क्या आपको पता है भारत-पाक बंटवारे की ये सच्चाई, सिर चकरा जाएगा आपका..!
15 अगस्त 1947 को एशिया का उपमहाद्वीप कहलाने वाला भारत, ब्रिटिश हुकूमत से आजाद तो हो गया, लेकिन द्विराष्ट्र के सिद्धांत पर। अंग्रेजों ने भारत को आजादी इसी शर्त पर दी कि अखंड भारत खंडित होगा। हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रूप में। भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना, भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया।
बहरहाल, अंग्रेजों और लॉर्ड माउंटबेटन के लिए भारत और पाकिस्तान नक्शे पर महज एक लकीर के जरिये अलग हो गया, लेकिन जमीन पर विभाजन की यह रेखा पूरी मानवजाति के इतिहास की एक ऐसी भयावह, रक्तरंजित, अमानवीय, क्रूर और जघन्य घटना थी कि पूरे विश्व की मानवता शर्मसार हो गई।
दरअसल, भारत और पाकिस्तान का बंटवारा महज 50 से 60 दिनों के भीतर लाखों लोगों का विस्थापन था, जो विश्व में कहीं नहीं हुआ। 10 किलोमीटर लंबी लाइन में लाखों लोग देशों की सीमा को पार हुए। महज कुछ ही समय में एक स्थान पर सालों से रहने वाले को अपना घर बार, जमीन, दुकानें, जायदाद, संपत्ति, खेती किसानी छोडकर हिंदुस्तान से पाकिस्तान और पाकिस्तान से हिंदुस्तान गए।
आपको जानकार आश्चर्य होगा कि मनुष्य जाति के इतिहास में इतनी ज्यादा संख्या में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या तकरीबन 1.45 करोड़ थी। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।
धर्म के नाम हुए इस विभाजन में दंगे-फसाद और मारकाट के बीच मानवता जितनी शोषित, पीड़ित, और छटपटाई है उतनी किसी घटना में नहीं हुई। 10 हजार से ज्यादा महिलाओं का अपहरण किया गया, उनके साथ बलात्कार हुआ, जबकि सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गए, कई मारे गए।
एक अनुमान के मुताबिक विभाजन की इस रूह कंपा देने वाली और मानवजाति के इतिहास को शर्मिंदा कर देने वाली इस त्रासदी में तकरीबन 20 लाख से ज्यादा लोग मारे गए। इसके बाद आजाद हिंदुस्तान और आजाद भारत दोनों में ही विस्थापन के बाद अपना सबकुछ छोड आए लोगों को अपने जीवन को पटरी पर लाने के लिए, घरबार काम धंधा दोबारा जमाने के लिए शरणार्थी बनकर जिस अमानवीय त्रासदी से गुजरना पड़ा वह तो एशिया के इतिहास का काला अध्याय है।
विभाजन का यह काला अध्याय आज भी इतिहास के चेहरे पर विस्थापित हुए, भगाए गए, मारे गए, भटक कर मौत को गले लगाने वाली मनुष्यता के खूने के छींटों से भरा है। इतिहास गवाह है, सियासत ने अपने ख्वाबों को तो पूरा किया, लेकिन धर्म के नाम पर, जाति के नाम भोली-भाले इंसानों को हिंदू और मुसलमानों में बांटकर। सियासतदान तो चले गए, लेकिन जनता के दिलों में, पीढ़ियों के दिलों में खूनी विभाजन और विस्थापन यह दर्द आज भी आधी रात को रह-रहकर उठता है..!
No comments:
Post a Comment