Sunday 22 July 2018

वर्षा_जल संरक्षण की सस्ती किन्तु कारगर संरचना ।।

जेसीबी सहित अन्य विशालकाय मशीनों के आने के पूर्व सड़क आदि बनाने का कार्य #मानव_श्रम से ही होता था । इसके लिए पंचायत या अन्य ठेका एजेंसी द्वारा सड़क बनाये जाने वाले मार्ग पर एक निश्चित माप के गड्ढे खोदे जाते थे । दैनिक मजदूरी की बजाय गड्डों के आधार पर श्रमिकों को भुगतान किया जाता था । किसने कितने गड्ढे खोदे इसके लिए दो गड्ढों के बीच मिट्टी कीएक #दीवार छोड़ दी जाती थी ।
गड्ढों की गणना के लिये छोड़ी गई वह दीवार एक वरदान के रूप में वर्षा जल संग्रहण का कार्य करती थी । किन्तु पिछले तीन दशकों के मशीनी युग ने सब कुछ बदलकर रख दिया । अब यह काम मशीनें करने लगी । वे एक तरफ से जो खोदना शुरू करती है तो नदी-नाला आने पर ही रुकती है । जिसके कारण सड़क के दोनों ओर बहने वाला पानी सीधे नदी-नाले में बह जाता है ।
शासकीय पॉलिटेक्निक महाविद्यालय बैतूल के प्राचार्य डॉ. अरुण जी भदौरिया ने स्वयं के खर्च व टीम द्वारा सड़क के दोनों ओर की नालियों में जेसीबी से दीवार बनाकर वर्षाजल को#धरती के पेट मे उतारने का अभिनन्दनीय कार्य किया है । इस मॉडल से निश्चित रूप से सड़क के दोनों ओर की धरती के जल भण्डार बढ़ेंगे ।
इस मॉडल की सभी दूर प्रशंसा हो रही है । ग्रामीण सड़कों तथा राष्ट्रीय राजमार्गों पर यह कार्य किया जाये तो कम खर्च में आदर्श#जल_संरचनाएँ तैयार हो जायेगी ।

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