Monday 30 July 2018


ढाई हजार साल पुराना कुआं :
महाभारतकालीन कृष्ण-केशी की युद्धरत मुद्रा वाली मूर्ति भी मिली 
छत्तीसगढ के प्रयागराज राजिम में ढाई हजार साल पहले निर्मित एक विशाल कुआं मिला। पुरातत्वविदों ने इसका निर्माण मौर्यकाल के समय होना बताया है। कुएं का बाहरी व्यास 5.25 मीटर है। इसके चारों तरफ प्लेटफार्म बना हुआ है। प्लेटफार्म की लंबाई 7.05 मीटर और चौ़डाई 7.05 मीटर है। कुएं की गहराई 80 फीट के आसपास बताई जा रही है।

इससे पहले भी राजिम के सीताब़ाडी में चल रहे खुदाई में ढाई हजार साल पहले की सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। वहीं महाभारतकालीन कृष्ण-केशी की युद्धरत मुद्रा वाली मूर्ति भी मिली है। पुरातत्वविद् अरूण शर्मा के अनुसार, कुएं की दीवार ब़डे-ब़डे पत्थरों से बनी हैं। निर्माण कला से झलकता है कि यह मौर्यकाल में बना होगा। यह कुआं राजिम संगम के सीध में है। उनका कहना है कि अभी तक 10 फीट तक ही खुदाई हुई है। कुएं की गहराई 80 फीट के आसपास होगी।
शर्मा का कहना है कि इस कुएं का निर्माण भगवान के भोग व स्नान के लिए किया गया होगा, क्योंकि बरसात के समय नदी का पानी गंदा हो जाता है। साथ ही उन्होंने बताया कि पत्थरों की जु़डाई आयुर्वेदिक मसालों से की गई है। गौरतलब है कि इन दिनों छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम के सीताब़ाडी में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई की जा रही है। इससे पहले भी यहां खुदाई में ढाई हजार साल पहले की सभ्यता मिल चुकी है। इसके अलावा सिंधुकालीन सभ्यता की तर्ज पर ही निर्मित ईंटें भी मिल चुकी हैं। यहां एक कुंड भी मिला है। कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से कोढ़ और हर किस्म का चर्मरोग दूर हो जाता है। वहीं खुदाई में कृष्ण की केशीवध मुद्रा वाली दो फीट ऊंची, डेढ़ फीट चौ़डी प्रतिमा भी मिली है।
प्रतिमा के एक हाथ में शंख है, वहीं अलंकरण और केश विन्यास से पता चलता है कि यह विष्णु अवतार की प्रतिमा है। शर्मा ने बताया कि प्रतिमा में सिर नहीं है, लेकिन कृष्ण की हथेली घो़डा के मुंह में है, जिससे पता चलता है कि यह केशीवध प्रसंग पर आधारित है। यह प्रतिमा 2500 वर्ष पहले की है। मूर्तिकार की कल्पना देखकर सहज की अंदाजा लगाया जा सकता है कि मूर्तिकार को केशीवध की कहानी ज्ञात थी और साथ ढाई हजार साल पहले भी उत्कृष्ट कलाकार हुआ करते थे।
(आईएएनएस/वीएनएस)
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