Wednesday 18 July 2018

२०१९ आपके लिए बहुत कठीण युद्ध है - 
कमजोर कड़ी है ,सेक्युलर स्वार्थी हिन्दू और कुछ राजनीति का छिछला ज्ञान रखने वाले
 असली समस्या काँग्रेस से भी ज्यादा वामपन्थ और दलित-मुस्लिम गठजोड़ का नारा है 

किसी भी युद्ध को जितने के लिए आपके पास सुचना- और दुश्मन की विचारधारा की पूरी जानकारी होनी चाहिए -हिन्दू समाज को बांटकर कमजोर कर खत्म कर देने की साज़िश कोई आज से नहीं चल रही. यह खुलेआम आज़ादी से पहले ही काम कर रही है. 
काँग्रेस व्यक्तिगत तौर पर खत्म है उसे संजीवनी दे रही है वामपंथी सोच व् लॉबी - कांग्रेस कैसे खत्म है इसे समझने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश में गठबन्धन में काँग्रेस को मिली सीटों से आकलन कीजिये। 
 - आप कह सकते है  कि वामपंथ खत्म है वो कहीं नहीं है - मगर आप पूर्ण रूप से गलत है ये रक्तबीज सोच है।  वो ४ महीने पुराने ''आसिफा काण्ड'' को भी जिन्दा करके UN तक पहुँचा देते हैं और आप दिव्या का मुद्दा राष्ट्रिय चैनल तक पर नहीं ला पाते - 
उनकी आपस में अंडरस्टैंडिंग बहुत बेहतरीन है -  मुलायम का समाजवाद और लालू का सामाजिक न्याय -- जयप्रकाश का लोहियावाद सब वामपन्थ ही है अलग अलग नामो से - एक आयातित नाम हैं कम्युनिस्ट और एक देशी है समाजवाद 
ज्यादातर वामपन्थी व्यक्तिगत तौर पर बहुत ईमानदार होते हैं - आप चौकं उठेंगे कि वामपन्थ और ईमानदार ? हाँ ईमानदार -
पश्चिम बँगाल को ही ले लीजिये - यहाँ के वामपन्थी बड़े नेताओ पर भर्ष्टाचार का कोई बड़ा केस है ही नहीं। पूर्व मुख्यमंत्री ''ज्योति बसु'' अपने ड्राइवर को अपनी कार का दरवाजा तक खोलने से मना करते थे। ३४ साल के लगातार शासन के बावजूद किसी की हिम्मत नहीं थी किसी सी.पी.एम. के नेता को कोई घुष ऑफर कर दें-- सी.पी.एम. के हेडक्वार्टर अलीमुद्दीन स्ट्रीट से एक व्यवसाई को इसी मुद्दे पर गिरफ्तार करवा दिया था इन्होने
- मगर इसका मतलब ये नहीं था कि ये पैसा नहीं खाते थे - इनके खाने का तरीका बहूत सोफिस्टिकेटेड था और इनकी ईमानदारी यही थी कि पार्टी के प्रति पूर्ण ईमानदार और भरस्टाचार भी अपनी विचारधारा के प्रसार के लिए तभी कश्मीर से कन्याकुमारी तक इनका नरेटिव इतनी जल्दी सेट हो जाता है। इसलिए पार्टी पूरी शक्ति से उनके पीछे खड़ी रहती है। 

