संस्मरण- पूज्य शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
सूचना आई कि कांची पीठ के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती परम पूज्य गुरुदेव से मिलने शान्तिकुँज आ रहे हैं। गायत्री नगर गेट से शान्तिकुँज गेट तक का पूरा रास्ता फूलों से सुसज्जित किया गया, स्वामी जी के आगमन पर सड़क के दोनों किनारों पर खड़े कार्यकर्ताओं द्वारा गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों की वृष्टि के साथ स्वागत किया गया। स्वामी जी के शिष्य उनका आसन साथ लेकर चल रहे थे, साथ में जयराम पीठाधीश्वर भी थे, जिन्होंने स्वामी जयेन्द्र सरस्वती को शान्तिकुँज आने से यह कहकर रोकना चाहा था कि कहाँ आप संन्यासी और शंकराचार्य तथा श्रीराम शर्मा आचार्य तो एक गृहस्थ हैं। स्वामी जी जिद करके शान्तिकुँज आये।
यह क्या? परम पूज्य गुरुदेव के समीप पहुँचते ही गुरुदेव आगे बढ़े, पर स्वामी जयेन्द्र सरस्वती के हाथ पूज्य गुरुदेव के चरणों में पहुँच चुके थे, जयराम पीठाधीश्वर का मुंह खुला रह गया, प्रणाम से उठकर अपने शिष्यों की ओर उन्मुख होकर स्वामी जी ने कहा - तुम लोग नहीं समझोगे, मैंने साक्षात महाकाल को सिर झुकाया है। शिष्यों द्वारा उनका आसन बिछाने से भी इंकार कर दिया और कहा कि यहां इसकी आवश्यकता नहीं है। लगभग एक घंटे तक केवल परम पूज्य गुरुदेव और स्वामी जयेन्द्र सरस्वती एकान्त में चर्चा करते रहे।
बड़े ही सरल, सज्जन और दिव्य सन्त थे वो। गुरुदेव द्वारा उनको ऊँचा आसन देना और स्वयं नीचे आसन पर विराजना आज भी मन को छूता है।(चित्र संलग्न)
गायत्री महामन्त्र एवं यज्ञ का अधिकार सर्वसामान्य को देने के लिए किसी समय पूज्य आचार्यश्री के आलोचक रहे पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने उनसे कहा था- “आचार्यश्री, आपने लुप्त होती गायत्री और सर्वकल्याणकारी यज्ञ को बचा लिया है तथा उसे जन-जन तक पहुँचाकर विश्वव्यापी बना दिया है, इसके लिए मैं आपका सम्मान करता हूँ।”
कांची मठ के 69वें प्रमुख शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का दिनांक 28 फरवरी दिन बुधवार को तमिलनाडु के कांचीपुरम में देहावसान हो गया। कांची पीठ के प्रमुख जयेंद्र सरस्वती 82 वर्ष के थे।
कई स्कूलों, नेत्र चिकित्सालयों तथा अस्पतालों का संचालन करने वाले कांची कामकोटि पीठ की स्थापना पांचवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। शंकराचार्य जी को भारी मन से शत- शत नमन।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
सूचना आई कि कांची पीठ के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती परम पूज्य गुरुदेव से मिलने शान्तिकुँज आ रहे हैं। गायत्री नगर गेट से शान्तिकुँज गेट तक का पूरा रास्ता फूलों से सुसज्जित किया गया, स्वामी जी के आगमन पर सड़क के दोनों किनारों पर खड़े कार्यकर्ताओं द्वारा गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों की वृष्टि के साथ स्वागत किया गया। स्वामी जी के शिष्य उनका आसन साथ लेकर चल रहे थे, साथ में जयराम पीठाधीश्वर भी थे, जिन्होंने स्वामी जयेन्द्र सरस्वती को शान्तिकुँज आने से यह कहकर रोकना चाहा था कि कहाँ आप संन्यासी और शंकराचार्य तथा श्रीराम शर्मा आचार्य तो एक गृहस्थ हैं। स्वामी जी जिद करके शान्तिकुँज आये।
यह क्या? परम पूज्य गुरुदेव के समीप पहुँचते ही गुरुदेव आगे बढ़े, पर स्वामी जयेन्द्र सरस्वती के हाथ पूज्य गुरुदेव के चरणों में पहुँच चुके थे, जयराम पीठाधीश्वर का मुंह खुला रह गया, प्रणाम से उठकर अपने शिष्यों की ओर उन्मुख होकर स्वामी जी ने कहा - तुम लोग नहीं समझोगे, मैंने साक्षात महाकाल को सिर झुकाया है। शिष्यों द्वारा उनका आसन बिछाने से भी इंकार कर दिया और कहा कि यहां इसकी आवश्यकता नहीं है। लगभग एक घंटे तक केवल परम पूज्य गुरुदेव और स्वामी जयेन्द्र सरस्वती एकान्त में चर्चा करते रहे।
बड़े ही सरल, सज्जन और दिव्य सन्त थे वो। गुरुदेव द्वारा उनको ऊँचा आसन देना और स्वयं नीचे आसन पर विराजना आज भी मन को छूता है।(चित्र संलग्न)
गायत्री महामन्त्र एवं यज्ञ का अधिकार सर्वसामान्य को देने के लिए किसी समय पूज्य आचार्यश्री के आलोचक रहे पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने उनसे कहा था- “आचार्यश्री, आपने लुप्त होती गायत्री और सर्वकल्याणकारी यज्ञ को बचा लिया है तथा उसे जन-जन तक पहुँचाकर विश्वव्यापी बना दिया है, इसके लिए मैं आपका सम्मान करता हूँ।”
कांची मठ के 69वें प्रमुख शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का दिनांक 28 फरवरी दिन बुधवार को तमिलनाडु के कांचीपुरम में देहावसान हो गया। कांची पीठ के प्रमुख जयेंद्र सरस्वती 82 वर्ष के थे।
कई स्कूलों, नेत्र चिकित्सालयों तथा अस्पतालों का संचालन करने वाले कांची कामकोटि पीठ की स्थापना पांचवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। शंकराचार्य जी को भारी मन से शत- शत नमन।
No comments:
Post a Comment