Wednesday 1 June 2016


NDA (National Defence Academy) में जो बेस्ट कैडेट होता है, उसको एक गोल्ड मैडल दिया जाता हैं, लेकिन क्या आपको यह ज्ञात हैं कि उस मैडल का नाम "लचित बोरफुकन" है ? कौन हैं ये "लचित बोरफुकन" ? क्या आपने कभी सोचा है कि पूरे उत्तर भारत पर अत्याचार करने वाले मुस्लिम शासक और मुग़ल कभी बंगाल के आगे पूर्वोत्तर भारत पर कब्ज़ा क्यों नहीं कर सके ?
कारण था वो हिन्दू योद्धा जिसे इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नो से गायब कर दिया - असम के परमवीर योद्धा "लचित बोरफूकन" | अहोम राज्य (आज का आसाम या असम) के राजा थे चक्रध्वज सिंघा और दिल्ली में मुग़ल शासक था औरंगज़ेब | औरंगज़ेब का पूरे भारत पर राज करने का सपना अधूरा था औरंगज़ेब चाहता था कि उसका साम्राज्य पूरे भारत के ऊपर हो लेकिन भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से तक वह नहीं पहुँच पा रहा था |
यह बात औरंगज़ेब को सपनों में सताने लगी थी और तभी औरंगज़ेब के अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए 4000 महाकौशल लड़ाके, 30000 पैदल सेना, 21 सेनापतियों का दल, 18000 घुड़सवार सैनिक, 2000 धनुषधारी और 40 पानी के जहाजों की विशाल सेना असम पर आक्रमण करने के लिए भेजी थी सबसे रोचक बात यह थी कि असम अगर कोई जीत लेता तो इस तरह से वह उत्तर-पूर्वीं भारत पर कब्जा कर सकता था !
उस समय असम का नाम अहोम था | औरंगजेब ने इस इस हमले के लिए एक हिन्दू राजा को भेजा था | राजा राम सिंह अहोम को जीतने के लिए विशाल सेना लेकर निकल चुका था | अहोम का एक वीर सेनापति, जिसको बहुत ही कम लोग जानते हैं जिसका नाम लचित बोरफुकन था | इस नाम से उस समय लगभग सभी लोग वाकिफ थे | पहले भी कई बार लोगों ने अहोम पर हमले किये थे जिसे इसी सेनापति ने नाकाम कर दिए थे | कुछ समय पहले ही लचित बोरफूकन ने गौहाटी को दिल्ली के मुग़ल शासन से आज़ाद करा लिया था | जब लचित को मुग़ल सेना आने की खबर हुई तो उसने अपनी पूरी सेना को ब्रह्मपुत्र नदी के पास एक खड़ा कर दिया था |

मुग़ल सेना का ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे रास्ता रोक दिया गया | इस लड़ाई में अहोम राज्य के 10000 सैनिक मारे गए और लचित बोरफुकन बुरी तरह जख्मी होने के कारण बीमार पड़ गये | अहोम सेना का बुरी तरह नुकसान हुआ | राजाराम सिंह ने अहोम के राजा को आत्मसमर्पण ने लिए कहा | जिसको राजा चक्रध्वज ने "आखरी जीवित अहोमी भी मुग़ल सेना से लडेगा" कहकर प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया |
लचित बोरफुकन जैसे जांबाज सेनापति के घायल और बीमार होने से अहोम सेना मायूस हो गयी थी | अगले दिन ही लचित बोरफुकन ने राजा को कहा कि जब मेरा देश, मेरा राज्य आक्रांताओं द्वारा कब्ज़ा किये जाने के खतरे से जूझ रहा है, जब हमारी संस्कृति, मान और सम्मान खतरे में हैं तो मैं बीमार होकर भी आराम कैसे कर सकता हूँ ? मैं युद्ध भूमि से बीमार और लाचार होकर घर कैसे जा सकता हूँ ? हे राजा युद्ध की आज्ञा दें....
इसके बाद ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सरायघाट पर वो ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया, जिसमे "लचित बोरफुकन" ने सीमित संसाधनों के होते हुए भी मुग़ल सेना को रौंद डाला | अनेकों मुग़ल कमांडर मारे गए और मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई | जिसका पीछा करके "लचित बोफुकन" की सेना ने मुग़ल सेना को अहोम राज के सीमाओं से काफी दूर खदेड़ दिया | लचित के एक सैनिक ने कई सौ औरंगजेब के सैनिकों को मारा था | जब मुग़ल सेना ने लचित बोफुकन के सैनिकों का मनोबल देखा तो सभी में भगदड़ मच गयी थी | इस युद्ध के बाद फिर कभी उत्तर-पूर्वी भारत पर किसी ने हमला करने का सपने में भी नहीं सोचा | खासकर औरंगजेब को लचित बोरफूकन की ताकत का अंदाजा हो गया था | ये क्षेत्र कभी गुलाम नहीं बना |

ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सरायघाट पर मिली उस ऐतिहासिक विजय के करीब एक साल बाद (उस युद्ध में अत्यधिक घायल होने और लगातार अस्वस्थ रहने के कारण) माँ भारती का यह अद्भुद लाड़ला सदैव के लिए माँ भारती के आँचल में सो गया | दुर्भाग्य की बात यह है कि आज इस वीर योद्धा का नाम भारत के कुछ 10 प्रतिशत लोग ही जानते हैं

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