्य ही संगमनाथ होगा, इसलिए बड़ी आशा से वह आया होगा । खैर, इस रत्नहार से कुछ दिन तो उसका काम चल ही जाएगा ।"
वह चोर संगमनाथ ही था, जो एक कोने में छिप गया था । बसवेश्वर के शब्दों ने जादू का सा काम कर दिया । उसे आत्मग्लानि हुई कि उसने व्यर्थ ही एक साधु पुरुष का हार चुराया है । वह तुरन्त सामने आ गया और बसवेश्वर के चरणों में गिरकर उसने क्षमा माँगी । उसने हार वापस करते हुए कहा कि अब वह कभी चोरी नहीं करेगा । किन्तु बसवेश्वर ने हार लौटाते हुए कहा, "इसे ले जाओ और जब कभी कोई अन्य आवश्यकता पड़े, नि:स्संकोच माँगकर ले जाना ।"

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