Sunday, 5 June 2016

 अघोरी नाथ जी—
श्मशान में गहरी निद्रा में सोए अघोरी को अचानक एक प्रेत ने जकड़ लिया और बोला- यदि तुम वास्तविक सन्यासी हो तो अपने जीवन का लक्ष्य बताओ, यदि तुम छद्म सन्यासी हुए तो मैं तुम्हें जीवित नही जाने दूंगा. मैं जबतक कर्तव्य से भागे 100 नकली सन्यासियों को प्रेतयोनि में न ले आऊं मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी.
अघोरी बोला- सत्य कहा है तुमने, यह देश भगोड़े सन्यासियों से भरा पड़ा है. इन मूढो को पता नहीं की समाज को सामर्थ्य देना ही सन्यासियों का कार्य है, 1757 में विदेशी शासकों के विरुद्ध सन्यासियों के विद्रोह की कथा बंकिम ने आनंदमठ में लिखी है."ज्ञेयः स नित्य सन्यासी यो द्वेष्टि न काङ्क्षति , निर्द्वन्दो हि महाबाहो सुखम बन्धात्प्रमुच्यते"अर्थ : जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न किसी की आकांक्षा करता है वह सन्यासी है .क्योंकि वह द्वन्द रहित होकर सुखपूर्वक बंधन से मुक्त हो जाता है . सन्यास आतंरिक अवस्था है, इसका बाहर से सम्बन्ध नहीं है, कपड़ो से सम्बन्ध नहीं है. मुक्त होकर, निरपेक्ष होकर राष्ट्र की आराधना करने वाला ही सन्यासी है.बंगाल के अकाल पीड़ितों के लिए स्वामी विवेकानंद सारे देश में घूम-घूम कर अकाल पीड़ितों के लिए आनाज और धन एकत्रित कर रहे थे,इसी क्रम में वे ढाका पहुंचे । वहां कुछ पंडित उन से मिलने और शास्त्रार्थ के लिए आये किन्तु स्वामीजी वहां अकाल पीड़ितों की चर्चा करने लगे, वे कहने लगे, ‘जब मैं अकाल से लोगों को मरते हुए देखता हूँ तो मुझे बहूत दुख होता है, आँखों में आंसू आ जाते हैं । मन में विचार करता हूँ की आखिर प्रभु की इच्छा क्या है ?’ उनकी इन बातों को सुन कर सभी पंडित एक दुसरे से नजरे मिला कर मुस्कुराने लगे ।उनकी ऐसी प्रतिक्रिया देख कर स्वामीजी ने पूछा ‘आप लोग मुझ पर हंस रहे हैं? उनमें से एक पंडित ने हँसते हुए कहा, ‘स्वामीजी ! हम तो समझते थे कि आप वीतरागी संन्यासी हैं। अत: सांसारिक सुख-दुख से परे हैं। किन्तु आप तो इस नश्वर शरीर के लिए रोते हैं.स्वामीजी उनके तर्क को सुनकर हैरान रह गए, फिर डंडा उठाते हुए उस पंडित की और बढ़े और बोले, ‘आज तुम्हारी परीक्षा है। यह डंडा तुम्हारी आत्मा को नहीं मरेगा, मात्र नश्वर शरीर को ही मारेगा। यदि सच में पंडित हो, ज्ञानी हो तो अपने स्थान से मत हिलना । अब उस पंडित की समझ में आ गया।संन्यासी हो जाने का मतलब मानवीयता से नाता तोड़ना नहीं है बल्कि पीड़ित मानव के लिए अपने हित को पड़े रखकर काम करने वाला ही सच्चा सन्यासी है।
प्रेत बोला- सत्य है अघोरी, मातृभूमि के लिए जिसकी आत्मा में तडप नहीं- वो संत नहीं, जिसके मन में देशवासियों की सेवा का भाव नहीं-वो संत नहीं. जिसने बड़े मठ बनाए, दीक्षा और शिष्य परंपरा से धन संग्रह किया, वो संत नहीं. तुम सभी युवकों को मेरा संदेश देना- “पानी पियों छान कर, गुरु करो जान कर”. जबतक तुम रामवृक्ष जैसे राक्षसों को गुरु बनाते रहोगे तबतक मैं उनको प्रेतयोनि में भेजता रहूँगा.सूर्य प्राची में अपनी लालिमा बिखेरे, इसके पूर्व ही अघोरी अपने कर्तव्यपथ पर चल पड़ा, 
कहीं दूर से ध्वनि आ रही थी-
बहुबलधारिणीं
नमामि तारिणीं
रिपुदल वारिणीं मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ !

No comments:

Post a Comment