Saturday 14 July 2018

चर्च का उद्देश्य बहुत स्पष्ट है। वेटिकन के राष्ट्रपति के अनुसार इस शताब्दी में उन्हें भारत का काम निपटाना है।
 क्योंकि पिछली दो सहस्राब्दियों में चर्च ने पूरे यूरोप और अफ्रीका के इतिहास, विरासत और संस्ड्डति को नष्ट करके वहॉं ईसाई मत को स्थापित कर दिया है। एशिया के अधिकांश हिस्से पर भी चर्च ने अपना मजहबी आधिपत्य जमा लिया है। शुरू में तो यूरोप ने ईसाइकरण का विरोध किया लेकिन कालांतर में वही यूरोप अफ्रीका और एशिया में मजहबी साम्राज्यवाद का हरावल दस्ता बना। जिन लोगों ने चर्च के इन अभियानों का विरोध किया उन्हें निर्दयतापूर्वक कुचल दिया गया। चर्च के दुर्भाग्य से भारत उसके इस विश्वव्यापी अभियान के रास्ते में रोड़ा बनकर खड़ा हो गया। अपनी इस सम्राज्यवादी लिप्सा में बींसवी शताब्दी में ही भारत के संदर्भ में चर्च और अमेरिका एक जुट हो गये थे। इसलिए बचे खुचे देशों में ईसाई मजहब को स्थापित करने में अमेरिका अ्रग्रणी भूमिका में उपस्थित हो गया है। परन्तु अमेरिका को इस प्रकार के देशों में दखलअंदाजी के लिए कोई न कोई तार्किक बहाना चाहिए। कोई ऐसा बहाना जिस पर लोग सहज ही विश्वास कर लें। अमेरिका ने इसके लिए आतंकवाद को बहाना भी बनाया और हथियार भी। अमेरिका का ऐसा कहना है कि दुनियां इस्लामी आतंकवाद का प्रहार झेल रही है और अमेरिका क्योंकि नवविचार और नवचेतना का देश है इसलिए वह इस्लामी आतंकवाद को समाप्त करना अपना कर्तव्य समझता है। चाहे इसमें उसके अपने सैनिक भी मर रहे हैं परन्तु इसके बावजूद अमेरिका मानवता के हित में इस्लामी आतंकवाद से लड़ रहा है। केवल अमेरिका में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में। वैसे , केवल रिकार्ड के लिए, अमेरिका का अपना इतिहास भी निर्दोष नहीं है। सी0आई0ए0 ने कितने लोगों की हत्या करवाई और कितने देशों की सरकारों को उल्टा-पुल्टा इसका लेखा-जोखा उसकी पुरानी फाइलों में से निकल आयेगा। आज जिस इस्लामी आतंकवाद को लेकर इतना हल्ला मचा हुआ है उसका जन्म भी अमेरिका ने अफगानिस्तान में रूस को उत्तर देने के लिए दिया था। बाद में इसी आतंकवाद के बहाने अमेरिका अपने आर्थिक हितों के लिए ईराक में धुसा, फिर अफगानिस्थान में और अब उसकी सेनाएं आतंकवाद की खोज करते करते अपनी इच्छा से पाकिस्तान में भी चली जाती हैं। लेकिन चर्च और अमेरिका का निशाना तो भारत है। पर इस्लामी आतंकवाद के बहाने अमेरिका भारत में नहीें घुस सकता क्योंकि भारत इस्लामी आतंकवाद से पीड़ित देश है। भारत में घुसने के लिए अमेरिका को हिन्दु आतंकवाद की जरूरत है, इस्लामी आतंकवाद की नहीं। जब तक भारत में कांग्रेस की निर्बाध सत्ता है तब तक न अमेरिका को चिंता है न ही चर्च को क्योंकि भारत को मतांतरित करने की चर्च की योजनाओं में कांग्रेस सरकार सहायक है, बाधक नहीं। परन्तु पिछले तीन दशकों से भारत का राजनैतिक घटना क्रम तेजी से परिवर्तित हुआ है। कांग्रेस के केन्द्रीय सत्ता में बने रहने की निरंतरता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। इसी अरसे में राष्ट्रवादी शक्तियां भारतीय राजनीति के केन्द्र में पहुॅंच गई। अमेरिका और चर्च दोनांे को लगता है यदि देर सबेर राष्ट्रवादी ताकतें फिर भारत की सत्ता के केन्द्र में स्थापित हो गई तो भारत के ईसाइकरण में निश्चय ही बाधा उपस्थित हो जायेगी। इसी मरहले पर ईतालवी मूल की सोनिया गॉंधी कांग्रेस के केन्द्र में स्थापित होती हैं। यह ताकतें अपनी इस रणनीति में तो कामयाब हो गई लेकिन इनके दुर्भाग्य से कांग्रेस स्वयं ही सत्ता के केन्द्र से विच्युत होने की स्थति में पहुंच रही है। यदि कल चर्च और अमेरिका के आगे ऐसा संकट उपस्थित हो जाता है तो उनके आगे भारत में दखलअंदाजी का कौन सा रास्ता बचता है? यह रास्ता भारत की राष्ट्रवादी शक्तियों को आतंकवादी घोषित करने का ही है। भविष्य में यदि राष्ट्रवादी शक्तियां भारत का शासन सूत्र संभाल लेती हैं तो अमेरिका को यह कहने का अवसर मिल जायेगा कि भारत में आतंकवादी शक्तियों ने कब्जा कर लिया है। यह अमेरिका ने स्वयं ही घोषित किया हुआ है कि दुनियां में जहां भी आतंकवादी शक्तियां होंगी अमेरिका उनका पीछा करते हुए वहॉ तक जायेगा। और वैसे भी सोनिया ब्रिगेड और चर्च को अमेरिका के आगे यह गुहार लगाते हुए कितनी देर लगेगी कि अमेरिका आगे बढ़ कर भारत को आतंकवादी शक्तियों के चगुंल से मुक्त करे।
अमेरिका की यही नीति है कि किसी भी तरह से भारत की राष्ट्रवादी शक्तियों को कटघरे में खड़ा कर उन्हें नकारात्मक चित्रित किया जाये। अमेरिका की सरकार और अमेरिका का मीडिया इस काम में लम्बे अरसे लगा हुआ है। अमेरिकी सरकार के संस्थान सी0आई0ए0 की आधिकारिक साईट पर संघ परिवार से जुड़े संस्थानों को हिन्दु मिलीटैंट आरगेनाइजेशन घोषित किया हुआ है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को वीजा न देने का एक उद्देश्य राष्ट्रवादी शक्तियों को कट्टरपंथी के रूप में चित्रित करना भी था। अमेरीका के अनेक विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और हिन्दुत्व की नकारात्मक व्याख्या को लेकर व्यापक शोधकार्य करवाया जा रहा है। यहां यह कहना असंगत नहीं होगा कि 80-90 के दशक में ही अमेरिका में संघ परिवार को लेकर लगभग 200 शोध कार्य हुये जिनमें किसी प्रकार से संघ की मिलीटेंट एवं नकारात्मक घोषित करना ही उद्देश्य रहा।

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