एक दिन वो था जब ढाका का हिंदू बंगाली पूरी दुनियाँ में जूट का सबसे बड़ा कारोबारी था। आज उसके पास सुतली बम भी नहीं बचा। ननकाना साहब, लवकुश का लाहोर, दाहिर का सिंध, चाणक्य का तक्षशिला, ढाकेश्वरी माता का मंदिर देखते ही देखते सब पराये हो गए।
पाँच नदियों से बने पंजाब में अब केवल दो ही नदियाँ बची। यह सब किसलिए हुआ.? केवल और केवल असंगठित होने के कारण, इस देश के मूल समाज की सारी समस्याओं की जड़ ही संगठन का अभाव है। आज भी इतना आसन्न संकट देखकर भी बहुतेरा समाज गर्राया हुआ है। कोई व्यापारी असम के चाय के बागान अपना समझ रहा है, कोई आंध्रा की खदानें अपनी मान रहा है। तो कोई सूरत का सोच रहा है। ये हीरे का व्यापार सदा सर्वदा उसी का रहेगा।
कभी कश्मीर की केसर की क्यारियों के बारे में भी हिंदू यही सोचा करता था। तू अपने घर भरता रहा और पूर्वांचल का लगभग पचहत्तर प्रतिशत जनजाति समाज विधर्मी हो गया। बहुत कमाया तूने बस्तर के जंगलों से... आज वहाँ घुस भी नहीं सकता। आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस पर संकट क्या आने वाला है ?? बचे हुए समाज में से बहुत से अपने आप को सेकुलर मानता है।
ऐसे में पाँच से लेकर दस प्रतिशत ही बचता है जो अपने धर्म और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील है,कभी कश्मीर की केसर की क्यारियों के बारे में भी हिंदू यही सोचा करता था। तू अपने घर भरता रहा और पूर्वांचल का लगभग पचहत्तर प्रतिशत जनजाति समाज विधर्मी हो गया। बहुत कमाया तूने बस्तर के जंगलों से... आज वहाँ घुस भी नहीं सकता। आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस पर संकट क्या आने वाला है ?? बचे हुए समाज में से बहुत से अपने आप को सेकुलर मानता है।
इसलिए आजादी के बाद एक बार फिर हिंदू समाज दोराहे पर खड़ा है। एक रास्ता है, शुतुरमुर्ग की तरह आसन्न संकट को अनदेखा कर रेत में गर्दन गाड़ लेना तथा दूसरा तमाम संकटों को भांपकर सारे मतभेद भुलाकर संगठित हो संघर्ष कर अपनी धरती और संस्कृति बचाना।
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