डॉ. अशोक तिवारी
Ph.D. in Energy Management
Ashokktiwari@gmail.com
कहा जाता है कि बिजली का अविष्कार अंग्रेज वैज्ञानिकों वोल्टा, कूलम्ब, अम्पीयर, एडिसन, फराडे आदि ने सत्रहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी में किया. हमारी पाठ्यपुस्तकों में भी यही बताया जाता है. वास्तविकता यह है कि इनसे हजारों वर्ष पूर्व से बिजली का उपयोग किया जाता था.
अगस्त्य संहिता (600 BC) में एक सूत्र हैः
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्। छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें. फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें.
उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercury-amalgamated zinc sheet) रखें. इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी. यहाँ पर प्रोटोन व इलेक्ट्रान को क्रमशः मित्र व वरुण कहा गया है.
अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः
अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु। एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥
अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में सौ सेलों को जोड़े) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।
फिर लिखा गया हैः
अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में सौ सेलों को जोड़े) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।
फिर लिखा गया हैः
वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्।
अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
अगस्त्य संहिता एवं अन्य ग्रंथों के आधार पर विद्युत भिन्न-भिन्न प्रकार से उत्पन्न होती हैं, इस आधार उसके भिन्न-भिन्न नाम रखे गए -
(1) तड़ित्-रेशमी वस्त्रों के घर्षण से उत्पन्न विद्युत.
(2) सौदामिनी-रत्नों के घर्षण से उत्पन्न विद्युत.
(3) विद्युत-बादलों के द्वारा उत्पन्न विद्युत.
(4) शतकुंभी-सौ सेलों या कुंभों से उत्पन्न विद्युत.
(5) हृदनि- हृद या स्टोर की हुई बिजली विद्युत.
(6) अशनि-चुम्बकीय दण्ड से उत्पन विद्युत.
अगस्त्य संहिता में विद्युत्का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए करने का भी विवरण मिलता है. उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पालिश चढ़ाने की विधि निकाली. अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं.
प्राचीन भारत में ELECTROPLATING द्वारा सोना चांदी को शुद्ध करने की कला ज्ञात थी जिसमे बैटरी की आवश्यकता होती है. इसका वर्णन शुक्रनीति में भी आता है.
कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते। यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥
आच्छादयति तत्ताम्रंस्वर्णेन रजतेन वा। सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं शातकुंभमिति स्मृतम्॥
आच्छादयति तत्ताम्रंस्वर्णेन रजतेन वा। सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं शातकुंभमिति स्मृतम्॥
अर्थात् कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप को सत्कृति कहा जाता है. लोहे के पात्र में सुशक्त जल अर्थात तेजाब का घोल इसका सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेता है. स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है.
अगस्त्य संहिता पर आधारित प्राचीन विद्युत् बैटरियां प्राचीन मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक) में पायी जाती हैं. इन्हें बग़दाद बैटरी कहा जाता है. इनका काल 250 BC से पूर्व का है. संभवतः इन्हें भारत में निर्मित कर बेबीलोन में पार्थियन राजाओं के काल में निर्यात किया गया था.
महर्षि अगस्त्य द्वारा वर्णित यह मित्र – वरुण शक्ति क्या है? इसका विवरण वेदों में प्राप्त होता है. वेदों के अनेक श्लोकों में मित्र वरुण वशिष्ठ अर्थात प्रोटोन इलेक्ट्रान न्यूट्रान की संकल्पना का प्रमाण प्राप्त होता है.
ऋग्वेद 7.33.10 में कहा गया है –
विद्युतो ज्योतिः परी संहिजान, मित्रावरुणा यद्पश्यतान त्वा.
तत ते जन्मोतैकं वशिष्ठ–अगस्त्यो यात तव आज्भार.
तत ते जन्मोतैकं वशिष्ठ–अगस्त्यो यात तव आज्भार.
अर्थात जब मित्र (proton) और वरुण (electron) के कण समान मात्रा में विद्युत् का परित्याग करते हैं, तब वशिष्ठ (neutron) बनता है. यह वशिष्ठ का प्रथम जन्म है. यह अस्थायी होता है इसमें अगस्त्य (neutrino) मिलने से स्थायी हो जाता है.
ऋग्वेद की ऋचाओं में मित्र–वरुण चुम्बकीय विकिरण (Electro-Magnetic-Radiation) तथा आकाशीय विद्युत् का प्रयोग सम्बन्धी वर्णन प्राप्त होता है. (देखें- ऋग्वेद 7.33.13, 8.101.1-2, 8.101.3, 1.2-7, 1.23.5, 1.2.9 यजुर्वेद 2.16, 3.33, 4.30 आदि) जिसका वर्णन अन्य लेख में किया जाएगा.
वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के प्रथम बार लंका यात्रा का विवरण दिया गया है. लंका की शोभा का वर्णन करते हुए बताया गया गया है कि वहां हर मार्ग पर विद्युत् से जलने वाले दीप लगे हुए थे. रावण के महल में हनुमान जी ने विद्युत् से जलने वाले दीप देखे.
ताम् सविद्युत् घन आकीर्णाम् ज्योतिः मार्ग निषेविताम् || (वाल. रा. सुन्दरकाण्ड पंचम सर्ग 3-5)
यूरोपीयन वैज्ञानिकों ने मिस्र के पिरामिडों के अध्ययन में पाया कि पिरामिडों के कमरों व सुरंगों के सीलिंग पर सूथ (धुएं जमने का कालापन) नहीं है.
अर्थात पिरामिडों के निर्माण के समय अँधेरे कमरों व सुरंगों में दीपक, मशालें, मोमबत्ती आदि का प्रयोग नहीं किया गया था. फिर उनको प्रकाश कहाँ से प्राप्त हुआ?
पिरामिडो के अन्दर दीवालों पर की गयी चित्रकारी का अवलोकन करने पर पाया गया कि उस काल में हाई–वोल्टेज संयत्रों का प्रयोग होता था जिनमें इंसुलेटर लगे थे और फिलामेंट द्वारा ट्यूब लाईट समान प्रकाशीय स्त्रोत से प्रकाश उत्पन्न किया जाता था. इनसे पता चलता है कि पिरामिडों के निर्माण काल (2500 BC) में भी बिजली का प्रयोग किया जाता था.
गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं जातक–कथाएं कहलाती हैं और इनको लगभग 300 BC में संकलित किया गया था. इनमें एक जातक है जिसे उमग-जातक कहा जाता है. इसमें एक शहर का वर्णन है जिसमें बिजली का उपयोग किया जाता था, तथा एक ऐसी यांत्रिक व्यवस्था थी जिससे पूरे शहर की बिजली बंद की जाती थी.
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