 इनका अजेंडा है भारतवर्ष को टुकड़े करना और  हिन्दू धर्म के खिलाफ जहर भरना
 - माथे पर सिंदूर लगाना दासता का प्रतीक  -- राम अपनी पत्नी को घर से निकालने वाला --कृष्ण क्षमतालोभी और औरतो का रसिया - ये सारे फार्मूले वामपंथ के थिंकटैंक से निकले थे -और  हिन्दू भाई क्या कर रहे थे या हैं ? हिन्दू भाई भी इस देश को गाँधी और नेहरू का देश बतलाने में लगे हुए थे -- फिर यही मुर्ख पूछते है बीजेपी राम मंदिर कब बनाएंगी ? 
 असली समस्या काँग्रेस से भी ज्यादा वामपन्थ है - इनके सवालों के जवाब तैयार रखिये -- इनके साहित्य पढ़िए इन्हे जवाब देने के लिए , क्योंकि ये लोग पढ़ते बहुत हैं -हर विषय को गहराई से समझते हैं इसीलिए आपलोग इनसे बहस में नहीं जीत पाते - जब ये आपसे पूछते हैं हिन्दू शब्द कहाँ से आया तो आपके पास ठोस जवाब नहीं होता।
वामपंथ आरएसएस के सामने कुछ हद्द तक असहाय  रहा है कारण -- दोनों कैडर बेस संगठन है और आरएसएस का कैडर अब वामपन्थ से ज्यादा मजबूत हो चला है - मगर  कमजोर कड़ी सेक्युलर स्वार्थी हिन्दू हैं  और कुछ राजनीति का छिछला ज्ञान रखने वाले। 
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दलित-मुस्लिम गठजोड़ का नारा
.दलित-मुस्लिम गठजोड़ का नारा देने वाले आपको कभी जोगेंद्रनाथ मंडल का नाम लेते नहीं दिखेंगे । जबकी मंडल आज़ादी से पहले दलितों के सबसे बड़े नेता कहे जाते थे.बाबासाहेब से भी बड़े दलित नेता, इसीलिए कहा… क्योंकि 1945-46 में जब संविधान-निर्माण समिति के लिए चुनाव हुए तो बाबासाहेब बंबई से चुनाव हार गए. ऐसे में वे जोगेंद्र नाथ मंडल ही थे जिन्होने बाबा साहेब को बंगाल के कोटे से जितवाया.
पाकिस्तान बनने से पहले दलितों को ऐसा ही प्रलोभन दिया गया था. 
1947 से पहले अम्बेडकर जी की पार्टी के एक नेता जोगेन्द्रनाथ मंडल ने SCF (Scheduled Castes Federation) और मुस्लिम लीग में समझौता किया, हमें भारत विखंडित करके एक राष्ट्र बनाना है. दलितों और मुसलमानों के लिए, जिसका नाम होगा पाकिस्तान ।
जोगेंद्र नाथ मंडल ने भारत विभाजन के वक्त अपने दलित अनुयायियों को पाकिस्तान के पक्ष में वोट करने का आदेश दिया था. अविभाजित भारत के पूर्वी बंगाल और सिलहट (आधुनिक बांग्लादेश) में करीब 40 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की थी, जिन्होंने पाकिस्तान के पक्ष में वोट किया और मुस्लिम लीग, मण्डल के सहयोग से भारत का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने मे सफल हुआ ।
अंत में बाबा साहब ने जोगेन्द्रनाथ मंडल से किनारा कर लिया. वह भारत के कानून मंत्री बने. मंडल दलितों की एक बड़ी संख्या लेकर पाकिस्तान गए. जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने.
जोगेंद्र नाथ मंडल ने सोचा अब पाकिस्तान बन गया है, दलितों के मज़े होंगे. पर हुआ उल्टा. संगठित आक्रामक समाज दलितों के धर्मांतरण पर तुल गया..दलितों को मिलने वाले सभी प्रकार के भत्ते बंद कर दिए. दलितों के मुसलमान किरायेदारों ने दलितों को किराया देना बंद कर दिया. दलितों की लड़कियां मुसलमान आये दिन उठा के ले जाते. आये दिन दंगे होने लगे.
अब मुस्लिम लीग को वैसे भी दलित-मुस्लिम दोस्ती का ढोंग करने की ज़रूरत नहीं रह गयी थी. उनके लिए हर गैर-मुस्लिम काफिर है. पूर्वी पाकिस्तान में मण्डल की अहमियत धीरे-धीरे खत्म हो चुकी थी. दलित हिंदुओं पर अत्याचार शुरू हो चुके थे. 30% दलित हिन्दू आबादी की जान-माल-इज्जत खतरे मे थी.
पाकिस्तान में सिर्फ एक दिन 20 फरवरी 1950 को 10,000 से ऊपर दलित मारे गए. ये सब बातें किसी संघी किताब में नहीं बल्कि खुद जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने इस्तीफे में लिखी हैं.
मंडल ने हिंदुओं के संग होने वाले बरताव के बारे में जिन्ना को पत्र लिखा, “मुस्लिम, हिंदू वकीलों, डॉक्टरों, दुकानदारों और कारोबारियों का बहिष्कार करने लगे, जिसकी वजह से इन लोगों को जीविका की तलाश में पश्चिम बंगाल जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.”. पूर्वी बंगाल के हिंदुओं (दलित-सवर्ण सभी) के घरों को आधिकारिक प्रक्रिया पूरा किए बगैर कब्जा कर लिया गया और हिंदू मकान मालिकों को मुस्लिम किरायेदारों ने किराया देना काफी पहले बंद कर दिया था”.
जोगेन्द्र नाथ ने कार्यवाही हेतु बार- बार चिट्ठियां लिखीं, पर इस्लामिक सरकार को न तो कुछ करना था, न किया. आखिर उन्हें समझ में आ गया कि उन्होंने किस पर भरोसा करने की मूर्खता कर दी है.
मंडल को खुद लगा कि अब उनकी जान पाकिस्तान में सुरक्षित नहीं है  ,उनका इस्तीफा किसी भी दलित के लिए हॉरर मूवी से कम नहीं. 1950 में बेइज्जत होकर जोगेंद्र नाथ मंडल भारत लौट आये. भारत के पश्चिम बंगाल के बनगांव में वो गुमनामी की जिन्दगी जीते रहे.अपने किये पर 18 साल पछताते हुए आखिर 5 अक्टूबर 1968 को उन्होंने गुमनामी में ही आखिरी साँसे ली ।






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