कभी सोचा है हालही में उठे मैगी विवाद के बाद भारत में 1300 करोड़ रुपए के नूडल्स के बाज़ार को तहस-नहस करने के पीछे कौन हो सकता है, ये पूरा मामला कहां से आया, किसने इसे शुरू किया...? आपको बता दें कि यह मामला मार्च, 2014 से चला आ रहा है। वी. के. पाण्डेय, फूड सेफटी ऑफिसर, उत्तर प्रदेश यही वो शक्स हैं जिसने 'मैगी' को मुश्किलों में डाल दिया है।
दरअसल, पाण्डेय ने पिछले साल अपने साथी अफसरों से कुछ खाने की चीज़ों के साथ पैकिट बंद खाने को नियमित जांच के लिए भेजा था, जिसमें से "मैगी" भी एक थी। साथ ही, जांच के दौरान बाराबंकी जिले से कुछ मसाले और चिप्स के नमूने भी लिए गए जिन्हें गोरखपुर की सरकारी लैब में जांच-पड़ताल के लिए भेजा गया।
वी. के. पाण्डेय ने बताया कि, वे गोरखपुर लैब में मैगी में पाए गए लेड तय सीमा से ज्यादा होने पर चौंक गए थे। उन्होंने बताया कि, "पहले मुझे लगा कि शायद रिपोर्ट बनते समय कोई गलती हुई है... पर दोबारा सुनिश्चित करने के बाद हमने पाया कि मैगी में पाए गए लेड और मोनोसोडियम ग्लूटामेट (MSG) की मात्रा तय सीमा से ज्यादा है। मैंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट की जानकारी दी।"
वी.के. पाण्डेय ने बताया कि, "मैं यही सोचता था कि 'नेस्ले' कंपनी के प्रोडक्ट्स फूड सेफटी के कड़े मापदंडों का पालन कर के बनते हैं.. ऐसे में मैगी में लेड और MSG कैसे हो सकता है। ये सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं लैब की रिपोर्ट में गलती तो नहीं हुए है, इसलिए मैंने मैगी नूडल के कुछ और नमूने बाज़ार से लिए और दोबारा जांच के लिए भेजे..."
उन्होंने बताया कि, मैगी के पैकिंग इस तरह की जाती है कि हैवी मेटल्स का पाता नहीं चलता, जो कि रोज़मर्रा के खानें में ख़तरनाक है।
बाज़ार में 'नेस्ले' ब्रांड के नाम को ध्यान में रखते हुए पाण्डेय ने सूपर मार्केट 'ईज़ीडे' से भी मैगी के कुछ नमूने सेंट्रल फूड लैबोरेट्री, कोलकाता भेजे। पर वहां भी नतीजों को कोई फर्क नहीं पाया गया।
दोनों लैब की जांच रिपोर्ट सामने आई और बाराबंकी के छोटे से कस्बे से शुरू हुआ बवाल देशभर फैल गया। भारत के नूडल्स मार्केट पर राज करने वाली मैगी में लेड की मात्रा सामान्य से ज्यादा होने के आरोप लगे और इसी विवाद के चलते बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को दीवाना बना देने वाली मैगी आज सवालों के घेरे में है ।
पढ़िये उस अफसर कि कहानी जिसने देश हित में बड़ा काम किया है. पढ़िये किस तरह उनकी जांच मैगी तक पहुंची और एक बाद एक वो टेस्ट कराते चले गये जबकि नेस्ले कंपनी उनपर लगातार जाँच खत्म करने का दबाव बनाती रही. लेकिन उन्होंने अपने उसूलों से सौदा नही किया...........
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