Monday 19 December 2016

बांग्लादेशियों का इतना तांडव हो गया की, असामी हिन्दुओ की अक्ल ठिकाने आयी ...

35% मुस्लिम आबादी वाला असम बन गया मुस्लिम मुक्त मंत्रालयों वाला राज्य
कांग्रेस सालों तक असम में सत्ता में रही देखते ही देखते असम में 35% मुस्लिम आबादी हो गयी, बड़ी मात्रा में मुस्लिम बांग्लादेश से असम में घुसाए गए, वोट बैंक बनाया गया, असम के हिन्दू नाम के लोग सालों तक सेकुलरिज्म के नाम पर ये तमाशा देखते रहे, हाल ये हो गया की असम के कुछ जिलों में तो 80% मुस्लिम आबादी हो गयीअसम के नागरिको को ही बांग्लादेशी मारने लगे (कोकराझार इत्यादि में)
राजनितिक विशेषज्ञ कहने लगे की, मुस्लिम ही अब हमेशा असम की राजनीती तय करेंगे, किंग मेकर रहेंगे चूँकि 35% मुस्लिम आबादी, एकजुट होकर वोट बैंक बनती है
2011 में इसी असम में बीजेपी को 5 सीट मिली थी, पर 2016 आते आते बांग्लादेशियों का इतना तांडव हो गया की, असामी हिन्दुओ की अक्ल ठिकाने आयी
असम में 5 सीटों वाली बीजेपी 2016 में 60 सीटों पर आ गयी, साथ ही बोडोलैंड की पार्टी भी बीजेपी के साथ गठबंधन में आयी जहाँ देशभर में मुद्दा विकास इत्यादि होता है, 2016 असम में मुद्दा ही हिन्दुओ के भविष्य का था और सालों तक सेक्युलर रहे हिन्दुओ ने इस बार बीजेपी को एकजुट होकर वोट दिया, जैसे मुस्लिम एकजुट होकर देते है, और सर्वानंद सरकार असम में बन गयी
सत्ता में आने के बाद बीजेपी असम के मुख्य मुद्दे को भूली नहीं, और उसी के तहत धड़ाधड़ असम में फैसले भी किये जा रहे है, बांग्लादेशियों को भगाने पर काम हो रहा है, इस्लामिक स्टेट बन चुके असम को दुबारा भारतीय राज्य बनाया जा रहा है, शुक्रवार को मुस्लिमो की मनमानी छुट्टी बंद हो चुकी है, 2 बच्चे से ज्यादा पैदा करने वालो को सरकारी लाभ नहीं दिए जाने का विधेयक पास हुआ
और यहाँ तक की 35% मुस्लिमो वाले राज्य के राज्य सरकार के मंत्रिमंडल में 1 भी मुस्लिम नहीं, जिस राज्य के बारे में राजनितिक विशेषज्ञ कहा करते थे की राज्य की राजनीती मुस्लिम तय करेंगे, उस राज्य के मंत्रालयों में आज 1 भी मुस्लिम नही।
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सात बेटियों के कंधे पर निकली माया देवी की अंतिम विदाई:
अजमेर के मूंदडी मोहल्ले का यह मामला महेन्द्र चौहान के परिवार से जुड़ा हैं. चौहान के घर में संतान के नाम पर सिर्फ बेटियां ही हैं. वो भी एक दो नहीं सात-सात. लेकिन उन्हें बेटा नहीं होने का मलाल कभी नहीं रहा और उनकी पत्नी के देहांत के समय भी ऐसा ही हुआ. 'बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ' की मुहिम यहां सार्थक होती नजर आई. चौहान परिवार की सातों बेटियों ने किसी बेटे की तरह अपनी मां माया देवी का अंतिम संस्कार किया और यह संदेश भी दिया कि बेटियां अभिशाप नहीं होती जब जरूरत होती है तो वे बेटे की भूमिका भी निभा सकती हैं.
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